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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कूर्मवत् ३०८ कृततीर्थ कूर्मवत् (वि०) कछुए की तरह। (जयो० वृ० १/६) कूलं (नपुं०) [कूल+अच्] किनारा, तट, ०ढलान, ०उतार, छोर, कोर, ०तालाब तट। निदाघकालेऽप्यतिकूलमेव प्रसन्नरूपा वहतीह देव। (वीरो०२/१५) कूलचर (वि०) किनारे घूमने वाला, नदी के तट पर भ्रमण करने वाला। कूलङ्कष (वि०) [कूल कष्-खच्] खोखला करने वाला, तट काटने वाला। कूलङ्कया (स्त्री०) नदी, सरिता। कूलन्धय (वि०) [कूल+धे+खश्] चूमता हुआ। कूलमुवह (वि०) [कूल उद्+वह खश्] किनारे की ओर ले जाने वाला। कुहण्डकः (पुं०) भंवर। कुलानुसारिणी (स्त्री०) नदी, सरिता। (वीरो० ३/३३) कूष्माण्डः (पुं०) [कु ईषत् ऊष्मा अण्डेषु वीजेषु यस्य] पेठा, कुम्हला, तुम्बी, भूरा कुम्हडा, भूरा कद्दू। कूहा (स्त्री०) [कु ईषत ऊह्यतेऽत्र कु+उह-क] कुहरा, हिमपात। धुंद। कृ (सक०) १. ०करना, गड़ना, २. ०तैयार करना, ३. ०बनाना, निर्माण करना, ४. उत्पन्न करना, रचना। (जयो० १/६) कुरुते (सम्य० ७८) क्रियते (सम्य० ७१) कुर्यात् (सम्य०७२) कर्तुं (सुद०) चकार (सुद० ७८) रदेषु कर्तुं मृदुमञ्जनंच। (वीरो० ५/९१) कुर्वन् (वीरो० ५/१) 'कुर्वन् जनानां प्रचलात्प्रभाव:' (वीरो० ४/११) सुभगा हि-कृता (जयो० ३/५८) कुरु सुद० २/४०। 'कृत्वाऽर्हदिज्याविधि' (सुद० वृ०६८) 'सुरश्चिन्तां चक्रे मनसि' (जयो० २/१४३) चक्रे-अचिन्तयत् कौतुकं कौ तु कस्मान्न कृतवान् कृतवाञ्छन:' (जयो० ३/६८) 'कृतवान् उत्पादितवानेव' (जयो० ३/८५) कुर्वन् स विरराम-(जयो० ३/९२) कायेन कुर्वतामेव-'हित०२। कृकः (पुं०) [कृ+कक्] गला, कण्ठ। कृकणः (पुं०) तीतर पक्षी। कृकलास: (पुं०) छिपकली, गिरगिट! कृकवाकु: (पुं०) [कृक+वच्+अण्] मुर्गा, मोर, छिपकली। । कृकाटिका (स्त्री०) [कृका अट्+अण्टाप्] गर्दन का पिछला भाग। कृच्छ (वि०) कष्ट देने वाला, पीड़ा कर, दुष्ट, पापी, कृतघ्नी।। कृच्छः (पुं०) कष्ट, दु:ख, विपत्ति। कृच्छं (नपुं०) कष्ट, दु:ख, विपति। कृच्छूकार्य (नपुं०) सिद्धकार्य, समस्त कार्य। ( सुद० ९२) कच्छप्राण (वि०) कष्टपूर्वक निश्वास लेने वाला। कृच्छसाध्यः (वि०) कष्टसाध्य। (जयो २/६१) कृत् (सक०) काटना, कुतरना, विभक्त करना, नष्ट करना। कृत् (वि०) [क क्विप्] कर्ता, निर्माता, बनाने वाला, उत्पन्न करने वाला, रचित। (जयो० १/१७) 'कृतं धातुतः संज्ञाकरणार्थं प्रत्ययं भजन् जानन् सन् गुणिता सम्पादिता' कृतं (नपुं०) उत्पन्न, तीनों कालों में उत्पन्न। आत्मना यत् क्रियते प्रक्रियते तत् कृतम्। (भ० आ०टी० ८११) कृत (वि०) [कृ+क्त] किए गए, अनुष्ठित, निर्मित, निष्पन्न, उत्पादित। 'कृतान् प्रहारान् समु दीक्ष्य' (सुद० ८/५) कृतक (वि०) [कृत। कन्] निर्मित, रचित, सम्पन्न, सज्जित, तैयार किया गया। (जयो० १/३५) कृतकः (पुं०) १. झूठ, अलीक, असत्य। २. कंस 'कृतकं सभयं सततमिङ्गित' (सुद० ११२) कृतकर्म (वि०) करने योग्य कार्य। कृतकार्य (वि०) कार्यकुशल, कृतकृत्या शाणतो हि कृतकार्य आयुधी। (जयो० २/४१) कृत-कौशल (वि०) सम्पादित कार्य, निष्पन्न कार्य। 'कृतं सम्पादित कौशलं सामर्थ्यं दधत्' (जयो० २१८६) कृतकृत्य (वि०) कृतार्थ. सन्तुष्ट, परितृप्त। कृतकायः (पुं०) खरीददार। कृतक्षण (वि०) प्रतीक्षा करने वाला। कृतघ्न (वि०) अकृतज्ञ, अपकारी। कृतघ्नोयेव देहाय, दातुं भुक्तिमपीत्यसौ। कृतघ्नी (वि०) अपकारी। (वीरो० २/३२) (समु० ९/९) कृतचार (वि०) गमन क्रिया, गति करने वाला। कृतः प्रारब्धश्चारोपगमनं (जयो० १५/३) कृतचूडः (वि०) किए गए चूडा/मुण्डन संस्कार वाला। कृतज्ञ (वि०) आभारी, ऋणी। कृतं परोपकृतं जानाति। (वीरा० १७/३) उपकार मानने वाला। (सुद०७९) कृतज्ञाऽहमतो भूमौ (सुद० ७९) कृतज्ञता (वि०) उपकार भाव (वीरो० १८/३८) किसी का भला करने पर उपकार भाव वाला। प्रत्युपकार (वयो०वृ० २०/६४) 'त्यागिताऽनुभविता कृतज्ञता' (जयो० २/७४) कृततीर्थ (वि०) तीर्थ दर्शन वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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