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कुशीलकर्मन्
३०५
कुसमाञ्जलि
कशीलकर्मन् (वि०) खोटा कर्म करने वाला, विवेक विहीन | कुसीदायी (स्त्री०) सूद लेने वाली! कर्म वाला।
कुसुमं (नपुं०) [कुष् उम] पुष्प, प्रसून, सुमन, फूल। (जयो० कुशीलवः (पुं०) [कृत्सितं शीलमस्य कुशील व नट, भाट, ३/५१) 'कामोऽदृश्यो वर्तते, अनङ्गात् अथवा कुसुमेषु, नर्तक। (जयो० २/१११)
कौः पृथिव्या सुमा सोमा तस्या इषुः शल्य रूपोऽस्ति।' कुशीलवकर्मन् (नपुं०) [कशीलवो नटस्तस्य कर्म (जयो० ६/८७)
नर्तनम्'-नर्तन] भाट, नट क्रिया। (जयो० वृ० २/१११) कुसुमगुणं (नपुं०) पुष्प पराग। कुशीलवा (वि० ) बड़-बड़ाने वाले (वीरो० ९/२६) कुसुमगुणितदाम (स्त्री०) पुष्पमाला। 'कुसुमैर्गुणितं प्रारब्ध कुशुम्भः ( पुं०) [कु+शुम्भ-अच्कमण्डलु, जलपात्र।
यद् दामं माल्यं। (जयो० वृ० १०/१३) कुशूल: (पुं०) [कुस्। ऊलच्] कोठी, भण्डार। २. गत विशेष, । कुसुमचाप: (पुं०) कामदेव, मदन।
जो प्रमाणांगुल से निष्पन्न एक योजन प्रमाण लम्बे एवं कुसुमचित (वि०) पुष्पसमूह। चौड़ गर्त स्थान।
कुसुमतुल्यं (नपुं०) पुष्प सदृश। (जयो० वृ० ३/५३) कुशूला (स्त्री०) कुम्भ निमाण का साधन। (जयो० वृ० कुसुद मिं (नपुं०) पुष्प माल्य, सुमनमाल्य, कुसुममाला ११/३७)
(जयो० १२/१२) कुशेशयं (नपु०) [कुशे शो+अच्] १. कुमुद, कमल, पद्म। कुसुमपरागं (नपुं०) पुष्प पराग।
नितम्बिनीना मृदुपादपद्यैः प्रतारितानोति कुशेशयानि। (वीरो० कुसुमपुरं (नपुं०) पाटलीपुत्र का नाम। ४/१५) दति केलिकुशेशय तु स्वे' (जया० १०/६३) २. कुसुमप्रेमी (वि०) पुष्प प्रेमी। (जयो० वृ० ११/९०) दाभशयन, डाभशय्या, दार्भ को चढ़ाई। 'कुशेशय वेद्मि कुसुम-बधं (नपुं०) पुष्प समूह। निशास् मौनम्' (जयो० ११/५०) ३. रुईदार गद्दा- कुसुमल (वि०) पुष्पावली, पुष्प पंक्त्यिां । 'कुशशयाभ्यस्तशया शयाना या नाम पात्री सुकृतोदयानाम्। कुसुमलता (स्त्री०) पुष्प लता। (मुदः २/१०)
कुसुमवती (स्त्री०) रजस्वला स्त्री। कुशेशयः (3) सारस पक्षी।
कुसुमवर्षी (स्त्री०) पुष्पवर्षी। (जयो० १४/२०) कुष् (सक०) ०फाड़ना, निचोड़ना, खींचना, निकालना, कुसुमवासः (पुं०) पुष्प निवास, पुष्प गन्ध पुष्पशोभा।
बाहर करना, ०फेंकना, विदीर्ण करना, परीक्षा लेना, कुसुमल-वासः (पुं०) पुष्पावली, पुष्पसमूह। कुसुमं लातीति निरीक्षण करना।
कुसुमल: चासौ वासो निवास:-पुष्पावली विभूषितो। (जयो० कुधाकुः (पुं०) [कुप्काकु] १. सूर्य, बहि, २. बन्दर, लंगूर! वृ० २२/४३) कुष्टात्मन् (वि०) कोढ़ वाला (समु० ६/३८)
कुसुम-शयनं (पुं०) पुष्प शय्या। कुष्ठः (पुं० [कुपा कथन] कोढ़।
कुसुम शय्या (स्त्री०) पुष्पासन, फूलों की सेज। कुष्ठनिवारणं (नपुं०) कोढ़ मिटाना, कोढ़ दूर करना। णमो कुसुम-स्तवकः (पुं०) गुलदस्ता, पुष्पगुच्छक। (दयो० वृ०५५)
घोरगुण- परक्कमाणं कुष्ठादिनिवारणे प्रमाणम्। (जयो० कुसुमस्रक् (पुं०) पुष्पमाला, कुसुममाला। (सुद० ७२) ११/७५)
कुसूमम्रज देखो ऊपर। कुष्ठित (वि०) [कुष्ठ इतच्] कुष्ठ से पीड़ित, कोढ़ ग्रस्त। कुसुमस्रक्षेपणी (वि०) पुष्प बरसाने वाली। 'कुसुमानि तेषां कुष्ठिन् (वि०) [कुष्ट इनि] कोढ़ी।
सजं माला क्षिपतीति क्षेपणी क्षेपणकीं।' (जयो० वृ० ३/८९) कुष्ठमाण्डुः (पुं०) कुम्हड़ा, कटू. लोकी, तूमड़ी। 'कु ईषत् । कुसुमश्री (स्त्री०) पुष्प शोभा, प्रसून सुषमा। (समु० २/१४) उग्मा अण्डेषु बीजेषु यस्या'
नवयौवन-भूषिता यदा कुसमश्रीर्हि वसन्तसम्पदा। (समु० कुस् (सक०) आलिंगन करना. गले लगाना, घेरना।
२/१४) कुसितः (पं०) [कुटर+क्त ] सम्पन्न देश।
कुसुमाञ्जनं (नपुं०) भस्म से निर्मित अंजन, सुगंधित पुष्पों से कुसीदः (पं०) साहूकार।
बनाया गया अंजन/चूर्ण। कुसीदा (स्वी०) (कुसीद-टाप्सूबेदारिनी, सूद लेने वाली स्त्री।
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