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गवाक्षः
३५१
गाण्डिवः
गवाक्षः (पुं०) १. झरोखा, रोशनदान, जालक। २. वानर, गहनं (नपुं०) गर्त, गह्वर, गुफा।
बन्दर। गवाक्षीविन्द्रवारुण्यां पुंसि जालककीशयोः इति वि० गहनावनि (स्त्री०) गहनभूमि, वनभूमि। (जयो० १३/५३) (जयो० २४/५०)
'पलितेव पुनः प्रवेणिका विजरत्याः गहनावने रतः। (जयो० गवाक्षपूर्णः (पुं०) १. झरोखों से परिपूर्ण, २. वानरों से पूर्ण। १३/५३) गवाग्रं (नपुं०) ग्राम समूह।
गह्वर (वि०) गर्त, गड्डा, गुफा, कुहर। (जयो० १०/७) गवादनं (नपुं०) चरगाह क्षेत्र, गोचर भूमि।
गभीरतर। (जयो० १४/५८) अहो गिरेर्गह्वरमेव सौधमरण्यगवादनी (स्त्री०) गोचरभूमि।
देशेऽस्य पुरप्रबोधः।' (सुद० वृ० ११७) गवाधिका (स्त्री०) लाख।
गह्वरी (स्त्री०) गुफा, कंदरा, खोह। गवाह (वि०) गो का मूल्य।
गह्वरीप (वि०) गरिष्ठ। रतिप्रतीपश्च निशासु दीपः शमी स गवाशन: (पुं०) मोची, चर्मकार।
गीयाद् गुणगह्वरीपः। (सुद० वृ० ११७) गवाश्वं (नपुं०) बैल एवं घोड़े।
गा (स्त्री०) [गौ डा] गाना वाणी, बोलना। (सुद० ) 'मातुः गवाकृतिः (वि०) गाय की आकृति वाला।
स्वरे गातुमभूत्' (जयो० ९८४८३७) (वीरो०५/१) श्लोक गवानृतं (नपुं०) अल्पक्षीर वाली गो को अधिक क्षीर वाली कहना। गाथा। (सुद० १२३) गातुं कतु लग्ना। गातुमारेभे (वीरो० गवालीकं देखो ऊपर। गो के प्रति झूठ बोलना।
५/१७) गविनी (स्त्री०) गो समूह।।
गाङ्ग (वि०) [गङ्गा+अण्] गंगा में होने वाला। (समु० ३/१०) गवीन्द्रः (पुं०) ग्वाला, गोपालक।
गङ्गाभ्कर (पुं०) गङ्गा प्रवाह, गङ्गा गति। (समु० ३/१०) गवीश्वरः (पुं०) गोपालक। सपदि मंथगुणेन गवीश्वरो यदिव गाङ्गटः (पु.) एक प्रकार की मछली। दन उपैति नवोद्धृतम्। (जयो० वृ० २५/६३)
गाङ्गायनि (पुं०) भीष्म। गवीशः (पुं०) गोपालक।
गाङ्गेय (वि.) [गङ्गा ढक्] गंगा में उत्पन्न होने वाला। गवेडुः (पुं०) चारा, घांस।
गाजरं (नपुं०) गाजर। गवेष् (सक०) खोजना, पूछना, प्रयत्न करना।
गाञ्जिकायः (पुं०) बत्तख। गवेष (वि०) [गवेष्+अच्] खोजने वाला, पूछताछ वाला। गाढ (भू०क०कृ०) [गाह+क्त] १. गहरा, गम्भीर, सघन, गवेषः (पुं०) पूछताछ, खोज।
प्रबल, प्रचण्ड, प्रगाढ, अत्यधिक। 'पीत्वाऽऽतनं यन्मदमाप गवेषणं (नपुं०) [गवेष्+ ल्युट्] खोज, प्रसमीक्षण। (जयो० गाढम्।' (जयो० १६/३२) २. स्नान युक्त, गोता लगाया १३/७१)
हुआ। गवेषणा (स्त्री०) गृहीत अर्थ का अन्वेषण।
गाढं (अव्य०) ध्यानपूर्वक, प्रचण्डता से, बलपूर्वक। गवेषित (वि०) [गवेष् क्त] पूछा गया, खोजा गया, अन्वेषण | गाढता (वि०) सघनीभूत, अत्यधिकता। (जयो० वृ० १३/४८) किया गया।
गाढदृष्टि: (स्त्री०) तीव्र विक्षेप। गव्य (वि०) [गो+यत्] उपयुक्त गायों के लिए ठीक। गाढमुष्टि (वि०) लोलुपी, लालची, बन्द मुष्टि वाला। (जयो० गव्य (वि०) गोदुग्ध, गाय का दूध। 'पयो गव्यं गोदुग्धमिव ७/२१) भवति।' (जयो० वृ० २/७८)
गाढान्धकारः (नपुं०) प्रगाद् अन्धकार, सघन अन्धकार। गव्यूत देखो नीचे गव्यूति।
गाढालिङ्गन (नपुं०) दृढ आलिंगन, अत्यधिक दबाना, अधिक गव्यूतिः (स्त्री०) दो कोस, दूरी का एक माप। 'दो धणुसहस्साई स्नेह दर्शाना। गाउयं' दो धनुष को गव्यूत कोश।
गाणपत (वि०) गण से सम्बन्धित। गह् (सक०) पहुंचना, सघनता होना।
गाणपत्य (वि०) गण का पूजक। गहन (वि०) [गह् + ल्युट्] १. गहरा, सघन, साद्र, अभेद्य, | गाणिक्यं (नपुं०) [गणिकानां समूह] गणिका समूह।
दुर्गम, अत्यधिक। 'हेऽपयोग-गहनोदधिं' (जयो० ४/३) गाण्डिवः (पुं०) [गाण्डिरस्त्यस्य संज्ञायां व पूर्वपद-दी? २. कठोर, दृढ़, कष्टकर।
विकल्पेन] अर्जुन का बाण।
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