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गर्वाट:
३५०
गवा
गर्वाटः (पुं०) [ग+ अट्+अच्] चौकीदार, पहरेदार, द्वारपाल। - गलन्तिका (स्त्री०) छोटा घड़ा, घटिका, लुटिया। गर्विष्ठ्य (वि०) १. अहंकारी, अभिमानी। २. अपूर्व, अत्यधिक। गलमेखला (स्त्री०) हार।
वामाझ्या परिभर्त्सितः स्ववपुषः सौन्दर्यगर्विष्ठयसा' (सुद० ९८) गलवार्त (वि०) स्वस्थ, निपुण। गहू (अक०) निन्दा करना, कलंक लगाना ०अपमानित गलव्रतः (पुं०) मयूर, मोर। ___ करना।
गलशुण्डिका (स्त्री०) उपजिह्वा, गलकण्ठी। गर्हणं (नपुं०) निन्दा, अपमान, कलंक, दोष। 'कस्याप्यहो गलशुण्डी (स्त्री०) ग्रीवा रोग। ___ गर्हणत: समेत सम्प्रार्थ्यते नाथ। मृषा क्रियेत्। (भक्ति०४३) गलसंलग्न (वि०) गले में पड़ी हुई। 'गले तासां कण्ठे संलग्नौ गर्हणीय (वि०) [गर्ह अणीयर] निन्दनीय। 'यतोऽतिगः कोऽपि भुजौ यस्य स' (जयो० वृ० १३/८१)
जनोऽनणीयान् पापप्रवृत्तिः खलु गर्हणीया।' (वीरो०१७/२२) गलस्तनं (नपुं०) १. गले के स्तन, अज के गले का स्तन। २. 'संसार एषोऽस्ति विगर्हणीयः' (वीरो० १७/१९)
अर्धचन्द्राकार बाण। ३. गले से पकड़ना। गर्दा (स्त्री०) [गर्ह+अ+टाप्] 'गर्हणं गर्दा कुत्सा' निन्दा, गलस्तनी (स्त्री०) अर्धचन्द्र। कलंक, अपमान। (जयो० वृ० १/१४५)
गलाङ्करः (पुं०) गले का रोग, कण्ठरोग। गर्हित (वि०) निन्दित, घृणित। कर्कशवचन। (दयो० ११८) गलालङ्करणं (नपुं०) गले का आभूषण, हार। 'वीरोदयोदारगर्हितभार्या (स्त्री०) निन्दित स्त्री। 'गर्हिता भार्या येन स विचारचिह्न सतां गलालङ्करणाय किन्ना' (वीरो० १/१०) निन्दितस्त्री' (जयो० २/१५२)
गलालककृति: (स्त्री०) कण्ठशोभा। भटाग्रणीः प्रागपि गल् (अक०) टपकना, गलना, रिसना, पसीजना, निकलना। चन्द्रहास यष्टिं गलालकृतिमाप्तवान् स। (जयो०८/२४)
(जयो० १५/१९) 'गलंतो निर्गच्छन्तो' (जयो० वृ० १५/१९) गलि: (पुं०) मट्ठा बैल, जो चलने में उचित न हो। 'गिलत्येव गलः (पुं०) [गल्+अच्] २. गला, कण्ठ, गर्दन। (जयो० वृ० ___ केवलं न तु वहति गच्छति वेतिगलि:।' ४/३३) २. मछली पकड़ने का कांटा।
गलित (भू०क०कृ०) [गल्+क्त] निर्गत, निकला हुआ, टपका गलकन्दल: (पुं०) कण्ठनाल, गला, ग्रीवा। (जयो० १३/६३) हुआ। (जयो० वृ० १२/३२)
(जयो० ५/५०) 'पराजितास्या गलकन्दलेन' (जयो० गलितकः (पुं०) नृत्य विशेष। ११/४७)
गल्भ् (अक०) विश्वस्त होना, आत्मस्थ होना। गलकम्बलः (पुं०) बैल की गर्दन के नीचे लटकने वाली गल्भ (वि०) [गल्भ+अच्] साहसी, आत्मविश्वासी। झालर, बलिवर्दग्रीव झालर।
गल्या (वि०) [गल्-यत्-टाप्] कण्ठ समूह। गलानां कण्ठानां समूहः। गलगण्डः (पुं०) गण्डमाला, रोग विशेष, गले में गांठ। गल्लः (पुं०) गला, गाला गलग्रहः (पुं०) गला पकड़ना, गला घोंटना, श्वांस अवरोध। गल्लक: देखो ऊपर। गलग्रहणं (नपुं०) श्वांसावरोध, गल रुंधना।
गल्लकः (पुं०) १. पुखराज, २. नीलमणि। गलचर्मन् (नपुं०) अन्ननली, गला।
गल्लदेशः (पुं०) कपोल। (जयो० १६/७९) गलद्विरेफ: (वि०) निकले हुए भ्रमर। 'गलन्तो निर्गच्छन्तो । गल्लकफुल्लकः (पु०) गाल फुलाना। 'कुशीलवा द्विरेफा भ्रमरा' एवाश्रयो' (जयो० वृ० १५/१९)
गल्लकफुल्लकाः' (वीरो० ९/२६) गलदेशः (पुं०) कपोल। (जयो० १६/७९) 'कपोलयोर्गल्ल- गल्लर्कः (पुं०) मदिरा पीने का प्याला। देशयोः'
गल्वर्कः (पुं०) [गर्लुमणिभेदः तस्य अर्को दीप्तिरिव] १. गलद्वारं (नपुं०) मुख।
स्फटिक, वैडूर्यमणि। २. शकोरा, प्याला। गलनं (नपुं०) [गल+ ल्युट्] टपकना।
गल्ह् (अक०) कलंक लगाना, निन्दा करना। गलनाल: (पुं०) गला, कण्ठ। 'गानमानविलसद्गलनाला' (जयो० गवः (पुं०) झरोखा, रोशनदान। ५/३९)
गवयः (पुं०) [गो+अय्+अच्] बैल के सदृश। गव+अल्। उकञ्। गलभूषणं (नपुं०) हार, गले का आभूषण, कण्ठमाला (जयो० गवा (पुं०) ग्वाला, गोपाल। 'सुतो बभूवाथ गवां स पत्युः'। वृ० १५/७६)
(सुद० ४/१८)
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