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कुसुमाधिषः
कुमाञ्जलि (स्त्री०) पुष्पसमान अञ्जली श्रद्धासुमन । हरिताङ्कुरतति समर्चनालक्षण (जयो० १२/५७) मृदु पादभुवीष्टदेवतानां समभूत्सा कुसुमाञ्जलिः सुमाना। (जयो०
१२/१०४)
कुसुमाधिष (पुं०) चम्पक लता। कुसुमायित (वि०) कुसुम से युक्त काम युक्त । (वीरो०
८/१०)
कुसुमायुधः (पुं०) काम, मदन। 'प्रयाणवेलां कुसुमायुधस्याप्येहो' (जयो० १४/२) कुसुमायुधसेना (स्त्री०) कामदेव की सेना 'कुसुमायुधः कामस्तस्य सेना ।' (जयो० वृ० ६ / ११५ ) कुसुमावचय: (पुं० ) ०पुष्प संचयन, ०पुष्पसंकलन ० पुष्पचयन, ० फूलों का चुनना (दयो० ६३) 'कुसुमावचयं सरजस्कदृश: ' (जयो० १४ / १२) 'कुसुमानां पुष्पाणामवचयः' संकलनं (जयो० पृ० १४/१२)
,
कुसुमित (वि०) [ कुसुम इतच् ] फूलों से युक्त, पुष्पों से सुशोभित कौसुम्भराग संयुक्त (जयो० १८/१४) कुसुमेष्वराति: (पुं०) महादेव शिव (जयो० १/३५) कुसमोच्चिचीषा (वि०) कुसुम संचयन की इच्छा। 'कुसुमं पुष्पं तस्योच्चिचीषा गृहीतुमिच्छा' (जयो० वृ० १४/२७) कुसुमोज्ज्वल (वि०) पुष्पों की उज्ज्वलता कुसुमोत्तमवाटी (स्त्री०) पुष्पों की सुन्दर कटिका । भामिनी गुणवृतेव सुशाटी याऽपि शील कुसुमोत्तमवाटी' (समु० ५/१८)
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कुसूलः (पुं०) भण्डार, अन्नागार।
कुसूति (स्त्री० ) [ कुत्सिता सूतिः ] ठगी, छल भाव । कुस्तुभ: (पुं० ) [ कु+ स्तुभ् + क] १. समुद्र, २. विष्णु । कुश्रुत (वि०) १. कु श्रवण, २. कुशास्त्र । कुश्रुतज्ञानं (नपुं०) मिथ्यादर्शन से युक्त ज्ञान। 'मिथ्यादर्शनोदय
सहचरितं श्रुतज्ञानमेन कुश्रुतज्ञानम्' (पं०चा०व०४१ ) कुहः [कुणिच्+अच्] कुबेर, धनपति
कुहकः (पु० ) [ कुछ+क्वन्] ठक, चालाक। कुहकरं (नपुं०) चालाकी, ठगी ।
कुहककार (वि०) कपटी, छल करने वाला। कुहकचकित (वि०) भ्रमित, भयभीत युक्त। कुहन (पुं०) [कु-हन् अच्] मृषा, शीशे का वर्तन। २.
इन्द्रजालिक आश्चर्य मिथ्या ।
कुहना ( स्त्री०) दंभ. मिथ्या मृषा, झूठ।
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कुहरं (नपुं०) गुफा, गह्वर, गर्त, (वीरो० १२ / ४१ ) कुहर: (पुं०) प्रदेश, स्थान (जयो० वृ० १४/६८) व्यक्तोऽसो
वलिवद्धनाभिकुहर:' भंवर के समान त्रिवलियों से युक्त नाभि रूपी प्रदेश है। 'नाभिकुहरस्तुण्डिका प्रदेशः' (जयो० वृ० २४/१३५)
कुहरितं ( नपुं०) १. कोयल शब्द । ध्वनि। कूक । २. संभोग कालीन शब्द। (जयो० वृ० २१ / ३१)
कुहू (स्त्री० ) [ कुह + कु] १. कोयल का शब्द । पिक कूक । (जयो० १४ / ६३) 'कुहुः करोतीह पिकद्विजाति स एष संखध्वनिराविभाति' (वीरो० ६/१९) २. अमावस्या दिवस। कुहुरव: (पुं०) कूक, शब्द ध्वनि विशेष । कुहुशब्दः (पुं०) कुहु कुहु ध्वनि ।
कू ( सक०) ध्वनि करना, कलरव करना । कूकः (वि०) ध्वनि, शब्द, कलरव (सुद० ८१) कूची (स्त्री०) ब्रुश, कूंची
कूज् (अक० ) गूंजना, शब्द होना, कूकना, बजना 'बलाश्वकुजुः केकारवञ्जकुरित्यर्थः ' (जयो० वृ० २/८) 'चुकूजाऽकूज - दित्यर्थः' (जयो० वृ० १० / २१)
कूज: (पुं०) कूजना, ध्वनि करना ।
कूजनं (नपुं०) [कृप] कृजना, ध्वनि करना, कुहू कुहु
कूटछद्मन्
करना ।
कूजित (वि०) ध्वनित शब्दायमान (दी०)
कूट (वि० ) [ कुट् + अच्] मिथ्या, अलीक, १. अचल, स्थिर । कूट: (पुं०) १. भ्रम, पोखा, छल, २. कूटना, जलाना, कष्ट
उत्पन्न करना । 'कूट्यते दह्यते अमुना परः परिणामास्तरेणेति कूटम्' (जैन०ल०३६३) २. चूहादानी मूषक जाल । ३. शिखर गिरि का ऊपरी हिस्सा मेरु-कुलसेल विंझसज्झादिपव्वया कूडाणि णाम' (धव० पु०१४/४५५) ४. ढेर, राशि, समूह |
कूटकं (नपुं०) चालाकी, धोखाधड़ी।
कूटकार (वि०) झूठा, आलीकवादी, मिथ्यावादी। कूटकृत् (वि० ) ठगी विद्या करने वाला । झूठे लेख लिखने
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वाला।
कूट-कार्षापण (०) झूठा कार्यापण कूट - खङ्गः (पुं० ) गुप्ती, छोटी तलवार ।
कूटग्राह: (पुं०) पिंजरा, जीवों को पकड़ने का उपकरण । 'कूटेन जीवान् गृह्णातीति कूटवाह' (जैन००००३६३) कूटछद्मन् (पुं०) ठग, धोखेबाज |