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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजिनं १८ अज्ञानिन् नाम सादृश्य होने पर उन्हें नमस्कार किया है, किन्तु जो भवतां खलु भाग्यान्नि:स्वागतगणना अपि चाज्ञाः। (जयो० अजिन/चर्म को धारण करने वाले हैं, उन महादेव को १२/१४३) मेरा नमस्कार है। अज्ञता (वि०) मूखर्ता, अज्ञानता। (जयो० २/४५) अज्ञता हि अजिनं (नपुं०) १. चर्म। (जयो० १९/२२) चमड़े की धौकनी। जगतो विशोधने। (जयो० २/४५) अपने घर की जानकारी अजिनपत्री (स्त्री०) चमगादड़। न रखते हुए दुनिया को खोजना अज्ञता ही होगी। अजिनयोनिः (पुं०) हिरण, मृग। स्वगृहाचारज्ञानाभावे जगत: संसारस्य विशोधनेऽन्वेषणेऽज्ञतैव अजिनवासिन् (वि०) मृगचर्मधारी। मूढतैव स्यात्। (जयो० २/४५) अजिर (वि०) [अज्+ किरन्] शीघ्रगामी, स्फूर्तिवान्। अज्ञाङ्गजः (पुं०) अज्ञानी का पुत्र, मूर्ख व्यक्ति का पुत्र। अजिरं (नपुं०) आंगन। (वीरो० १७/३३) भो सज्जना विज्ञतुतज्ञ एवमज्ञाङ्गजो अजिरं (नपुं०) शरीर, देह। यत्नवशाज्ज्ञदेवः। (वीरो० १७/३५) विद्वान् पुरुष का लड़का अजिला (स्त्री०) शोभा। (जयो० वृ० ५/१०७) अज्ञ देखा जाता है और अज्ञानी पुरुष का लड़का विद्वान् अजिह्य (वि०) सीधा, सरल, देखा जाता है। अजिह्यः (पुं०) मेंढक, दुर्दर। अज्ञात (वि०) आज्ञा प्राप्त वाला। अज्ञातोऽपि न अजिह्वः (पुं०) मेंढक, दर्दुर। दातृदेहमृदुताद्यालोकने व्याकुलः। (मुनि०१०) आज्ञा प्राप्त अजीर्णं (नपु०) अपचन, न पचा हुआ। (दयो० ८०) होने पर भी दाता के शरीर की कोमलता आदि के देखने अजीर्ण (वि०) नया, नूतन। में व्याकुल न हो। अजीर्ण (नपुं०) अपच। अज्ञात (वि०) मद/प्रमाद बिना जाने प्रवृत्ति करना। अजीर्णिः (स्त्री०) [नञ!+~+क्तिन्] मन्दाग्नि, शक्तिक्षय। अज्ञान (नपुं०) अज्ञान, अनजान। (वीरो० १६/२६) अजीव (वि०) निर्जीव, जीव रहित। (वीरो० १९/३०) यदज्ञानतोऽतर्व्यवस्तु प्रशस्तिः । अज्ञान से कुतर्क करके अजीवः (पुं०) पुद्गल, अचेतन, अचित्त। अजीव/पुद्गल निंद्य वस्तु को उत्तम बताना। द्रव्य-पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पांच अज्ञान (वि०) अनजान, अनभिज्ञ न समझी। अचेतन द्रव्य हैं इन्हें अजीव या पुद्गलद्रव्य कहते हैं। जो अज्ञानं (नपुं०) अज्ञान, ०वस्तु तत्त्व में विपरीतता ०कुमति, न जीवति, जीविस्यति न वा जीवितः सो अजीव:। अजीव कुश्रुत और कुअविध ये तीन अज्ञान है। जैन सिद्धान्त में पुद्गल द्रव्य रूप, रस, गन्ध और स्पर्शयुक्त हैं, इसे ग्रन्थों में अज्ञान के दो अर्थ किए गए हैं-१. ज्ञान का रूपी/मूर्त भी कहा जाता है। धर्म, अधर्म, आकाश और अभाव और २. मिथ्याज्ञान-कुमति, कुश्रुत और कुअवधि काल अरूपी/अमूर्त द्रव्य हैं। चेतना च यत्र नास्ति स है। मिथ्यात्व सहित ज्ञान को ही ज्ञान का कार्य नहीं करने भवत्यजीव इति विज्ञेयम्। (द्रव्य सं० टी०१५/५०) से अज्ञान कहा जाता है। नित्यानित्य विकल्पों से विचार अजीवभावः (पुं०) अचित्तभाव। (वीरो० १९/३०) करने पर जीवाजीवादि पदार्थ नहीं हैं, अतएव सब अज्ञान अजीवनिः (स्त्री०) [न+जीव+अनि] मृत्यु, जीवपने का अभाव। अज्झलं (नपुं०) ढाल, जलता हुआ कोयला। अज्ञान-अतिचारः (पुं०) अज्ञान दोष, अज्ञ जीवों के आचरण अज्ञ (वि०) [नञ्+ज्ञा+क] मूर्ख, अज्ञानी, ०अनुभवहीन, की तरह आचरण। ज्ञानरहित, नहीं जानने वाला। (जयो० १२/१४३, अज्ञान-स्थानं (नपुं०) अज्ञान का कारण। भक्ति०सं० २७, सुद० पृ० ११०, वीरो० १६/१) अज्ञोऽपि अज्ञानपरिषहः (पुं०) जैन सिद्धान्त को प्रतिपादित बाईस विज्ञो। (वीरो० १६/१) शत्रुश्च मित्रं च न कोऽपि लोके परिषहों में एक अज्ञान परिषह भी होता है। मे अद्यापि हृष्यज्जनोऽज्ञो निपतेच्च शोके। (सुद० ११०) अज्ञानी ज्ञातातिशयो नोत्पद्यत इति। मुझे आज भी ज्ञान का अतिशय मनुष्य व्यर्थ ही किसी को मित्र मानकर कभी हर्षित होता नहीं उत्पन्न हुआ है। है और कभी किसी को शत्रु मानकर शोक में गिरता है। अज्ञानमयी (वि०) अज्ञानयुक्त। (हित०सं० वृ० ५८) अज्ञः (पुं०) अज्ञान, अनभिज्ञ (जयो० १२/१४३) स्वागतमिह । अज्ञानिन् (वि०) अज्ञानी। (भक्ति ३८) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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