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कौटिल्य
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कौमुदं
कौटिल्य (वि०) कुटलतापन, वक्रता, दुष्टता। (सुद० १/३४) कौटिल्यः (पुं०) कौटिल्य नामक अर्थशास्त्र। कौटिल्यक (वि०) वक्रता, कुटलतापन। 'मृषासाहस-मूर्खत्व____ लौल्य-कौटिल्यकादिवत्' (जयो० २/१४५) कौटुम्ब (वि०) [कुटुम्बं तद्भरणे भोजनमस्य कुटुम्ब ठक्]
पारिवारिक सम्बन्ध, गृहस्थ से सम्बन्धित। कौम्बिक (वि०) [कुटुम्ब नद्भरणे प्रसूत: कुटुम्ब-ठक्]
परिवार बनाने वाला, गृहस्थ गत कार्य वाला। कौणप: (पू०) [कुणप+अण्] पिशाच, राक्षस। कौतुकं (नपुं०) इच्छा, कुतूहल, कामना, उत्सुकता, आवेश,
आतुरता। (सुद० ३/३३, सुद० २१) विनोद-'कौतुकात् किल निरागसोऽङ्गिन्' (जयो० ४/३७) (जयो० २/१३४) 'कोतुकाद् विनोदवशात' (जयो० वृ० २/१३४) फल, परिणाम-'कोतुकं को तु कस्मान्न' (जयो० वृe ३/६८) पुष्प कौतुकत्व भिलाषोऽपि कुसुमे नर्महर्षयोः इति
विश्वलोचन:' कौतुकगृह (नपु०) आमोद भवन। ( भक्ति०१३) कौतुकधूक (वि०) विनोदवान्, उत्सुकता वाला! (जयो०
११/९०) 'समन्ततः कौतुकधृक् सुमान्यम्' (जयो० ११/९०) कौतुकपरिपूर्ण (वि०) १. कौतुकता से युक्त, २. पुष्पों से
परिपूर्ण। कौतुकपरिपूर्णतया याऽसौ षट्पदमतगुजाभिमता'
(सुद० ८२) कौतुकपूर्ण (वि०) कौतुकता से युक्त, विनोद युक्त। (सुद०
२/७३) कौतुकभाजि (वि० ) कौतुक के भण्डार। 'स्वरूपत: कौतुकभाजि
सारं नवे वयस्तत्र पदं दधार' (समु०६/२७) कौतुकभूमि (स्त्री०) हर्षदायक स्थान। कौतुकभूमिरमुष्या
नयनानन्दाय विलसतु नः। (सुद० ८४) कौतुकमङ्गलं (नपुं०) महान् उत्सव. विनोद क्रिया, हर्ष भाव। कौतुकवती (वि०) विनोदवती! (सुद०८२) कौतुकसंग्रहः (पुं०) पुष्प समूह। कौतुकानां पुष्पाणा संग्रहः ___ संप्राप्ति: (जयो० २४/७) कौतुकसम्विधानं (नपु०) विनोदछटा, हर्ष भाव की प्रमुखता।
(समु० १/१३) 'पदे पदे कौतुकसम्विधाना' (समु० १/१३) कौतुकसेवा (स्त्री०) १. आनन्दभाव, हर्ष भाव, विनोदपूर्ण
सेवा। (जयो० ४/१५) २ पुष्प उपलब्धता-कौतुकानि
पुष्पाणि च तेषां सेवया उपलब्ध्या सहिता' (जया० वृ०
४/१५) कौतुकाशुगः (पुं०) काम, कामदेव। २. पुष्पबाण कौतुकाशुगेन
कामदेवेन पुष्पबाणेन' (जयो० वृ० २१/६) 'कौतुकस्य
कुसुमस्य आशुगो बाणो यस्य' (जयो० वृ० ५/६०) कौतुकिता (वि०) १. कौतुकता की व्याप्ति, पुष्पों की व्याप्ति।
'स्वयं कौतुकितस्वान्त कान्तमामेनिरेऽङ्गना' (सुद० ८३) 'कौतुकानि पुष्पाणि विद्यन्ते यत्र स कौतुकी तस्य भावः
कौतुकिता विनोदसहिता च' (जयो० वृ० ३४/४०) कौतुकोत्पत्तिः (स्त्री०) हर्षोत्पत्ति, विनोदोत्पत्ति, आनन्दभाव,
उत्पन्न होना। 'सत्कौतुकोत्पत्तिभुवोऽमुकस्य' (समु० ६/१८) कौतूहलं (नपुं०) [कुतुहल आण] इच्छा, जिज्ञासा, कामना,
उत्सुकता, उत्कण्ठा। कौत्कुच्य (वि०) कुचेष्टा, अशुभ भावना। कौन्तिक (वि०) [कुन्तः प्रहरणमस्य ठञ्] कुन्त/भाला चलाने
वाला। कौन्तेयः (पुं०) [कुन्त्याः अपत्यं ठक्] कुन्ती का पुत्र युधिष्ठिर।
भीम, अर्जुन भी! कौप (वि०) [कूप+अण] कुए से सम्बन्धित, कुएं से निर्गत,
कुएं से प्राप्त। कोपाकुलः (पुं०) कौप समूह, क्रोध युक्ता (१२/६) कौपीनं (नपुं०) [कूप खञ्] १. योनि, उपस्थ, गुप्ताङ्ग,
गुह्येन्द्रिय। २. लंगोट, खण्डवस्त्र। (जया० १/३८) कौपीनभावः (पु०) लंगोटी, वस्त्र चिल्लिका। 'कौ पृथिव्यां
पीनभावं प्रफुल्लावस्थामुत वनवासिनां वानप्रस्थानाम्' (जयो० वृ० १८/४७) 'कौपीनस्य वस्त्रचिल्लिकाया भावमयते शेषवस्त्रादिपरिग्रहं परित्यजति' (जयो० वृ
१८/४७) कोज्य (वि०) [कुब्ज+ष्यञ्] वक्रता, कुटिलता, कुबड़ापन। कौमार (वि०) [कुमार+अण] तरुण, (वीरो०८/१७) (जयो०
३/४२) (सम्य०२१) (जया० ८/१७) 'युवा, कुवारपन,
बाल्य। (जयो० २३/२८) कौमारकं (नपुं०) तारुण्य! (समुः ६/१७) कौमारकालः (पुं०) कुमारवस्था, तरुणकाल, लड़कपन। (दयो०
११२) कौमारिकेयः (वि०) [कुमारिका ढक्] अविवाहिता स्त्री का पुत्र। कौमाल्यगुणं (नपुं०) कुमारता के गुण। (सुद० ३/२९) कौमुदं (नपुं०) श्वेत कमल। (वीरो० १/३) 'कौमुदस्तोममु
रीचकार' रात्रि में खिलने वाली कमलिनी। (सुद० ९९) कौमुदमेधयन्तम् (जयो० ११॥
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