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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जस २० अत् अञ्जस (वि०) सीधा, सरल। अञ्जसा (अव्य०) सीधी तरह से, यथावत्, उचित, शीघ्र, त्वरित। अञ्जिष्ठः (पुं०) [अंज+इष्ठ्च] सूर्य, रवि। अजीरः (पुं०) अजीर फल। अजीरं (नपुं०) अञ्जीर फल। अट् (अक०) घूमना, परिभ्रमण करना, इधर-उधर जाना। अट (वि०) [अट्+अ] घूमने वाला। अटनं (नपुं०) [अट्+ल्युट] परिभ्रमण, हिण्डन। अटनिः (स्त्री०) [अट्+अनि] धनुष का सिरा। अटरुः (पुं०) वासक लता, अडूसा। अटविः (स्त्री०) जंगल, वन, अरण्य। अटविक (वि०) वनचारी। अटा (स्त्री०) [अट्+अ+टाप्] परिभ्रमण प्रवृत्तिः। अटूट (वि०) विशाल, अखण्ड। (वीरो० २/१२) ०हढ़ः शक्ति संपन्न अट्ट (अक०) कम करना, घटाना, घृणा करना। अट्ट (अक०) वध करना, अतिक्रमण करना। अट्ट (वि०) [अट्ट+अच्] ऊँचा, उन्नत, लगातार आने वाला, शुष्क, सूखा। अट्टः (पुं०) [अट्ट+घञ्] अटारी, ०कंगूरा, मीनार, दुर्ग, व्हाट, मण्डी, विशाल भवन, महल। अट्ट (पुं०) भोजन, भात। अट्टहास (पुं०) हंसी, ठहाका। अट्टालिका (स्त्री०)शृंगाग्र, उच्च, ऊँचा। उत्तुंग भवन, अट्टालिकोपरि (वि०) ऊँचे भाग, उन्नत भाग। (वीरो० २/४२) अट्टांगः (पुं०) एक प्रमाण विशेष। अण् (वि०) प्रत्याहार विशेष। आदि, अन्तिम और मध्यपाती अक्षरों को लेकर प्रत्याहार बनता है। 'अ इ उ ण' यहां अंतिम 'ण' इत् संज्ञक है। अण् (अक०) शब्द करना, सांस लेना, बोलना, जीना। अण (वि०) [अण्+अच्] बहुत छोटा, तुच्छ, ०नगण्य, ०अधम, ०ह्रास, कम, हीन, ०अल्प, लघु। अणक देखो अण। अणिः (स्त्री०) [अण+इन्] ०सूची अग्रभाग, कील की नोंक, ०धुरे की कील, कमल, अग्रदेश। (जयो० वृ० १८/३७) अणिका (वि०) लेशमात्र। (जयो० १७/९) अणिमन् (पुं०) [अण+इमनिच्] सूक्ष्मता, लघुता, एक दैवीशक्ति। अणिमा (स्त्री०) अणिमा ऋद्धि। अणु (वि०) [अण्+उन्] सूक्ष्म, वारीक, लघु, छोटा, ०परमाणु, पुद्गल का एक भेद। (भवेदणु-स्कन्धतया स एव) (वीरो० १९/३६) पुद्गल के अणु और और स्कन्ध के दो भेद हैं। अण्यन्ते शब्दयन्ते ये ते अणवः। जो परिणमन करते हैं और इसी रूप से शब्द के विषय होते हैं, वे अणु हैं। 'अणु' शब्द से प्रदेश भी लिया जाता है, जिसका आदि, मध्य और अन्त एक ही है। अणुक (वि०) अणुमात्र, अल्परूपक। न व्यापकं नाप्यणुकं भणामि। (जयो० २६/९५) शुचिवंशभवच्च वेणुकं बहुसम्भावनया करेऽणुकम्। (जयो० १०/२१) अणुमात्र (वि०) दार्शनिक विचार, कुछ लोग कथन करते हैं कि आत्मा समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त है और कुछ का कहना है कि अणुमात्र है, अलात चक्र के समान समस्त शरीर में शीघ्रता से घूमता रहता है। अणुव्रतं (नपुं०) व्रत का एकांश, स्थूल पापों का त्याग, व्रत के एक अंश का त्याग। अणूनि लघूनि व्रतानि अणुव्रतानि। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पांच पाप हैं, इनका एक अंश त्याग अणुव्रत है। स्थूलेभ्यः पापेभ्यो व्युपरमणमणुव्रतम्। अण्डः (पुं०) [अम्+ड] अण्डकोष। अण्डं (नपुं०) फोता। (दयो० ३२) ०अण्डकोष अण्डः (पुं०) ०ब्रह्मा, ब्रह्माण्ड, शिव। अण्डः (पुं०) शुक्र-शोणित-परिवरणमुपात्तकाठिण्यं शुक्र शोणित-परिवरणं परिमण्डलं तदण्डम्। अण्डक (वि०) ०अण्डे से उत्पन्न ०अण्डे जाता अण्डज। अण्डरः (पुं०) निगोदजीव। अण्डाकार (वि०) अंडे की आकृति। अण्डकोषः (पुं०) अण्डकोष, फोता। (दयो० ३२) अण्डज (वि०) अण्डे से उत्पन्न। अण्डे जाता अण्डजा। अण्डालुः [अण्ड+आलुच्] मछली। अण्डायिक (वि०) अण्डे से उत्पत्ति वाला। अण्डीरः [अण्ड-ईरच्] हृष्टपुष्ट पुरुष। अत् (अक०) जाना, चलना, घूमना, ०चक्कर काटना, ०परिभ्रमण करना। अनवयन् दहनं शलभोऽतति। (जयो० २५/७७) पतङ्ग अग्नि के पास जाता है। अतति-संगच्छति। (जयो० २५/७७) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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