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कृपण- बुद्धिः
कृपण बुद्धिः (स्त्री०) विवेकशून्य, अल्पज्ञ
कृपणभाव: (पुं०) कंजूसी का भाव, विवेक में अल्प भाव । कृपणवत्सल (वि०) कृपालु, दयालु । कृपा (स्त्री०) करुणा, दया, अनुकम्पा । (दयो० ५८) 'तिमांशुः कृपयाऽस्य तावदुदिता सम्वर्तते साधुता' (मुनि० १ / २ ) 'यवनृपात्र कृपा त्रपमाणके भवतु' (जयो० ३/११) 'सा तु जीवानुकम्पनम्' (क्षत्र चू०५/३५) कृपया (तृ०ए०) 'ते कृपया कान्तां रजनीं गत्वा' (सुद० वृ०९९) कृपाङ्कुरः (पुं०) हरी घास, दया रूप दूर्वा । 'कृपाङ्कुराः सन्तुं सतां यथैव खलस्य लेशोऽपि मुद्दे सदैव' (सुद० १ / ९ ) 'यत्कृपाकरमास्वाद्यगावो जीवन्ति नः स्फुटम्।' (दयो०
१/४ )
कृपाण (पुं०) [कृपां नुदति नुद् संज्ञायां णत्वम् ] खङ्ग, असि, तलवार । (जयो० ८/५५) 'पाणौ कृपाणोऽस्य नु केशपाश' (जयो० ८/५६) कृपाणो जातो मध्यस्थमाकार उदासीनरूवं वा जमाम' (जयो० वृ० ८/५६) 'कृपणं शब्द के मध्य के अकार को आकार रूप में प्राप्तकर 'कृपाण' शब्द बन गया।
'कण्ठे कृपाणं प्रकरोतु कोपी (दयो० २/१२) कृपाणकः (पुं०) असि, खड्ग, तलवार, यवनृपात्र कृपा माणके भवतुमय्युपयुक्तकृपाणके (जयो० ९/११ ) कृपाण एवं कृपाणको येन तस्मिन् (जयो० वृ० ९/११ ) कृपाणपुत्री (स्त्री०) क्षुरी, क्षुरिका, छोटी गुप्ती । मूर्ध्नि मिलिन्दावलिच्छलेन कृपाणपुत्र क्षिपदिव तेन (जयो० १५/५१) कृपाणपुत्र भूरिकां (जयो० वृ० १४/५१) कृपाणमाला (स्त्री०) असि समूह, खङ्ग समु दाय। 'रणाङ्गणे पाणिकृपाणमाला' (जयो० ८/८) कृपाणानां खङ्गानां माला सैव' (जयो० वृ० ८/८) कृपाणिका (स्त्री०) [कृपाण कन् टाप्] छुरिका, बर्फी, गुप्ती, क्षुरी।
कृपाणी (स्त्री०) छुरी, क्षुरिका, असि पुत्री असिपुत्रिका । 'अतभिप्रेता कृपाणी क्षुरिका मम हृदे चित्तायापि भवत्यहो ' (जयो०] [५/१७) वाणी कृपाणीव न कर्कशायस्मि (जयो० १७/३३) 'वाणी या मर्मच्छेदकरी कृपाणी असिपुत्रिका' (जयो० वृ० १७/३३) 'वाणी कृपाणीव च मर्मभेतुम् (चीरो० १/३८) समस्तु दुर्दैवभिदे - कृपाणी
(समु० १/५)
कृपानुभाव: (पुं०) कृपा दृष्टि, दयाभाव
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कृमिला
कृपान्वित (वि०) कृपालु (वीरो० १४ / ३७) (जयो० वृ० १२/४८)
कृपालता (स्त्री०) दयाभाव दयादृष्टि, समभाव दृष्टि रूप लता (सुद० १३६) कृपालतातः आरव्यं तस्येदं मम कौतुकम् (सुद० १३६ )
कृपालु (वि०) [कृपां लाति कृपा+ला आदाने] करुणाजन्य, करुणा सहित, दया युक्त, सदय।
कृपालुता (वि०) जीवदया भाव युक्त, करुणापूर्ण 'कृपालुतायां जीवदयायां' (जयो० १/२१ )
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कृपावती (वि०) दयालु (वीरो० १२/२७) कृपावान् (वि०) दयावत. दयालु ।
कृपाशनिः (पुं०) कृप रूप वज्र । कृपा सर्वसाधारणेषु उत्पद्यमाना दयैव अशनिर्वज्ञस्तस्य' (जयो० वृ० ३/१९ )
कृपाशील (वि०) प्रकृतप्रसाद, करुणाशील (जयो० वृ० २४/१२२)
कृपी (स्त्री० ) [ कृप् + ङीष्] १. कृपा पात्री । २. कृप की भागिनी, द्रोण की भार्या।
कृपीट: (पुं०) प्याऊ (वीरो० १२ / २७) कृपीसुतः (पुं०) अश्वत्थामा। कृपीपति (पुं०) द्रोण राजा ।
कृपीटं (नपुं०) [कृप+कीटन्] जंगली लकड़ी, २. जल, ३.
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उदर ।
कृमि (वि०) कीट समूह, कीट युक्त
फीट
कृमि (स्त्री०) रोग विशेष, उदर जन्य कीट। कृमिकुलं (नपुं०) कुल, कीट समूह कृमिकोषः (पुं०) रेशम का कोया, रेशम का यूथ । कृमिजं (नपुं० ) अगर की लकड़ी ।
कृमिजा ( स्त्री०) लाल रंग, जो लाख के कीड़ों से उत्पन्न होता है।
कृमिण (वि०) कीटयुक्त, कीड़ों से भरा हुआ। कृमिपर्वत (पुं०) बांमी, कीटों द्वारा निर्मित मिट्टी का एक ढेर । कृमिफल: (पुं०) गूलर वृक्षा
कृमिरागः (पुं०) मल एवं लार की राग १, कृमिच रंग, वस्त्र जगना कृमीणां रागो रञ्जकरसः कृमिरागः '
कृमिरागकम्बलः (पुं०) कीट तन्तुओं से निर्मित कम्बल । 'कृमिभुक्ताहारवर्णतन्तुभिरुतः कम्बलः कृमिराग कम्बलः ' (भ०आ०टी० ५६७)
कृमिला (स्वी०) अधिक सन्तान को उत्पन्न करने वाली (जयो०)