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अचल:
अजड
अचलः (पुं०) द्वितीय बलदेव, षष्ठरूद्र, ०भरतक्षेत्र का एक
नाम, पश्चिम धातकीखण्ड का मेरु। अचलः (पुं०) काल प्रमाण। अचलज (वि०) पर्वत से उत्पन्न। अचलत्व (वि०) दृढ़त्व, स्थायित्व। (वीरो० ३/२) अचलदेवी (स्त्री०) मन्त्री चन्द्रमौलि की भार्या। नामतोऽचलदेवी
या बभूव दृढ़धार्मिका (वीरो० १५/४१) अचलाल्मः (पुं०) काल का प्रमाण। अचलावली (स्त्री०) [नञ्+चित्+क्विप्] ०अचेतन, जड़,
धर्मशून्य, शक्तिहीन। चिदचित्प्रभेदात्। (जयो० २६/९२) अचिज्जडात्मकमिति प्रभेदाद्। (जयो० २४/१२) ०रूपी
पदार्थ, निजीव। अचित (वि०) गया हुआ, समाप्त हुआ, ०अविचरित, ___ अकल्पनीय; ०बुद्धिरहित, ०अज्ञान, मूर्ख। अचित्तः (पुं०) योनि विशेष। अचिन्तनीय (वि०) [नञ्+चिन्त्+अनीयर, चित्+यत्] जो
सोचा न जा सके, अकल्पनीय, अविचारित। (सुद० १०७) अचिन्त्य (वि०) अविचारित, अकल्पनीय। (समु० १/३२)
व्यापारकार्यार्थमचिन्त्य। अचिन्त्यधामः (पुं०) अपूर्वनाम, अनुपम नाम। (समु० १/३२) अचिन्त्यप्रभावः (पुं०) अप्रत्याशित, आकस्मिक। अचिर (वि०) क्षणस्थायी, क्षणिक, शीघ्रता (सुद० पृ० १००) अचिरात् (अव्य) शीघ्रमेव, जल्दी, तुरन्त। सुरम्यमर्ककीर्तिम
चिरादुपगम्य। (जयो० ४/१) । अचेतन (वि०) निर्जीव, पुद्गल। अचेतनं भस्म सुधादिकन्तु।
(वीरो० ९९/२८) अचेनं (नपुं०) अचेतन, निर्जीव। अचेलकः (पुं०) निर्ग्रन्थ, दिगम्बर। अचेलकत्व (वि०) बाह्य और आभ्यन्तर दोनों ही परिग्रह से मुक्त। अच्छ (वि०) [नञ्+छो+क] स्वच्छ, निर्मल, पारदर्शक। न विद्यते छाया यस्याः सा, अच्छो निर्मलः अयो भाग्यं यस्याः सा। (जयो० १४/४वृ० ) छाया सूर्यप्रिया कान्ति
प्रतिबिम्बमनातपः इत्यमरः। अच्छः (पुं०) भालू, रीछ, स्फटिक, ०असूर्य। (जयो० २३/१) अच्छता (वि०) स्फटिकरूपता। अच्छन्दस् (वि०) अक्षत, निर्दोष। अच्छल (वि०) छलरहित (वीरो० ९/५७) अच्छिद्र (वि०) अक्षत, निर्दोष, दोषरहित।
अच्छिन्न (वि०) अटूट, अविभक्त। अच्छोटनम् (नञ्-छुट+णिच्+ल्युट) आखेट, शिकार। अच्युत (वि०) ०दृढ़, ०देव विशेष। स्थिर, निश्चल, अचल,
निर्विकार। अच्युतः (पुं०) प्रभु, नायक, इन्द्र। (दयो० पृ० २८) अच्युतेन्द्रः (पुं०) स्वर्ग नाम। (क्षीरो०११/३६) अच्युतेन्द्रः (पुं०) देव नाम। (दयो० पृ० २८) अचौर्यमहाव्रतं (नपुं०) अचौर्यमहाव्रत, साधु का एक निरपेक्ष
व्रत। (मुनि० पृ० ३) अचौर्यमहाव्रत की भावना-शून्यागारावास, विमोचित्तावास, परोपरोधाकरण, भैक्ष्यशुद्धि और
सधर्म विसंवाद। अज् (भ्वा०पर०अक०) अजितुम्। ०जाना, हाँकना, गमन करना। अज (वि०) [न जायते नञ् जन+ड] अजन्मा, अनादि। अजः (पुं०) परमात्मा, परब्रह्म। (जयो० १९/९२) अजस्य
नाम परमात्मनोऽनुभावको भवन्। (जाये०१९/९२) अज का नाम परमात्मा और अनुभावक दोनों हैं। अकार नाम का वर्ण/अक्षर प्रथम और जकार नाम का वर्ण अन्तिम इस तरह अज शब्द निष्पन्न हुआ। यह 'अज' परमात्मा
और परब्रह्म का वाचक है। इसी तरह अट्ठाइसवें सर्ग में 'अज' शब्द का विश्लेषण इस प्रकार किया है-'अकारेण शिष्टं प्रारब्धोच्चारणम् अन्त्येभवोऽन्त्यो जकारो यस्य जं'
'अजं' परमात्मरूपम्। (जयो० वृ० २८/२०) अजः (पुं०) आत्मा। (जयो० ६/७४) निजतेजसाऽजसाक्षी
(जंयो० ६/७४) 'अज' आत्मेव साक्षी यस्य स आत्म
प्राणवान्। (जयो० वृ० ६/७४) शिव। अजः (पुं०) १. मेंढा, बकरा, मेषराशि। (जयो० ११/८२) २.
चन्द्रमा, कामदेव। अजः (पुं०) ०स्थान नाम, अजमेर का नाम, ०अजयमेरू,
अज उपाधि विशेष। अजः (पुं०) सौभाग्य, सुहाग। (जयो० ६/७४) अजकवः (पुं०) शिव धनुष। अजका (स्त्री०) छोटी बकरी, मेमना। अजकावः (पुं०) [अजं विष्णु कं ब्राह्मणाम् अवति-वा-क]
शिवधनुषा अजगरः (पुं०) अजगर सर्प, वालव। (जयो० १३/४५)
वालवस्याजगरस्य। (जयो० वृ० १३/४५) अजड (वि०) विज्ञ, समझदार, चिन्तनशील। (जयो० १/४१)
समुद्रोऽप्यजडस्वभावात्। प्रज्ञाशील, ज्ञानी, बुद्धिमान्।
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