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अतिक्रमः
अतिथि:
अतिक्रमः (पुं०) [अतिक्रम्+घञ्] सीमा या मर्यादा का | अतिचरा (स्त्री०) पद्मिनी, स्थलपद्मिनी, पद्मचारिणी लता।
उल्लंघन, विलम्बन। (जयो० वृ० ५/१५) मार्गातिक्रमे अतिचरणं (नपुं०) [अति+च+ ल्युट्] अधिक प्रयत्न, विलम्बनम्।
विशिष्टाभ्यास। अतिक्रमः (पुं०) उल्लंघन, अतिक्रमण, लांघना, बीतना, | अतिचारः (पुं०) विकार, ०दोष, ०अतिक्रमण, उल्लंघन, मानसिक शुद्धि का अभाव, दिग्व्रत का अतिचार।
व्रतमर्यादा विकार, सामर्थ्य। स्याद्दीपिकायां मरुतोऽधिकारः अतिक्रमण (नपुं०) [अतिक्रम् ल्युट] उल्लंघन, लांघना। क्व विद्युतः किन्तुं तथातिचारः। (वीरो० ६/११) तेलवत्ती (दयो० ६५)
वाली साधारण दीपिका बुझाने में पवन का अधिकार है। अतिक्रमणीय (वि०) [अतिक्रम्+अनीयर] उपेक्षणीय, पर क्या वह बिजली के प्रकाश को बुझाने में सामर्थ्य उल्लंघनीय, अतिक्रान्तय, मर्यादा भंग करने योग्य।
रखता है? अतिचारो निर्वापणं। (वीरो० ६/११) अतिन (वि०) [अतिक्रम्+क्त] अतिनय। अतिक्रान्तोऽतिनयः। अतिचारः (पुं०) बन्ध, बन्धन, दुर्गुणभार (जयो० ५/४४) (जयो० वृ०७/२७)
विभावि परिणामः (जयो०५/९०) सन्तनोति सुतरामतिचार: अतिक्रान्त (वि०) असीम उद्वेलित, वेलप्रसक्ति युक्त, बीता अतिचारो बन्धनं भवति। (जयो० वृ० ३/४४)
हुआ, अभ्यतीत, आगे बड़ा हुआ। (जयो० ३/१२) जयोदय 'गतौ बन्धेऽपि चारः स्यादिति विश्लोचन:' में अतिक्रान्त का अर्थ 'वेलातिग सीमातीत भी किया। अतिचारः (पुं०) व्रत का अतिक्रमण, मालिन्य, अपकर्ष, (जयो० ११/५३) प्रत्याव्यान का नाम।
अंशभंजन, मर्यादातिक्रम। 'अतिचार व्रतशैथिल्यम्' अतिक्रान्ततट (नपुं०) वेलातिग, सीमातीत, उल्लंघनीय तट। (मूलाचार वृ० ११/११) अतीत्य चरणं ह्यतिचारी (जयो० वृ० ११/५३)
महात्म्यापकर्षोऽ शतो विनाशो वा। (मूला०१४४) ०असत् अतिखट्व (वि०) [ अतिक्रान्तः खट्वाम्] चरपाई रहित।
अनुष्ठान, चरित्रस्खलन, विषय/इन्द्रिय प्रवर्तन, व्रतांश अतिग (वि०) [ अति गमाड] रहित, दूर, दूरवर्ती, ०वर्जित। भंग, व्रत शैथिल्य, ०असंयम सेवन इत्यादि नाम अतिचार
(जयो० २७/६६, २/१५७) दोषातिगः किन्तु कलाधरश्च।
(सुद० २/३) दोषों से रहित होते हुए भी कलाधर था। अतिच्छत्रः (पुं०) [अतिक्रान्तः छत्रम्] कुकुरमुत्ता, खुंब, अतिग (वि०) सर्वोत्कृष्ट रहने वाला, बढ़ने वाला।
सोया, सौंफ का पौधा। अतिगन्ध (वि०) [अतिशयितो गन्धो यस्य] प्रबल गन्ध, अतिजवेन (अव्य०) सद्य, शीघ्र, त्वरित। आव्रजत्यतिजवेन दुर्गन्ध युक्त।
पत्तनम्। (जयो० २१/५) पत्तनं नगरमतिजवेन सद्या (जयो० अतिगत (वि०) दूर, दूरवर्ती, रहित। चित्रं जडतातिगसोऽसौ। वृ० २१/५) नगरशीघ्र आ रहा है। (जयो० ६/११०)
अतिजात (वि०) [अतिक्रान्तः जातं-जाति जनकं वा] पिता 8 जडतातो वारिरूपातातोऽतिगतो दूरवर्ती भवन्नपि।
से बड़ा हुआ, उत्पन्न हुआ। 8 जडतामतिगतो मूर्खता रहितः। (जयो० पृ० ६/११०) अतितर (वि०) [अति+तरप्] अधिक, उच्चतर। (समु० १.१ अतिगमोह (वि०) मोह रहित। (जयो० २/१५७)
उत्तेजनयातितरां समर्थः)। अतिगव (वि०) [गामतिक्रान्तः] अत्यन्त मूर्ख, अधिकजड। अतितृष्णा (वि०) [तृष्णातिक्रम्य] लालसा, अधिक इच्छा। अतिगुण (वि०) [गुणमति क्रान्तः] गुणहीन, गुणरहित, निर्गुण। अतिथि: (नपुं०) [अतति-गच्छति न तिष्ठति-अत्+इथिन्] अतिगुण (वि०) विशिष्ट गुणों वाला। विशिष्ट योग्य।
अभ्यागत, प्राघूर्णिक, स्वागत योग्य। (जयो० १२/१२) अतिगौर (वि०) उत्तरोत्तर गौरवपूर्ण वाली। (सुद० २/४६) अतिथयेऽभ्यागताय (जयो० वृ० १२/१२) न विद्यते तिथि: अतिग्रह (वि०) [ग्रहम् अतिक्रान्तः] दुर्बोध, सत्यज्ञान।
यस्य योऽतिथिः। अतिघोर (वि०) भयानक, तीव्र, कठिन। (समु० २/३०) अतिथिः (नपुं०) संयम विराधन हित साधु भी अतिथि है। अतिचर (वि०) [अति+च+ अच्] अति परिवर्तनशील, विशिष्ट साधुरेवारतिथिः। यत्नेनातति गेहं वा न तिथिर्यस्य सोऽतिथिः। परावर्तन, क्षणभुगर।
(सागारधर्मामृत ५/४२) संयममविराधयन् अतति भोजनार्थ अतिचर (अक०) [अति+चर] घटित होना। (वीरो० १७/२८) | गच्छति यः सोऽतिथि:। (तत्त्वार्थ वृ० ७/२१)
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