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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणैकसत्ता ३५९ गुप्तः (पुं०) वैश्यवर्ण 'गुप्तो वैश्यवर्णः सञ्जतो' (जयो० १८/५०) गुप्तकः (पुं०) [गुप्त कन्] संधारक, प्ररक्षक। गुप्तपयोधरः (पुं०) आच्छादित स्तन। (वीरो० २१/२) गुप्तिः (स्त्री०) [गुप्+क्तिन्] रक्षा, निग्रह, गोपन, आच्छादन, निरोध, प्रच्छादन, झम्पन, प्रवेशन, रक्षण। मन, वचन और काय की प्रवृत्ति का निरोध। 'सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः' (न० सू० ९/४) १. आत्म रक्षण का नाम। 'यतः संसारकारणादात्मनो गोपनं सा गुप्तिः ' (स०सि० ९/२) 'गुत्ती जोणणिरोहो' (कार्ति० ९७) 'गुप्यतेऽनयेति संरक्ष्यते सा गुप्तिः ' २. बिल, गुफा, कन्दरा, ३. कारागार, बन्दीगृह। ४. छिपाना, लुकाना, ढकना। ५. म्यान, छोटी तलवार की म्यान। गुप्तिकर (वि०) गुप्ति का पालन करने वाले। गुप्तित्रयात्मक (वि०) त्रिविध गुप्तियों वाले। (जयो० वृ० गुणैकसत्ता (स्त्री०) गुणों की प्रधानता, पातिव्रत्यादि गुण से युक्त। (सुद० २/६) गुणों से गुम्फित। गुणैषणा (स्त्री०) सद् गणान्वेषिणी, उत्तम गुणों की इच्छा। (जयो० १३/४३) गुणोत्पादिक (स्त्री०) गुणवती। (जयो० ६/८२) गुणोदयः (पुं०) गुणों का प्रादुर्भाव। मानवर्जितमपरिमितपरिणाम' (जयो० २०/७०) गुणोरूपूर्ति (स्त्री०) गुणों की श्रेष्ठ पूर्ति। (सम्य० ५८) गुणोल्लसत् (वि०) गुणों से सुशोभित। 'गुणेनायुर्बलेनोल्लसति प्रभवति' (जयो० २३/३१) गुणौघः (पुं०) गुण समूह। गुणः क्षमादि: औघ: समूहः (जयो० १/३२) गुण्ठ् (सक०) परिवृत्त करना, घेरना, लपेटना, परिवेष्टित | करना। गुण्ठनं (नपुं०) [गुण्ठ+ ल्युट्] छिपाना, ढकना। गुण्ठित् (वि०) [गुण्ठ्+क्त] आवृत, परिवेष्टित, घिरा हुआ, आच्छादित। गुण्ड् (सक०) ढकना, छिपाना, पीसना, चूर्ण करना। गुण्डकः (पुं०) [गुण्ड्+अच्+कन्] चूर्ण, धूल, रज। गुण्डिकः (पुं०) [गुण्ड्+ठन्] आटा, चूर्ण, भोजन। गुण्डित (वि०) पिसा हुआ, आच्छादित, ढका हुआ। गुण्य (वि०) [गुण+यत्] प्रशस्य, उपयुक्त, समीचीन, वर्णन योग्य। गुत्सकः (पुं०) [गुष्+स+कन्] गट्ठर, गुच्छ, ग्रन्थ का अनुच्छेद। गुद् (सक०) खेलना, क्रीड़ा करना। गुदं (नपुं०) गुदा। गुदकीलं (पुं०) बवासीर। गुद-कीलकः (पुं०) बवासीर। गुद्गुदानं (नपुं०) मृदुल। (जयो० २७/१२) गुदग्रहः (पुं०) कब्ज, मलावरोध। गुदपाकः (पुं०) गुदा की सूजन। गुदस्तम्भः (पुं०) कब्ज। गुध् (सक०) लपेटना, ढकना, वेष्टित करना। गुन्दलः (पुं०) शब्द विशेष, ढोल का शब्द। गुप् (सक०) रक्षा करना, बचाना। गुपिलः (पुं०) १. रक्षक, २. नृप। गुप्त (भू०क०कृ०) अनभिव्यक्त, रक्षित, संयुक्त, अदृश्य। (वीरो० १२/१८) 'गुप्तोऽपि सन् धातुगतो यथार्थः।' (जयो० १६/४२) गुप्तिभाग (वि०) गुप्तांगों का भोक्ता। उत्कोच भागी, गोपनभागी। 'गुप्तिरुत्कोचस्तं भजतीति गुप्तिभाग।' (जयो० वृ०३/१५) गुफ्/गुम्फ् (सक०) गूंथना, बांधना, लपेटना, रचना, बनाना। गुम्फित (भू०क०कृ०) बांधा हुआ, बुना हुआ। गुम्फः (पुं०) [गुम्फ्+घञ्] बांधना, गूंथना। गुर (सक०) १. प्रयत्न करना, चेष्टा करना। २. क्षति पहुंचना। गुरु (वि०) अत्यधिक, भारी, बोझल, प्रशस्त, दीर्घ, लम्बा, विस्तृत, महत्त्वपूर्ण, आवश्यक प्रभावशाली, आदरणीय। गुरु (वि०) अध्यापक, शिक्षक, ज्ञान देने वाला। (जयो० ११/२६) १. बृहस्पति, वृषभदेव, ब्रह्मा। (जयो० ५/३२) गुणाति शास्त्रार्थमिति गुरुः। गुरोरनुग्रहप्राप्त्या समवापाच्छतामथ। (जयो० २८/१) गुरोः बृहस्पतेः, गुरोर्वृषभदेवस्य आदि तीर्थंकर ऋषभदेव, जैन धर्म के आद्यप्रवर्तक, आदि गुरु भी उन्हें कहा जाता है। (जयो० १/२) २. सच्चे गुरु-रत्नत्रय विशुद्ध। ३. स्थूलतर, विपुल। (जयो० ८/२) 'गुरुर्नितम्ब: स्विदुरोजबिम्बः' (जयो० ११/२४) 'स्वित्तत उरोजबिम्बोऽपि गुरुरस्ति' (जयो० वृ० ११/२४) 'गुरोनितम्बाबलिपर्वणां' (जयो० ११/२५) * गुरु-सर्वश्रेष्ठ (जयो० वृ० ११/२७) गुरुणां पुरुणामाण ऋषभदेव (जयो० १/२) * गुरु-पिता-'गुरुमाप्य स वै क्षमाधरं सुदिशो मातुरथोदयन्नरम्। (सुद० ३/२०) * गुरुदेव (सुद० १/९) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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