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अज्ञानिता
अज्ञानता (वि०) अज्ञानभाव वाला ( भक्ति०३८) अतोऽधुना हे निजप । त्वदग्रे प्रमादनोऽज्ञानितया समग्रे। हे जिनेन्द्र ! प्रमाद से अज्ञानभाव वाला हूँ। अञ्च् (भ्वा०उभ० सक० ) [ अजति अञ्चितुम् अञ्चेत् ] स्वीकार करना, झुकना, हिलना। (जयो० ४ / २८ ) सत्तनुननु परं जनयेत्।
अञ्च् (सक० ) ०प्राप्त होना, ०बन जाना। ० योग्य स्थान को पाना पहुंचना, लोहोऽथ पार्श्वद्दषदाऽञ्चति हे महत्सत्त्वम् । (सुद० ४/३०) पारस पाषाण का योग पाकर लोहा भी सोना बन जाता है। स्वच्छत्वमञ्चेदिति भावनालः। ( २/४८) मन्दत्वमञ्चत्पदपङ्कजा वा। (वीरो० ६ / २) अञ्च् (सक०) प्रार्थना करना, इच्छा करना, पूजा करना, भक्ति
करना । आत्मीयमञ्वेदथसन्निधानम्। (भक्ति सं० २५, १९) अञ्च् (सक०) ढकना, आच्छादित करना। (सुद० वृ० ८५) अञ्चता (वि०) प्राप्त करने वाला। भूतले तिलकतामुताञ्चताम्। (जयो० २ / ४६ )
अञ्चन (नपुं०) पूजन, अर्चन, प्रार्थना। धर्मं च शन्तिं खलु कुन्थुमञ्चन्नरं च मल्लिं मुनिसुव्रतं च । (भक्ति १९ ) अञ्चन् (वि०) प्राप्त होने वाला। (सुद० ७९) सारोमाञ्चनतस्त्वं भो मारो। कर स्पर्श से रोमाञ्च को प्राप्त हुई। अञ्चनं (नपुं) निवर्तन) (जयो० ४/२६) परिफुल्लोलपाञ्चनेनासीद्यासा (जयो० ४ / २६) पुष्पित लताग्र को नीचा करने का प्रयत्न कर रही थी।
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(सुद०
अञ्चनं (नपुं०) रोमाञ्चन्, हर्ष, प्रमोद । दर्शनादञ्चनैः प्रमोद रोमाञ्चैः कृत्वा (जयो० ३/३४)
अञ्चल (वि०) निश्चल, स्थिर। (जयो० ५ / १५ ) अञ्चल: (अञ्च्+अलच्) पल्लू, किनारा, गोट, झालर, वस्त्र का छोर, कोना। गृहिणोऽखिलाञ्चलाः । (जयो० २ / १९ ) गृहस्थी के चारों पल्ले कीचड़ में हैं।
अञ्चलपाकः (पुं०) अञ्चल की स्थिति। (जयो० ५/१५) अञ्चलवान्तभाग (पुं०) वस्त्र प्रान्त । उभयोः शुभयोगाकृत्प्रबन्धः समभूदञ्चलयान्तभाग-बन्धः (जयो० १२/६३) दोनों का शुभयोग कृत प्रबन्ध हुआ और आपस में वस्त्र का गठबन्धन भी किया गया।
अञ्चित (भूतकालिक कृदन्त ) [ अञ्+क्त] पूजित, अर्चित, सम्मानित अलंकृत पल्लवैरभितवैरथाञ्चिताः (जयो० ३/९) अञ्चित (वि०) युक्त, व्यवस्थित, उचित। निर्णयाञ्चिता (जयो० २/५) (जयो० ० ३ / ९)
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अज्जरीङ्गित
अञ्चित (वि०) धनुषाकार टेढ़ा, सुन्दर सुलसद्धार पयोधराञ्चिताम् (सुद० ५०) स्तनमण्डल पर लटकता हुआ सुन्दर हार।
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अञ्चित (वि०) आच्छादित आवृत्त कापि मञ्जुलता ऽञ्चिता । (सुद० वृ० ८५) सुन्दर वृक्ष किसी सुन्दर लता को ढकलेता है। अञ्जु (सक०) लेपना, रंगना, पोतना। अञ्जु (सक० ) ० चमकना, ०सम्मानित करना, ०सजाना,
समारम्भ करना।
अञ्जु (सक० ) ० स्पष्ट करना, ०प्रस्तुत करना, ०सजाना, ० समारम्भ करना।
अञ्जञ्जनः (पुं०) सानत्कुमार स्वर्ग का प्रथम पटल | अञ्जनं (नपुं०) कज्जल, सुरमा । तस्याः दृशोश्चञ्चलयोस्तथाऽन्याऽञ्जनं चकरातिशितं वदान्या । (वीरो० ५ / १२) चञ्चल नेत्रों में अत्यन्त काला अञ्जन । अञ्जनं जयति रूपसम्पदि । (जयो० ११ / ९६)
अञ्जनगिरि: (पुं०) अञ्जनगिरिः, अञ्जन गिरि नामक पर्वत ॥ नन्दीश्वरद्वीप की पूर्वादि दिशाओं में ढोल के आकर के चार पर्वत हैं, उनमें अज्जनगिरि, अञ्जन के सदृश्य पर्वत है। अञ्जनचोर (पुं०) अज्जन नामक चोर (हित०सं० २८)
यत्राञ्जन्स्तस्करादिजना: मुक्तिं गताः किल । निःशकित अंग में दृढ़ व्यक्ति, जिसने राजदण्ड के भय से नवकार मन्त्र का स्मरण किया।
अञ्जनमूलः (पुं०) मानुषोत्तरपर्वत का एक कूट। अञ्जनमूलकः (पुं०) रुचक पर्वत पर स्थित कूट । अञ्जनराशि (स्त्री०) कज्जलपंक्ति (जयो० १०/३) अञ्जनवर : (पुं०) एक प्रमुख सागर, मध्यलोक के अन्त से १२वीं सागर व द्वीप।
अञ्जनशैलः (पुं०) विदेहक्षेत्र का पर्वत, भद्रशाल वन में स्थित पर्वत, दिग्गजेन्द्र पर्वत ।
अज्जना (स्त्री०) महेन्द्रपुर के राजा महेन्द्र की पुत्री, पवनज्जय की भार्या और हनुमान की मातुश्री । अञ्जनौघः (पुं०) कञ्जलकुल । (वीरो० २/१२) अञ्जलिः (स्त्री०) कर युग सम्पुट, दोनों हाथ का कमल-कली
रूप भाग। संहिताञ्जलिरहं किलाधुना (जयो० २/१) अञ्जलिपुटं (नपुं०) करसम्पुट । बद्धाञ्जलिः (दयो० वृ० ११६) अञ्जरीङ्गित (वि०) कर युगल सम्पुट वाला। (जयो० २०/८५)
परमञ्जरीतिं विदधामि । (जयो० २०/८५) केवलमज्जरीङ्गितं स्वकीय- करपुटसंपुटम्। (जयो० वृ० २०/८५)
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