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कुवलयिनी
३०४
कुशील
कुवलयिनी (स्त्री०) [कुवलय इनि+ डी] कुमुदिनी, नील कुशं (नपुं०) कमल पद्य, सरोज, अरविन्द। कमलिनी।
कुशल (वि०) [कुशान् लातीति-कुश ला+क] प्रवण, दत्तचित्त, कुवलाञ्चित (वि०) महाबलशाली। महावलीत्थं कुवलाञ्चितोर- 'कुशलं सुखनिमित्तं' तल्लीन, प्रवीण, (जयो० १६/६१) श्चोराप्रियः सज्जनचित्तचौरः। (समु० ४/१०)
'कुशलसद्भावनोऽम्बुधिवत्' (सुद० ३/३०) चतुर, कुवलाली (स्त्री०) १. मौक्तिक माला 'स्वकुलक्रमेणेहिता कल्याण-(जयो० ३/३१, ३/३४। क्षोमपूर्ण। ( वयो०३/३४)
वाञ्छिता मोक्तिकमाला' (जयो० १०/३७) २. कुमुद प्रस्थितस्य कुशलं शिरस्यनुस्मोपभाति पथि पादयोऽस्तु। समूह।
(जयो० ३/३४) साम्प्रतं कुशल तेऽवलोकनादञ्चनः कुशलतेव कुवलोपहारः (पुं०) १. कुमुदों का उपहार, २. मौक्तिक भेंट।
चामनाक्। कुशलं मस्तके एवोपभाति लसति कुशाल्लाति (जयो० १५/२८)
गृह्णातीत्यन्वयात्। प्रसन्नचित्त। (जयो० वृ० १२) 'कुशलान् कुवाद (वि०) [कु वद्+अण्] १. निन्दक वचन, मिथ्यावचन,
प्रसन्नचित्तान्' (जयो० वृ० ५/१२) २. अधम, निम्न वचन।
कुशलक्षेम (पुं०) कल्याण की कामना। (जया० ३/३४) कुवासना (स्त्री०) विषयवासना, मिथ्यावासना, कुत्सित संस्कार।
कुशललक्षण (नपुं०) जल लक्षण। कुशस्य जलस्य __ (जयो० १९/९५)
लक्षणपरिणामेन। (जयो० २०/६) कुवादिन् (वि०) मिथ्वावचनी, निन्दक, कुआलोचक। २.
कुशलं (नपुं०) कल्याण (जयो० ३/३१) प्रसन्न, दत्तवित्त, सफेद झूठ बोलने वाला। 'दुरभिनिवेश-महोद्धर-कुवादिनामेव
हर्ष, आनंद। दन्तिनामदयाम्।' (वीरो०४/४३) कुवादिनः कुत्सितं वदन्तीति
कुशलकाम (वि०) कुशलता की कामना। ये तेषाम' (वीरो० वृ० ४/४३) भवन्ति ते किन्तु
कुशलता (वि०) क्षेमपूर्णता, चतुरता। (जयो० ९/३२) कुशलता यशोवृषादिविनाशनायास्ति कुत: कुवादी। (समु० ३/३३)
कुशततिरिव। यद्वा कुशलस्य भावः कुशलता क्षेमपूर्णतास्ति। कुविकः (पुं०) कुविक नामक देश।
(जयो० वृ० ३/३४) कुवित् (वि०) विचारहीन दुर्बुद्धि। (जयो० २/१२४)
कुश-लता (स्त्री०) कुशतति, दर्भ समूह। कुशस्थ लता पम्परा कुविद् (वि०) ज्ञानहीन।
तस्यातिशयेन समर्थितोऽपि (जयो० तृ० १/३२) कु-विद् (वि०) भूमि विशेष, भृज्ञाता, पृथ्वी का जानकर। (जयो० २७/३७) कुवित् लोः पृथिव्या बुद्धिर्यस्य तदस्ति। । कुश
| कुशल-प्रतिकुशलं (नपुं०) अत्यंत कुशल, क्षेम परिपूर्ण। (जयो० वृ० २७/३७)
(जयो० १२/१३८) कुविंदः (पुं०) तन्तुवाय, जुलाहा।
कुशल-प्रश्न: (पुं०) मंगल कामना। कुविधा (स्त्री०) कुत्सित पद्धति। (सम्य० ६३) (जयो०
कुशलभावः (पुं०) ज्ञान रूप भाव। ३/१७)
कुशलाशयः (पुं०) जलाशय, सरोवर। (सुद० २/२०) कुवेणी (स्त्री०) [कु+वेणु इन्+ङीष] मत्स्य टोकरी, मछलियां
कुशलिन् (वि०) [कुशल इनि] प्रसन्न, खुश, हर्प। रखने की टोकरी।
कुशा (स्त्री०) [कुश+टाप्] रस्सी, रज्जू, लगाम। कुवेल (नपुं०) [कुवेषु जलजपुष्पेषु ई शोभा
कुशावती (स्त्री०) नगरी नाम विशेष। लाति-कुव+ई+ला+क] कमल, पद्म।
कुशास्त्र (नपुं०) खोटे शास्त्र, आचार विहीन शास्त्र। जातु कुवृत्तः (पुं०) कदाचार, मिथ्या आचरण। (वीरो० ११/३२) नात्र हितकारि सन्मनो भ्रंशयेदपि तु तत्त्ववमनः। तत्कुशा(सम्य० १३७)
स्त्रमवमन्यतमिति कः श्रयेदवहितं महामतिः। (जयोः २/६६) कुश: (पुं०) [कुशी+ड] दर्भ, कुश। (जयो० ३/३४) २. कुशिक (वि०) [कुश ठन्] तिरछे नेत्र युक्त, भंगे नेत्र वाला।
कुश नामक बालक, राम का बड़ा पुत्र। (जयो० १३/५९) कुशिका (स्त्री०) कुदाली। (जयो० ३/४८) सहसा सलवाङ् कुशाशया दधती कञ्जगति स्थिराशयम्। कुशी (स्त्री०) [कुश+डी] हल की फाली। (जयो० १३/५९) ३. पापात्म, पापिष्ठ, मत्त-कुशो मत्तेऽपि कुशील (वि०) शील रहित, कुत्सितशील, विवेकहीन। पापिष्ठे इति वि० (जयो० २७/३३)
'कुत्सितशील: कुशील:' (भ०आ०टी० १९५०)
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