SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कान्ताकुच शैलः २७७ काम-कथा कान्ताकुच शैलः (पुं०) उठे हुए कुच। (वीरो० ९/३३) कापर्दिकः (पुं०) कौड़ी। (वीरो० ६/४) कान्तामुख-मण्डलः (पुं०) प्रिया का मुख समूह। (वीरो० कापालः (पुं०) [कपाल+अण] एक समुदाय। १२/२३) 'कान्तार सद्विहारेऽस्मिन्' (सुद० ८४) २. कापि (अव्य०) कोई भी (सुद० ८५) ऊबड़-खाबड़ मार्ग, दूषित पथ। ३. लालरंग की ईख। कापिल (वि०) कपिल सम्बन्धी। कापिलानां कृपिलानुयायिना कान्तावलोकः (पुं०) प्रियावलोक। सती प्रतीतिः। कान्तिः (स्त्री०) [कम्+क्तिन्] प्रभा, चमक, आभा, सौन्दर्य, कापिलसत्प्रतीतिः (पुं०) सांख्यमत। लावण्य, रमणीयता, दीप्ति। २. कामना, इच्छा, आशा। कापुरुषः (पुं०) कायरपुरुष, कुपुरुष, निम्न व्यक्ति। (जयो० ११०) कापिष्टः (वि०) आठवां स्वर्ग। (समु०५/३३, ६/२४) कान्तिकर (वि०) शोभा युक्त। कापेयं (नपुं०) वानर जाति का। कान्तिगेहं (नपुं०) सुन्दर घर। कापोत (वि०) [कपोत+अण्] १. कलुषता युक्त भाव। २. कान्तिचन्द्रः (पुं०) प्रभावान् चन्द्र। भूरे रंग का, कबूतर के रंग का। कान्तिचयः (पुं०) कान्ति समूह, दीप्तिमान। 'कान्तीनां चयः । कापोतलेश्या (स्त्री०) कलुषता युक्त भावों वालों को लेश्या, समूहो यस्य सः। लेश्याओं में तीसरी लेश्या। कान्तिझरतांत (वि०) कान्तिप्रवाह। (जयो० ६/९१) (जयो० कापोतलेश्यावर्णः (पुं०) कपोतलेश्या का वर्ण-अलसी पुष्प ___ वृ० ३/१०४) ___ या कबूतर के कण्ठ जैसा। कान्तिमतिः (स्त्री०) १. सरस्वती की उपाधि ' श्रीमती भगवती काफी होलिकारागः (पुं०) एक राग विशेष, जिसमें ज्ञेय सरस्वतीं' (जयो० २/४१) 'श्रीमती कान्तिमतीं' (जयो० तत्त्व की प्रधानता होती है। कदा समयः स समायादिह वृ० २/४१) २. प्रभासहित, भासपूर्ण, आभा युक्त। जिनपूजाया। कञ्चनकुलशे निर्मलजलमधिकृत्य मञ्जु गङ्गाया। कान्तिभत्त्व (वि०) कान्तियुक्त (जयो० ११/१५) (जयो० (सुद० वृ०७१) वृ० १/६९) कामः (पुं०) [कम्+घञ्] कामना, इच्छा, अभिलाषा, लालसा, कान्तिहीन (वि०) १. लावण्यागतिगत। लवण रहित। (जयो० आसक्ति, विषयभाव, स्नेह, अनुराग, प्रेम, सर्वेन्द्रिय प्रीति, वृ० १२/१२५) २. प्रभा रहित, आभा शून्य। रुचि, दुष्ट अभिप्राय। कान्दवं (नपुं०) [कन्दु+अण्] अयस्क कढ़ाई, लोह कडाह। दर्पक-(जयो० वृ० ५/१२) कान्दविक (वि०) [कान्दव ठक्] १. आपूपिक, पुआ। (जयो० अन्तशय-कामदेव (जयो० वृ० ३/८६) वृ० ३/६१) २. हलवाई, मिठाई बनाने वाला। (समु० कामवेष्टा-'कामोऽपि नामास्तु यदिङ्गवश्यः' (सुद०७/४) १/१५) 'कुर्यात्, कवि: कान्दविक: कवित्वम्' (समु०१/१५) रति-(जयो० १७/१३२) कान्दिशीक (वि०) उड़ाने वाला, भगाने वाला, भयभीत, कामपुरुषार्थ-(जयो० वृ० ५/४३) भययुक्त। कामशास्त्र- (जयो० वृ० २/५७) कान्यकुब्ज: (पुं०) एक देश नाम। वाञ्छा-(जयो० ११/९४) कापटिक (वि.) [कपट ठक्] प्रगल्भ कपट करने वाला, इच्छापूर्ति-(जयो० ११/८६) 'कामस्य सुरम्या वाञ्छितका ' कुटिल प्रवृत्तियुक्त। परमर्मज्ञः प्रगल्भश्छात्र: कापटिकः। (जयो० ११/८६) बेईमान, धोखेबाज। कार्य-जयो० ७/१ 'अथ दुर्मर्षणः स्वस्य नाम कामं समर्थयन्' कापट्य (नपुं०) [कपट ष्यञ्] दुष्टता, धोखेबाज, धोखा (जयो० ७/१) देने वाला। कामदेव-(जयो० १/३५) कापथः (पुं०) दुस्मार्ग, कपथ, कंटकाकीर्ण, विकृतमार्ग। (सम्य० एक पुरुषार्थ (जयो० १/३) ९३) स्मृतिशास्त्र-कामवत्-मनोभूसदृशः। कापथघट्टनं (नपुं०) विकृतमार्ग का खण्डन। (सम्य० ९३) काम-कथा (स्त्री०) कामिनी के रूप सौन्दर्य आदि से सम्बन्धित तत्त्वोपदेशकृत्सर्वशास्त्रं कापथघट्टनं। कथा। 'स्त्रीषु दुरभिसन्धिः कामः तक्कथा'। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy