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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृमिखङ्गः ३१२ कृष्णकन्दं कृमिखङ्गः (पुं०) शंख में स्थित मछली। कृषिकर्मार्यः (पुं०) कृषिकर्म जानने वाले आर्य, हल-कर्षण कृमिशुक्तिः (स्त्री०) घोंघा, जो सीप में उत्पन्न होता है, एक में निपुण व्यक्ति। 'हलेन भूमि-'कर्षण-निपुणः कृषिकीट। कार्य:' (त०वृ०३/३६) हल-कुलिदन्तालकादिकृष्युपकरण कृमिशैलः (पुं०) बांबी-बांमी, कीट निर्मित मिट्टी का एक विधानविद: कृषीवला: कृषिकर्मार्य: (त० वा० ३/३६) पर्वताकार ढेर। कृषिकृत् (वि०) कृषि करने वाला किसान। 'कृषिकृतां कृषकाणां कृश (अक०) क्षीण होना, दुर्बल होना। (सुद० २/३२) परिपोषण-संरक्षणम्' (जयो० वृ० २/११३) कृश् (वि०) [कृश् क्त] १. दुर्बल, पतला, क्षीणकाय, बलहीन, | कृषिक्रिया (स्त्री०) भू-क्रिया, स्थलक्रिया। पुण्य प्रभावेण निर्बल। २. छोटा, अल्प थोड़ा, सूक्ष्म। ३. दरिद्र, हीन, पूर्णा कृषिक्रिया अनायासेनैव जातेत्यर्थः' (जयो० वृ० नगण्य। ७/१००) कृशता (वि०) क्षीणता। वक्रत्वं मृदुकुन्तलेषु कृशता कृषिजीविन् (वि०) खेती करके आजीविका चलाने वाला बालावलग्नेष्वरम्। (वीरो० २/४८) कृषक। कृशी (वि०) क्षीण शरीरी, कृश काय वाली। (वीरो० ६/७) | कृषिफलं (नपुं०) खेती का फल/लाभ, धान्य उपज, धान्य कृशाङ्गी (वि०) कृश शरीर वाली, क्षीणकाया। (सुद० २/३२) पैदावार। 'कृशाङ्गया दुरितैकशापी' (सुद० २/३२) 'कृशाङ्गया-तृतीया कृषियन्त्रं (नपुं०) भू यन्त्र, खेती के उपकरण। एकवचन स्त्रीलिंग। कृषियोजना (स्त्री०) भू-योजना। कृशाला (स्त्री०) [कृश्+ला+क+टाप्] बाल। कृषि सेवा (स्त्री०) भू-सेवा, खेती की सेवा। कृशाक्षः (पुं०) पकड़ी। कृषीवलः (पुं०) [कृषि वलच्] हल। (जयो० वृ० २६/९०) कृशाङ्गः (वि०) दुर्बल शरीर वाला, क्षीणकाय युक्त। काश्तकार, खेती से आजीविका करने वाला, किसान कृशालुः (पु०) शिव, शंकर। (दयो० ३६) कृपक, किसान। कृशोदरढ़ (वि०) पतली कमर! कृष्करः (पुं०) [कृष्। कृ-टक] शिव, शंकर, शंभू। कृशोयान (वि०) जाति कृश रूप (जयो० ११/२४) कृष्ट (वि०) [कृष्+क्त] खींचा हुआ, आकृष्ट, कर्पण युक्त। कृशोदरि (वि०) अनुदरि। (वीरो० ४/३८) अपसारित (जयो० १७/६४) हल चलाया गया। कृष् (सक०) खींचना, रेखा बनाना, चीरना, आकृष्ट करना। कृष्टिः (स्त्री०) [कृष्+क्तिन्] खींचना, कर्पण करना, हल 'चकृषुर्जगत्प्रदीपात्ततश्च' (जयो० ६/५६) 'चकृषुराकृष्ट- चलाना। 'कर्शनं कृष्टिः, कर्मपरमाणुशक्तेस्तनुकरणमित्यर्थः। वन्तः' (जयो० वृ०६/५६) 'चकृषुः कृष्टवन्तः' (जयो० अथवा कृष्यते तनूक्रियते इति कृष्टिः (जैन०ल०३६७) वृ०६/१००) 'किसं कम कदं जम्हा तम्हा किट्टी' (कपाय० कृषकः (पुं०) [कृष्+क्वन्] किसान, हाली, हलवाहा। (दयो० पा०वृ०८०८) 'योगमुपसंहत्य सूक्ष्म-सूक्ष्माणि खण्डानि ३६) १. फाली, २. बैल। जयोदय काव्य की टीका में निवर्तयति ताओ किट्टीओ णाम वुति' (जय०ध०१२४३) कृषक के लिए शालिक भी कहा है. 'यथा शालिन्यः कृष्टिकरणाद्धा (स्त्री०) क्रोधवेदनकाल का द्वितीय त्रिभाग। कृषकः स्वक्षेत्रे' (जयो० वृ० २/३१) 'शालिकानां कृष्टिवेदगद्धा (स्त्री०) कृष्टि वेदन का काल, क्रोधवंदन का कृषकाणाम्' (जयो० वृ० ४/५७) । जितना काल है, उसका तृतीय त्रिभाग अन्तिम भाग। कृषाणः (पुं०) [कृष्+आनक] किसान, शालिक। कृष्ण (वि०) [कृष्। नक्] श्यामवर्ण, काला। १. दुष्ट, हानिकर। कृषि (स्त्री०) [कृष्+इक्] खेती, काश्तकारी। १. भूमि, भू, २. धूम, नीलवर्ण। (जयो० वृ० ११/६९) धरा। (जयो० ७/१००) कृष्ण: (पुं०) कृष्ण, वासुदेव, (दयो० ५८) त्रिषष्टि शलाका कृषिक (वि०) १. कृषि करने वाला. खेती करने वाला। २. पुरुषों में कृष्ण नाम विशेष। पीतपट (जयो० १/५) २. कुशल-गुणविवेचना कृषिकः। (जयो० ६/६९) काला रंग, कौआ। ३. कृष्णपक्ष ४. कृष्ण लेश्या-सर्वदा 'कृषि भूकषणे प्रोक्त'-(म०पुं०१६/८१) भूकर्षण/भू कदनासक्तः। कृष्णलेश्यो मतः जनः' (पंच सं०१/२७८) जोतना/खेती करना कृषिकर्म है। | कृष्णकन्दं (नपुं०) रक्त कमल। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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