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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कौटिल्य ३२० कौमुदं कौटिल्य (वि०) कुटलतापन, वक्रता, दुष्टता। (सुद० १/३४) कौटिल्यः (पुं०) कौटिल्य नामक अर्थशास्त्र। कौटिल्यक (वि०) वक्रता, कुटलतापन। 'मृषासाहस-मूर्खत्व____ लौल्य-कौटिल्यकादिवत्' (जयो० २/१४५) कौटुम्ब (वि०) [कुटुम्बं तद्भरणे भोजनमस्य कुटुम्ब ठक्] पारिवारिक सम्बन्ध, गृहस्थ से सम्बन्धित। कौम्बिक (वि०) [कुटुम्ब नद्भरणे प्रसूत: कुटुम्ब-ठक्] परिवार बनाने वाला, गृहस्थ गत कार्य वाला। कौणप: (पू०) [कुणप+अण्] पिशाच, राक्षस। कौतुकं (नपुं०) इच्छा, कुतूहल, कामना, उत्सुकता, आवेश, आतुरता। (सुद० ३/३३, सुद० २१) विनोद-'कौतुकात् किल निरागसोऽङ्गिन्' (जयो० ४/३७) (जयो० २/१३४) 'कोतुकाद् विनोदवशात' (जयो० वृ० २/१३४) फल, परिणाम-'कोतुकं को तु कस्मान्न' (जयो० वृe ३/६८) पुष्प कौतुकत्व भिलाषोऽपि कुसुमे नर्महर्षयोः इति विश्वलोचन:' कौतुकगृह (नपु०) आमोद भवन। ( भक्ति०१३) कौतुकधूक (वि०) विनोदवान्, उत्सुकता वाला! (जयो० ११/९०) 'समन्ततः कौतुकधृक् सुमान्यम्' (जयो० ११/९०) कौतुकपरिपूर्ण (वि०) १. कौतुकता से युक्त, २. पुष्पों से परिपूर्ण। कौतुकपरिपूर्णतया याऽसौ षट्पदमतगुजाभिमता' (सुद० ८२) कौतुकपूर्ण (वि०) कौतुकता से युक्त, विनोद युक्त। (सुद० २/७३) कौतुकभाजि (वि० ) कौतुक के भण्डार। 'स्वरूपत: कौतुकभाजि सारं नवे वयस्तत्र पदं दधार' (समु०६/२७) कौतुकभूमि (स्त्री०) हर्षदायक स्थान। कौतुकभूमिरमुष्या नयनानन्दाय विलसतु नः। (सुद० ८४) कौतुकमङ्गलं (नपुं०) महान् उत्सव. विनोद क्रिया, हर्ष भाव। कौतुकवती (वि०) विनोदवती! (सुद०८२) कौतुकसंग्रहः (पुं०) पुष्प समूह। कौतुकानां पुष्पाणा संग्रहः ___ संप्राप्ति: (जयो० २४/७) कौतुकसम्विधानं (नपु०) विनोदछटा, हर्ष भाव की प्रमुखता। (समु० १/१३) 'पदे पदे कौतुकसम्विधाना' (समु० १/१३) कौतुकसेवा (स्त्री०) १. आनन्दभाव, हर्ष भाव, विनोदपूर्ण सेवा। (जयो० ४/१५) २ पुष्प उपलब्धता-कौतुकानि पुष्पाणि च तेषां सेवया उपलब्ध्या सहिता' (जया० वृ० ४/१५) कौतुकाशुगः (पुं०) काम, कामदेव। २. पुष्पबाण कौतुकाशुगेन कामदेवेन पुष्पबाणेन' (जयो० वृ० २१/६) 'कौतुकस्य कुसुमस्य आशुगो बाणो यस्य' (जयो० वृ० ५/६०) कौतुकिता (वि०) १. कौतुकता की व्याप्ति, पुष्पों की व्याप्ति। 'स्वयं कौतुकितस्वान्त कान्तमामेनिरेऽङ्गना' (सुद० ८३) 'कौतुकानि पुष्पाणि विद्यन्ते यत्र स कौतुकी तस्य भावः कौतुकिता विनोदसहिता च' (जयो० वृ० ३४/४०) कौतुकोत्पत्तिः (स्त्री०) हर्षोत्पत्ति, विनोदोत्पत्ति, आनन्दभाव, उत्पन्न होना। 'सत्कौतुकोत्पत्तिभुवोऽमुकस्य' (समु० ६/१८) कौतूहलं (नपुं०) [कुतुहल आण] इच्छा, जिज्ञासा, कामना, उत्सुकता, उत्कण्ठा। कौत्कुच्य (वि०) कुचेष्टा, अशुभ भावना। कौन्तिक (वि०) [कुन्तः प्रहरणमस्य ठञ्] कुन्त/भाला चलाने वाला। कौन्तेयः (पुं०) [कुन्त्याः अपत्यं ठक्] कुन्ती का पुत्र युधिष्ठिर। भीम, अर्जुन भी! कौप (वि०) [कूप+अण] कुए से सम्बन्धित, कुएं से निर्गत, कुएं से प्राप्त। कोपाकुलः (पुं०) कौप समूह, क्रोध युक्ता (१२/६) कौपीनं (नपुं०) [कूप खञ्] १. योनि, उपस्थ, गुप्ताङ्ग, गुह्येन्द्रिय। २. लंगोट, खण्डवस्त्र। (जया० १/३८) कौपीनभावः (पु०) लंगोटी, वस्त्र चिल्लिका। 'कौ पृथिव्यां पीनभावं प्रफुल्लावस्थामुत वनवासिनां वानप्रस्थानाम्' (जयो० वृ० १८/४७) 'कौपीनस्य वस्त्रचिल्लिकाया भावमयते शेषवस्त्रादिपरिग्रहं परित्यजति' (जयो० वृ १८/४७) कोज्य (वि०) [कुब्ज+ष्यञ्] वक्रता, कुटिलता, कुबड़ापन। कौमार (वि०) [कुमार+अण] तरुण, (वीरो०८/१७) (जयो० ३/४२) (सम्य०२१) (जया० ८/१७) 'युवा, कुवारपन, बाल्य। (जयो० २३/२८) कौमारकं (नपुं०) तारुण्य! (समुः ६/१७) कौमारकालः (पुं०) कुमारवस्था, तरुणकाल, लड़कपन। (दयो० ११२) कौमारिकेयः (वि०) [कुमारिका ढक्] अविवाहिता स्त्री का पुत्र। कौमाल्यगुणं (नपुं०) कुमारता के गुण। (सुद० ३/२९) कौमुदं (नपुं०) श्वेत कमल। (वीरो० १/३) 'कौमुदस्तोममु रीचकार' रात्रि में खिलने वाली कमलिनी। (सुद० ९९) कौमुदमेधयन्तम् (जयो० ११॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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