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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृतिकर ३१० कृपणधी: कार्य, कर्म, काम, स्वीकृत वचन। (सुद० ११३) सूक्तं समुक्तवानेवं तत्र निम्नोदितं कृति-(सुद० ११३) कृतिकर (वि०) कृतिकार, रचनाकार। कृतिकर्म (वि०) करणीय कार्य। 'तल्पं कल्पय केवलं संकल्पय कृतिकर्म' (जयो० १८८९) कृतिन् (वि०) विद्वान्, प्रज्ञ, बुद्धिमत्। (जयो० वृ० १/४२) चतुर, योग्य, प्रवीण, सक्षम, विशेषज्ञ, आज्ञाकारी। कृते कृतेन (अव्य०) के कारण, के लिए। कृतेक्षण (वि०) दृष्टिपात। (जयो० १३/४) कृतोऽपि (अव्य०) किसी से भी। 'भयाढ्यो न कृतोऽपि भीतिः' (सुद० १/२३) कुतोचितानुचित (वि०) उचित अनुचित का विचार। (जयो० २३/५७) कृत्तिः (स्त्री०) [कृत्+क्तिन्] १. त्वच, त्वचा, चमड़ा, खाल। 'दुष्टा प्रवृत्तिः खलु कर्मकृत्तिस्तत्त्वं' (जयो० २७/५) 'कर्मणां दुरितानां कृत्तिस्त्वचा' (जयो० वृ० २१/५) २. क्षुरिका, कतरनी-(वीरो० १/३६) परस्पर द्वेषमयी प्रवृत्तिरेकोऽन्य जीवाय समात्तकृत्तिः' (वीरो० १/३६) समात्ता समुत्थापिता कृत्तिश्छुरिका' (वीरो० वृ०१/३६) ३. भोजपत्र, ४. कृत्तिका नक्षत्र, कृत्तिका मण्डल। कृत्तिका (स्त्री०) [कृत्+तिकन्] तृतीय नक्षत्र कृत्तिका नक्षत्र। कृत्नुः (वि०) [कृ+क्त्तु] करने वाला, योग्यता प्राप्त। कृत्नु (वि०) कलाकार, कारीगर। कृत्य (वि०) [कृ-क्यप्] १. करने योग्य, किया जाना चाहिए। २. उचित, उपयुक्त, युक्तियुक्त, तर्कसंगत। कृत्यं (नपुं०) कर्त्तव्य, कार्य, (वीरो० १६/१८) 'स्वमात्रामतिक्रम्य कृत्यं च कुर्यात्- १. व्यवसाय, व्यापार, २. कार्यभार। ३. उद्देश्य, प्रयोजन, लक्ष्य। कृत्यकृत् (वि०) कर्त्तव्य स्मरणशील। (जयो० २/७२) कृत्या (स्त्री०) कार्य, करनी। कृत्याकृत्य (वि०) कृतकृत्य होने वाली। (जयो० वृ० २३/७९) कृत्याकृत्यवेदिनी (वि०) कृत्यकृत्य का अनुभव करने वाली। (जयो० वृ० २३/७९) कृत्रिम (वि०) [कृ+क्ति+मप्] काल्पनिक, बनावटी। 'कारणेन निवृत्तः कृत्रिम:' (जैन०ल० ३६६) कृत्रिमपुत्रः (पुं०) गोद लिया गया पुत्र। कृत्रिमभावः (पुं०) विकल्प भाव। कृत्रिमभूमिः (स्त्री०) निर्मित स्थान। कृत्रिममित्रं (नपुं०) आजीविका युक्त मित्र, १. बाह्य व्यवहार युक्त मित्र। कृत्रिमवनं (नपुं०) उद्यान, आराम, बगीचा, वाटिका। कृत्रिम-शत्रु: (पुं०) विरोध करने वाला व्यक्ति, विरोध युक्त मनुष्य। 'विरोधो विराधयिता वा कृत्रिमः शत्रुः' (नीति० वा० २९/३४) 'कारणेन निर्वृत्तः कृत्रिमः। यः शत्रुर्विरोधो भवति तस्य विरोधो क्रियते स विराध उच्यते, शत्रुर्य: पुनर्विजीषोरुपेत्य विरोधं करोति सोऽप्यकृत्रिमः शत्रुः। (नीतिक वा० ३२१) कृत्वस् (अव्य०) संख्यावाचक शब्दों की गुणात्मकता को प्रकट करने वाला अव्यय। चार गुणा, पांच गुणा, दशगुणा आदि। कृत्सं (नपुं०) [कृत्+स] १. जल, वारि। २. समूह, ओघ, समु दाय। कृत्सः (पुं०) पाप, अघ, अशुभ प्रवृत्ति। कृत्स्न (वि०) [कृत्+ वस्न] पूर्ण, सकल। 'कृत्स्नं स्यादुदरे जले' इति वि (जयो० १८/१६) 'कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः' (त०सू०१०/२) कृदन्त (वि०) १. कृत्प्रभाव, हितकारी प्रभाव। २. कृत्प्रत्यये च प्रभावो यस्यास्सा' (जयो० १५/३५) ३. धातुओं के अन्त में प्रत्यय जोड़कर संज्ञा, विशेष आदि शब्दों को बनाया जाता है, उन्हें कृत् प्रत्यय कहते हैं और उनके योग से बने शब्दों को कृदन्त कहते हैं। कृ धातु में तृच् प्रत्यय से कर्तृ। कृत् और तृच दोनों प्रत्यय हैं और 'कर्तृ' शब्द कृदन्त है। 'धातुभ्यः प्रत्ययकरणं च कृत् तद्धिते च कृत्प्रत्यये च प्रभावो यस्यास्सा' (जयो० वृ० १५/३५) कृप् (अक०) कृपा करना, करुणा करना। कृपः (पुं०) अश्वत्थामा का मातुल। कृपण (वि०) [कृप्त क्युन् न स्यणत्वम् ] ०खिन्न, उदासीन, ०दयनीय, निर्धन, कंजूस, अभागा, असहाय, विवेकशून्य, निम्न। यो गाढमुष्टिः कृपणो जयस्य (जयो० ८/५६) अधम। 'कृपण' अर्थात् किसी भी वैरी को प्राण दान देने वाला नहीं था। कृपण (नपुं०) उदासीनता, दुर्दशा। कृपण-कर्म (पुं०) १. उदासीन मनुष्य, २. कंजूस। कृपणता (वि०) १. उदासीनता, २. कंजूस भाव युक्त। कृपणत्व (वि०) कादर्य, कंजूसी। (जयो० वृ० २/११०) कृपणधी: (स्त्री०) विवेकशून्य, हृदयगत निम्नभाग, शून्य मन वाला, छोटे दिल का। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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