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गुणस्थल:
३५८
गुणैकवपुषं
तूर्यगुणस्र्थेऽतो भवेत् प्रपूतिर्भवसिन्धुसेतो। (सम्य० पृ० गुणार्णवः (पुं०) गुण की अन्तिम सीमा। (जयो० ११/४२) १२५)
गुणार्पणं (नपुं०) गुणों का आरोपण। 'गुणानामर्पणा तद्गुणारोपो गुणस्थलः (पुं०) गुणस्थान। देवायुषो बन्धनमप्रभत्तगुणस्थलानां ___भवति' (जयो० १/३२) क्रियते जगत्तः। (सम्य० १२०)
गुणानुसारः (पुं०) गुणों के अनुसार। गुणस्थानं (नपुं०) गुणों का स्थान, गुणों का आधार। मोह गुणावती (स्त्री०) गुण समूह। (सुद० २/३०)
और योग के निमित्त से आत्मा के परिणामों में तारतम्य' गुणालयः (पुं०) गुणाश्रय, गुणों का स्थान। (जयो० ७/२) (जयो० द्वि० २८/१४) गुणानां शील संयमादीना स्थानं गुणाश्रयः (पुं०) गुणाधार, गुणों का स्थान, गुणालय। (सुद० गुणस्थानम्' (जयो० वृ० २८/१४)
३/१०) 'निर्दोषरूपाय गुणाश्रयाय' (भक्ति० २१) गुणहीन (वि०) गुणों से रहित, ज्ञान दर्शन और चारित्रादि का गुणास्पदः (पुं०) गुणों का स्थान। (जयो० ९/५) अभाव। (जयो० ६/६९)
गुणिका (स्त्री०) [गुण+इन+कन्+टाप्] सूजन, रसौली, गिल्टी। गुणहीनखट्वः (पुं०) बिना बुनी खाट रस्सी से रहित खाट। गुणिगुणः (पुं०) गुणियों के गुण। गुणीनां पूज्यपुरुषाणां गुणेषु (दयो० ८९)
शीलेषु' (जयो० ३/२) गुणाकरः (पुं०) गुणों की खान। 'गुणानामकरः संचयो यत्र' गुणिजनः (पुं०) ज्ञानीजन, गुणिपुरुष। 'गुणिजनेषु पुनर्बहुमूल्यता' (जयो० २४/५२)
(समु० ७/१५) गुणाढ्य (वि०) गुणों की समृद्धि।
गुणित (वि०) संग्रहीत, प्रारम्भ। 'कुसुम-गुणित-दामनिर्मलं गुणाधारः (पुं०) गुणवान्, योग्य व्यक्ति, गुणशील व्यक्ति। सा' (जयो० १०/११३) १. गिना हुआ, गुणा किया गया। गुणाधिकारः (पुं०) गुणभूमिका क्षमादि के अधिकार। 'गुणानां २. गुणवत्तार (जयो० १/३९)
क्षमादीनामधिकार:' (जयो ० ७० २७/२) | गुणितीरः (पुं०) गुणों जनों से घिरा, १. गुणयुक्त। गुणितीरं गुणानधिकोराऽधिकरणं यत्र तां गुणभूमिकामित्यर्थः' (जयो० गुणयुक्तस्तीरो यस्य' (जयो० ६/५८) वृ० १४८६)
गुणिन् (वि०) [गुण+ इनि] गुण वाला, गुणी, गुणशाली। गुणाधीनं (नपुं०) गुण राग।
गणिनि (स्त्री०) गुणशालिनी। 'यदि गणिनि स्वर्गेऽस्य विचारो' गुणाधीनता (वि०) गुणानुरागता। (जयो० वृ० २७/५३)
(जयो० २२/६२) गुणाननुवदता (वि०) गुणानुवाद करने वाला, गुण प्रशंसक। गुणिवर्गः (पुं०) ज्ञानी समूह, विद्वत् समूह। (सुद० ४/३५) (जयो० १६/७०)
गुणिवरः (वि०) गुणीश, गुणवत् शिरोमणि। (जयो० ३/८९) गुणानुरागः (पुं०) गुणाधीन, गुणों के प्रति आसक्ति। गुणी (स्त्री०) अङ्गी, अवयवी। (जयो० ३/८९) वैशेषिक दर्शन गुणानुरागवृत्तिः (स्त्री०) गुणों के प्रति अनुराग जन्य प्रवृत्ति। गुण को गुणी से भिन्न मानता है, जैसा कि आत्मा का (जयो० २७/५३)
ज्ञान और आकाश का शब्द गुण क्रमशः आत्मा और गुणानुरागी (वि०) अनुरञ्जित, गुणों के प्रति रागवान्। (जयो० आकाश से भिन्न है।
१७/५८) 'अनुरञ्जितः सन् गुणानुरागी भवन्' (जयो० गुणीभर्तृ (वि०) गुणवान्, गुणशाली। गुणी गुणवान् भर्ता ११/४) 'गुणानुरागी करमर्पयामि' (जयो० १७/५८)
स्वामी यस्य' (जयो० वृ० ४/५) गुणाभिषेकः (पुं०) वृद्धिकरण दीक्षा प्रयोग, दीक्षा प्रयोग। | गुणीश (वि०) गुणिवर, गुणवत्, शिरोमणि, गुणशाली। (जयो०
(जयो० १६/२५) शरीरिवर्गस्य तमां विवेकहान्या महान्याग ३/८९) गुणाभिषेकः। (जयो० १६/२५)
गुणीशील (वि०) प्रशस्त, गुण युक्त। (जयो० ६/५८) गुणवन्तो गुणानुमानिन् (वि०) गुणानुरागी। (जयो० १२/४५)
गुणिनो वसन्ति यतः, तथैव गुणीशाली प्रशस्तः। (जयो० गुणानुवादः (पुं०) गुण विवेचन, गुण संकीर्तन। (जयो० वृ०६/५८) ६/७०)
गुणैकबन्धुः (पुं०) गुणों का स्थान, गुणाधार। गुणस्तस्येकोऽद्वितीयो गुणान्वयः (पुं०) गुण युक्त। (सुद० १/१)
बन्धुस्तस्य' (जयो० वृ० १/४९) । गुणान्वित (वि०) गुणयुक्त। (जयो० ३/७६)
गुणैकवपुषं (नपुं०) सुन्दर देह, गुणमय शरीर। (जयो० ६/२७)
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