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कान्ताकुच शैलः
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काम-कथा
कान्ताकुच शैलः (पुं०) उठे हुए कुच। (वीरो० ९/३३) कापर्दिकः (पुं०) कौड़ी। (वीरो० ६/४) कान्तामुख-मण्डलः (पुं०) प्रिया का मुख समूह। (वीरो० कापालः (पुं०) [कपाल+अण] एक समुदाय।
१२/२३) 'कान्तार सद्विहारेऽस्मिन्' (सुद० ८४) २. कापि (अव्य०) कोई भी (सुद० ८५)
ऊबड़-खाबड़ मार्ग, दूषित पथ। ३. लालरंग की ईख। कापिल (वि०) कपिल सम्बन्धी। कापिलानां कृपिलानुयायिना कान्तावलोकः (पुं०) प्रियावलोक।
सती प्रतीतिः। कान्तिः (स्त्री०) [कम्+क्तिन्] प्रभा, चमक, आभा, सौन्दर्य, कापिलसत्प्रतीतिः (पुं०) सांख्यमत।
लावण्य, रमणीयता, दीप्ति। २. कामना, इच्छा, आशा। कापुरुषः (पुं०) कायरपुरुष, कुपुरुष, निम्न व्यक्ति। (जयो० ११०)
कापिष्टः (वि०) आठवां स्वर्ग। (समु०५/३३, ६/२४) कान्तिकर (वि०) शोभा युक्त।
कापेयं (नपुं०) वानर जाति का। कान्तिगेहं (नपुं०) सुन्दर घर।
कापोत (वि०) [कपोत+अण्] १. कलुषता युक्त भाव। २. कान्तिचन्द्रः (पुं०) प्रभावान् चन्द्र।
भूरे रंग का, कबूतर के रंग का। कान्तिचयः (पुं०) कान्ति समूह, दीप्तिमान। 'कान्तीनां चयः । कापोतलेश्या (स्त्री०) कलुषता युक्त भावों वालों को लेश्या, समूहो यस्य सः।
लेश्याओं में तीसरी लेश्या। कान्तिझरतांत (वि०) कान्तिप्रवाह। (जयो० ६/९१) (जयो० कापोतलेश्यावर्णः (पुं०) कपोतलेश्या का वर्ण-अलसी पुष्प ___ वृ० ३/१०४)
___ या कबूतर के कण्ठ जैसा। कान्तिमतिः (स्त्री०) १. सरस्वती की उपाधि ' श्रीमती भगवती काफी होलिकारागः (पुं०) एक राग विशेष, जिसमें ज्ञेय
सरस्वतीं' (जयो० २/४१) 'श्रीमती कान्तिमतीं' (जयो० तत्त्व की प्रधानता होती है। कदा समयः स समायादिह वृ० २/४१) २. प्रभासहित, भासपूर्ण, आभा युक्त।
जिनपूजाया। कञ्चनकुलशे निर्मलजलमधिकृत्य मञ्जु गङ्गाया। कान्तिभत्त्व (वि०) कान्तियुक्त (जयो० ११/१५) (जयो० (सुद० वृ०७१) वृ० १/६९)
कामः (पुं०) [कम्+घञ्] कामना, इच्छा, अभिलाषा, लालसा, कान्तिहीन (वि०) १. लावण्यागतिगत। लवण रहित। (जयो० आसक्ति, विषयभाव, स्नेह, अनुराग, प्रेम, सर्वेन्द्रिय प्रीति, वृ० १२/१२५) २. प्रभा रहित, आभा शून्य।
रुचि, दुष्ट अभिप्राय। कान्दवं (नपुं०) [कन्दु+अण्] अयस्क कढ़ाई, लोह कडाह। दर्पक-(जयो० वृ० ५/१२) कान्दविक (वि०) [कान्दव ठक्] १. आपूपिक, पुआ। (जयो० अन्तशय-कामदेव (जयो० वृ० ३/८६)
वृ० ३/६१) २. हलवाई, मिठाई बनाने वाला। (समु० कामवेष्टा-'कामोऽपि नामास्तु यदिङ्गवश्यः' (सुद०७/४)
१/१५) 'कुर्यात्, कवि: कान्दविक: कवित्वम्' (समु०१/१५) रति-(जयो० १७/१३२) कान्दिशीक (वि०) उड़ाने वाला, भगाने वाला, भयभीत, कामपुरुषार्थ-(जयो० वृ० ५/४३) भययुक्त।
कामशास्त्र- (जयो० वृ० २/५७) कान्यकुब्ज: (पुं०) एक देश नाम।
वाञ्छा-(जयो० ११/९४) कापटिक (वि.) [कपट ठक्] प्रगल्भ कपट करने वाला, इच्छापूर्ति-(जयो० ११/८६) 'कामस्य सुरम्या वाञ्छितका '
कुटिल प्रवृत्तियुक्त। परमर्मज्ञः प्रगल्भश्छात्र: कापटिकः। (जयो० ११/८६) बेईमान, धोखेबाज।
कार्य-जयो० ७/१ 'अथ दुर्मर्षणः स्वस्य नाम कामं समर्थयन्' कापट्य (नपुं०) [कपट ष्यञ्] दुष्टता, धोखेबाज, धोखा (जयो० ७/१) देने वाला।
कामदेव-(जयो० १/३५) कापथः (पुं०) दुस्मार्ग, कपथ, कंटकाकीर्ण, विकृतमार्ग। (सम्य० एक पुरुषार्थ (जयो० १/३) ९३)
स्मृतिशास्त्र-कामवत्-मनोभूसदृशः। कापथघट्टनं (नपुं०) विकृतमार्ग का खण्डन। (सम्य० ९३) काम-कथा (स्त्री०) कामिनी के रूप सौन्दर्य आदि से सम्बन्धित तत्त्वोपदेशकृत्सर्वशास्त्रं कापथघट्टनं।
कथा। 'स्त्रीषु दुरभिसन्धिः कामः तक्कथा'।
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