________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अजडप्रकृतिः
१७
अजिनः
४/३)
अजडप्रकृतिः (स्त्री) विज्ञस्वभाव।
अजा (स्त्री०) [नञ्+जन्+ड+टाप्] सांख्यदर्शन द्वारा मान्य अजडभावः (पुं०) प्रज्ञाभाव, ज्ञानभाव।
प्रकृति या माया। अजड-मतिः (स्त्री०) तीव्र बुद्धि, श्रेष्ठ बुद्धि, चिन्तनशीलमति। | अजागलस्तनः (पुं०) बकरियों के गले में लटकने वाला स्तन अजडस्वभावः (पुं०) १. नीरप्रकृति रहित, २. जलप्रकृति तुल्य थन। यह एक न्याय/तर्कशास्त्र का प्रचलित शब्द भी रहित। (जयो० १/४१) ०ज्ञान स्वभाव, प्रज्ञ स्वरूप, है, इसका उदाहरण किसी वस्तु की निरर्थकता सूचित आत्म परिणाम।
करने के लिए दिया जाता है। अजडाशय (वि०) ०अजलाशय, ०अजड़ता रहित। (सुद० अजाजिः (स्त्री०) [अजेन आज: त्यागः यस्याम् अज+आज+इन] २४३)
सफेद या काला जीरा। अजत्व (वि०) अमरत्व, (जयो० २७/३)
अजात (वि०) ०अनुत्पन्न। न समझ, नानुमान्यमाना। (जयो० अजत्व-प्रकृतिः (स्त्री०) अमर स्वभाव, अमरभाव। (जयो० १४/९३) २७/३)
अजातशत्रुः (पुं०) मगध का शासक। अजन (वि०) उत्पन्न, पैदा हुआ। (जयो० वृ० ३/९३) अजानती (वि०) अज्ञानी, मूढ, विज्ञहीन। अजन (वि०) निर्जन, जन विहीन, एकान्त, मनुष्यशून्य। अजानिः [नास्ति जाया यस्य-जायाया निङादेश:] विधुर, पत्नी अजन्मन् (वि०) अनुत्पन्न।
विहीन। अजन्मन् (पुं०) परमानन्द, परपद।
अजानिकः (पुं०) [अजेन जानो जीवनं यस्य ठन्] गडरिया, अजन्य (वि०) प्रतिकूल, अयोग्य।
बकरियों का व्यापारी। अजंभः (पुं०) १. सूर्य, २. मेंढक।
अजानुभविन् (वि०) अजर-अमर आत्मानुभव करने वाला। अजंभ (वि०) दन्तहीन, दशन-विहीन।
(सुद० ४/३) अजानुभविनं दृष्टुं जानुजाधिपतिर्ययौ। (सुद० अजपक्षिन् (पुं०) कृष्णखग, गरुड़। (जयो० २८/२२) गरुडेन
नामाजपक्षिणा कृष्णखगेन। (जयो० वृ० २८/२२) अजानेय (वि०) [अजेऽपि आनेयः-यथा-स्थान प्रापणीयः-इति अजपक्षिन् (पुं०) आत्मचिन्तक। अजपक्षिणा आत्मचिन्तकेन। अज्+अप्+आ+नी-यत्] उत्तम कुल वाला। (जयो० वृ० २८/२२)
अजातपुत्रः (पुं०) छागल, बकरा। (दयो० ५७, जयो० २५/१२) अजपोक्त (वि०) जप रहित कथन। (जो०२८/४६)
अजातपुत्र नाम विशेष, ०ऐतिहासिक पुरुष। अजमारी (वि०) अजमृत्यु, बकरा, बकरी की अपमृत्यु। अजित (वि०) [नञ्+जित+क्त] अजेय, अपराजिय, न जीता (जयो० १९/७९)
हुआ, अनियन्त्रित। अजय (वि०) अजेय, अपराजित।
अजितः (पुं०) अजितनाथ, जैनधर्म के चौबीस तीर्थंकरों में अजयः (पुं०) नाम विशेष।
___द्वितीय तीर्थंकर अजितप्रभु। (भक्ति सं० १८) अजयः (पुं०) पराजय।
अजायबघरं (नपुं०) अजायबघर 'इति देशभाषायाम्' अजय्य (वि०) [नञ्+जि+यत्] जो जीता न जा सके।
विचित्रवस्तुगेह। (जयो० १८/४९) अजर (वि०) जरारहित, बुढ़ापाहीन। (जयो० १३/३९) अजितेन्द्रियत (वि०) वशेन्द्रियत्व (वीरो० १६/१५) अजर (वि०) अनश्वर, (वीरो० १४/४१) जन्म-मृत्यु रहित। अजितंजयः (पुं०) मगध राजा। अजरः (वि०) देव, देवता, अमर। (वीरो० १८/४१)
अजितंधरः (पुं०) अष्ठम रुद्र। अजयः (वि०) [नञ्+~+ यत्] अभिहित, अध्याहत।
अजितसेन: (पुं०) राजा अजितंजय का पुत्र। अजवप्रम् (नपुं०) छागशरीर (जयो० २२/३१)
अजिनं [अज्+ इनच्] वाघ। अजसाक्ष (वि०) आत्मप्रमाणपूर्वक। (जयो० ६/७४)
अजिनः (पुं०) महादेव, चमैवाजिन चर्मकं येन, तस्मै अजस्र (वि.) [नञ्। जस्+र] अविच्छिन्न, निरन्तर।
लब्धाजिनचर्मकाय महादेवनामकाय। (जयो० वृ० १९/२२) अजस्रं (अव्य) सदा, अनवरत, लगातार। (सम्य० ११५)
देवाधिदेवाय नमो जिनाय न किन्तु लब्धाजिनचर्मकाय। अजा (स्त्री०) बकरी, छाली। (जयो० ११/८२)
(जयो० १९/२२) देवाधिदेव ऋषभ का महादेव के साथ
For Private and Personal Use Only