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अतिशायन
अतीन्द्रिय-ज्ञानं
अतिशायन (वि०) श्रेष्ठता, प्रमुखता, प्रधानता।
अतिसर्व (वि०) सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ। अतिशायिन् (वि०) [अति+शी-णिनि] अग्रगामी, अतिशयवान्। अतिसारः (पुं०) [अति+स+णिच्+अच्] अतिसार रोग, पेचिश,
(जयो० ११/२२) अन्य से बढ़कर। अन्यातिशायी रथ मरोड़ युक्त दस्त। (जयो० २८/३०)
एकचक्रो, रवेरविश्रान्त इतीमशक्रः।। (जयो० ११/२२) अतिसारिन् (पुं०) अतिसार नामक रोग से पीड़िता अतिशयोक्तिरलंकारः (पुं०) अतिशयोक्ति अलंकार, अतिसुन्दरः (पुं०) अतिमनोज्ञ (जयो०५५१) ०सर्वाङ्गः सुन्दर
चित्तभित्तिषु समप्रितदृष्टौ तत्र शश्वदपि मानवसृष्टौ। अतिसुन्दरगात्री (वि०) अतिसुन्दरशरीरा, मनोज्ञ देह वाली निर्निमेषनयनेऽपि च देवव्यूह एव न विवेचनमेव।। (जयो० (जयो० ५।२५१) अतिसुन्दरं गात्रं शरीरं यस्याः स।। ३/१९) वहां नगरी की चित्रयुक्त भित्तियों से एक टक अतिसुन्दरी (स्त्री०) सुभगा, सुन्दर रूपा, मनोज्ञा। (जयो० दृष्टि लगाने वाले मानवसमूह और निर्निमेष नयनवाले देवों ३/५८) सुभगाऽतिसुन्दरी कृता। के समूह में परस्पर विवेक प्राप्त करना बड़ा कठिन हो अतिस्नेहः (पुं०) अधिक अनुराग, परमप्रीति। गया था।
अतिस्पर्शः (पुं०) परम स्पर्श, विशेष स्पर्श। अतिशयोन्नतिः (स्त्री०) विशेष उन्नति, प्रमुख प्रगति। (वीरो० अतिहितं (नपुं०) अनुरूप, अपने अनुकूल। भाति चातिहितं ____७/३२)
तेन। (जयो० ३/६७) अतिशयेन हितरूपमुत्तममाभाति। अतिशयोपयुक्तिः (स्त्री०) अतिशय पुण्य योग का विचार। (जयो० वृ० ३/६७)
(सुद० २/४२) बभाषर्था स्वातिशयोपयुक्तिमती सती अतीत् (सक्) [अति-इत्] त्याग करना, छोड़ना, उपेक्षा पुण्यपयोधिशुक्तिः । (सुद० २/४२)
करना। (जयो० ४।६७, सुद० १/२७) व्रजति वेदमतीत्य अतिशीतत्व (वि०) अधिक शीतलता, विशेष शैत्य, प्रचुर पुनर्वचः। सर्दी। (जयो० वृ० १२/२०)
अतीत्य-त्यक्त्वाऽन्यत्व एव क्वचिन्मौनतो व्रजति, अतिशेषः (पुं०) अवशिष्ट भाग, अवशेष अंश, बचा हुआ शास्त्रमतीत्य समुपेक्ष्यान्यत एव व्रजति। (जयो० वृ० ४/६७) हिस्सा।
अतीत (वि०) [अति+इ+क्त] रहित, मृत, व्यतीत, बीता अतिश्रेय (वि०) अतिकल्याणकारी, विशेष उपकारी।
हुआ, भूतकालिक, प्राचीन। (सुद० २/२, पृ०७०) अतिश्रेयसिः (श्रेयसीमतिक्रान्तः) श्रेष्ठता युक्त पुरुष।
बाह्याडम्बरतोऽतीतास्ते। (सुद० पृ० १२७) अतिसक्तः (पुं०) [अति+षंज्+क्त] आसक्त, तल्लीन, प्रेम, | अतीतगुणं (नपुं०) अपरिमितगुण। द्विजिह्वातीतगुणोऽप्यहीनः।
अतिस्नेह। (जयो० १/४४) स वैनतेयः पुरुषोत्तमोऽतिसक्तो न। __(सुद० २/२/) * दुर्गुणहीन, सद्गुणयुक्त। (सुद० २/२) अतिसक्तिः (स्त्री०) भारी आसक्ति, प्रगाढ़ संपर्क।
अतीतवती (वि०) विरहित। (जयो० २६/ ) व्यतीत करती अतिसंधानं (नपुं०) [अति+स+धा+ल्युट्] छल करना, धोखा हुई। (वीरो० ५/४२) तासां गर्भक्षणं निजमतीतवती मुदा देना, चालाकी, जालसाजी।
सा। (वीरो० ५।४२) हर्ष से अपने गर्भकाल को बिता रही अतिसङ्ककः (पुं०) अतिक्रम, जनबाहुल्य का संकट। (साति- थी; हर्षेणातीतवती व्यतीयाय। (वीरो० वृ०५/४२) सङ्ककतया नरराजां) (जयो० ५/१५)
अतीतिः (स्त्री०) आगामी काल। (जयो० २७/६६) ०भविष्यत् अतिसङ्कटता (वि०) विकट समस्या वाला।
काल। अतिसरः (पुं०) [अति+सृ+अच्] आगे बढ़ने वाला, नेता, अतीन्द्रिय (वि०) इन्द्रिय द्वारा अगम्य, इन्द्रियों से परे। (जयो० नायक।
४/३४, ८४) अतिसरः (पुं०) अतिसार, दस्त। (सुद०९१) ज्वरिणः पयसि | अतीन्द्रिय-ज्ञानं (नपुं०) प्रच्छन्न ज्ञान। (वीरो० पृ० ३१६) दधिनि अतिसरतो द्वतयोऽपि क्षुधितस्य।
प्रच्छन्न/गुप्त ज्ञान भी लोगों को होता हुआ देखा जाता है। अतिसर्गः [अति सृञ्+घञ्] स्वीकार करना, अनुमति देना, देखो-प्रास्कायिक/अङ्ग निरीक्षक एक्स रे यन्त्र के द्वारा पृथक् करना।
शरीर के भीतर छिपी हुई वस्तु को देख लेता है और अतिसर्जनं (नपुं०) [अति सृज+ल्युट] देना, स्वीकार, उदारता, सौगान्धिक मनुष्य पृथ्वी के भीतर छिपे हुए/दबे हुए वियोग।
पदार्थों को जान लेता है, फिर यदि अतीन्द्रज्ञान का धारक
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