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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गगनं ३४१ गच्छः गगनं (नपुं०) [गच्छन्त्यस्मिन्-गम्+ल्युट, ग आदेश:] नभ, गङ्गराज (पुं०) सेनापति गङ्गराज। सेनापतिर्गङ्गराजश्चास्य आकाश, देवपथ, गुह्यकाचरित, अवगाहन, अन्तरिक्ष। लक्ष्मीपतिः प्रियाः। जिनपादाब्जसेवायामेवासन विससर्ज तान्।। आगासं गगणं देवपधं गोज्झगाचरिदं अवगाहलक्खणं आधेयं (वीरो० १५/५०) वियापग-आधारो भूमित्ति एयट्ठो (धव०४/८) आधेय, | गड़हेमाण्डि (पुं०) नाम विशेष राजा। दोर्बलगङ्गहेमाण्डि मान्धातुर्या व्यापक, आधार, भूमि। धरैव शय्यागगनं वितानम्' (सुद० सधर्मिणी। श्री पदृद-महादेवी बभूव जिनधर्मधुक्।। (वीरो० १/३५) वियत्-गगन (जयो० १८/२२) 'वियति गगने १५/४४) प्रागुत्थितः पूर्वदिशि सञ्जातः' (जयो० वृ० १८/२२) गङ्गा (वि०) मनोहर, रमणीय, सुन्दर। (जयो० वृ० २०/६७) गगनंकष (वि०) गगनचुम्बी, व्योम चुम्बिन्। (जयो० २१/६३) गङ्गा (स्त्री०) [गम्+गन्+टाप्] गंगा नदी, हिमालय से निकलने 'यातीव स्व:पुरीं चेतुं स्व सौधैर्गगनंकषैः।' (दयो० १/१०) वाली मैदानी नदी, गगनापगा। (जयो० वृ० १३/५५) 'श्री गगन-कुसुमं (नपुं०) आकाश पुष्प। अवास्तविक वस्तु के सिन्धु गङ्गान्तरतः स्थितेन' (वीरो० २/८) लिए दिया जाने वाला दृष्टान्त। गङ्गाक्षेत्रं (नपुं०) गंगा का प्रदेश। गगनगड़ा (स्त्री०) सुपर्ववाहिनी, आकाशगङ्गा। 'जयकुमारस्य गङ्गाजः (पुं०) भीष्म, कार्तिकेय। अग्रतः सम्मुखं सुपर्ववाहिनी गगनगङ्गा समवाप।' (जयो० गङ्गातट (नपुं०) गंगा प्रान्त। (जयो० वृ० २०/६४) वृ० १३/५३) गङ्गादत्तः (पुं०) भीष्म। गगनगतिः (पुं०) देव, विद्याधर। गङ्गादेवी (स्त्री०) गङ्गा नामक देवी। 'गङ्गत्यभिराम मनोहरं गगनचरः (वि०) आकाश में विचरण करने वाला, नक्षत्र, नाम यस्यास्सा देवी' (जयो० वृ० २०/६४) सती सुलोचना ग्रह, पक्षी। के उच्चरित नमस्कार मंत्र के प्रभाव से स्त्रीरूप को गगनचुम्बी (वि०) आकाश को स्पर्शित करने वाली। (दयो० १/१०) छोड़कर गङ्गादेवी हुई। विपिनविहारे पन्नग-दष्टाभ्यतीत्य गगनध्वजः (पुं०) १. सूर्य, रवि, दिनकर। २. मेघ। नारीरूपमकष्टात्। सुदृशा घोषितमनुप्रसङ्गाज्जाताहमहो देवी गगनपतिः (पुं०) सूर्य, रवि, दिनकर। गङ्गा।' (जयो० २०/६७) गगनविहारि (वि०) आकाश में विचरण करने वाले। गङ्गाधरः (पुं०) महादेव, शिव, शंकर। 'सद्धार गङ्गा धरमुग्ररूपं गगनसद् (वि०) आकाश में स्थित होने वाला। तवेममुच्चस्तनशैलभूपम्। दिगम्बरं गौरि! विधेहि चन्द्रचूडं गगनसिन्धु (स्त्री०) आकाश गङ्गा। करिष्यामि तमामनन्द्रः।। (जयो० १६/१४) 'गलभूषणमेव गगनस्थ (वि०) नभस्थ, आकाश में स्थित। गङ्गा तां धरतीति तं तथैव सती धारा यस्यास्तां गङ्गा गगनस्थित (वि०) नभस्थ, आकाश में विद्यमान। धरतीति वा तामेव दिगम्बरं विधेहि। (जयो० वृ० १६/१४) गगनस्पर्शनः (पुं०) पवन, वायु, हवा। गङ्गापगा (स्त्री०) गङ्गा नदी। 'गङ्गापगासिन्धुनदान्तरत्र' (सुद० गगनाग्रं (नपुं०) आकाश का उन्नत भाग, उच्चतम प्रदेश। १/१४) गगनाङ्गणं (नपुं०) आकाश भाग, नभाङ्गण। 'गगनाङ्गमाशु गङ्गाप्रवाहः (पुं०) सुरस्रोत, (जयो० १५/ चञ्चलैर्ध्वजिनी। (जयो० १३/३७) गङ्गापुत्रः (पुं०) गङ्गा का पुत्र, भीष्म, कार्तिकेय। गगनाञ्चः (पुं०) विद्याधर, आकाशगामी। 'गगनाञ्चानामा- गङ्गाभृत (पुं०) १. शिव, २. समुद्र। काशगामिनां मनुष्याणां पङ्किवर्तते' (जयो० वृ० ६/७) गङ्गामध्यम् (नपुं०) गंगा तट। गगनापगा (स्त्री०) गङ्गानदी, आकाशनदी, स्वर्ग नदी। गङ्गायात्रा (स्त्री०) पवित्र यात्रा। गगनापगाचयः (पुं०) आकाश गंगा का प्रवाह, गंगा प्रवाह। । गङ्गाक्षुतः (पुं०) भीष्म। (जयो० १३/५५) गङ्गाहृदः (पुं०) एक तीर्थ। गगनाध्वगः (पुं०) सूर्य, ग्रह, नक्षत्र। गच्छः (पुं०) १. वृक्ष, २. गण, संघ, समुदाय। तिपुरिसओ गगनाम्बुः (नपुं०) वर्षा का जल। गणो, तदुवरि गच्छो।' (धव०१३/६३) साधुसमुदायगगनोदितनगरं (नपुं०) गन्धर्वनगर। आकाशे प्रकटितपुर। (जयो० 'एकाचार्यप्रणेय साधुसमूहो गच्छः। साप्तपुरुषिकी गच्छः। २/१५४) (जैन०ल० ४०५) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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