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अकाटुकं
२७६
कान्तार
काटुकं (नपुं०) अम्लता, खट्टा, खटाई। काठः (पुं०) [कठ्+घञ्] पत्थर, चट्टान। प्रस्तर, शैल। काठिनं (नपुं०) १. कठोरता, कठिनता। २. क्रूरता, कटुता,
निर्दयता। काठिन्य (वि०) कठोरता, क्रूरता। (वीरो० २/४८, सुद० १/३५) काडुवेदः (पुं०) पल्लवप्रदेश राजा। (वीरो० १५/४३) काण (वि०) [कण्+घञ्] १. करना, एक नयन युक्त। २.
काना-छिद्र युक्त, खराब। हीन, व्यर्थ-(जयो० १९/५८) काणकं (नपुं०) स्वर्ण/सोना निर्मित। कनकनिर्मित। काणकक्रयी (वि०) कनकनिर्मित का खरीरददार, स्वर्णनिर्मित
आभूषणादि का क्रय करने वाला। काणेली (स्त्री०) व्यभिचारिणी स्त्री। काण्डः (पुं०) १. खण्ड, भाग, अंश, हिस्सा, अधिकार, सर्ग।
२. पोर, गांठ, डंठल, तना, शाखा। ३. ग्रन्थांश, पुस्तक का अध्याय। ४. कृत्य, निम्नकार्य, नीचकार्य, पापजनक
व्यवहार, काण्डकर (वि०) १. दुराचारी। २. अध्याय प्रस्तुत कर्ता। काण्डकार: (पुं०) निर्माता, प्रस्तुत कर्ता। काण्डगोचरः (पुं०) अयस्क बाण। काण्डपरः (पुं०) कनात, परदा। काण्डभंगः (पुं०) शरीरांश का टूटना, हड्डी भंग। काण्डसन्धिः (स्त्री०) ग्रन्थि, जोड़। काण्डस्वरः (पुं०) खिड़की, झरोखना। (जयो० १२/११३) । काण्डीरः (पुं०) धनुर्धारी। कात् (अव्य०) तिरस्कार सूचक अव्यय, अपमान, तिरस्कार/ कातन्त्र्यं (नपुं०) प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरण। कातर (वि०) कायर, भयायुक्त, उत्साह विहीन, दु:खी, (वीरो०
१६/६) व्याकुल, शोकजनित, विक्षुब्ध, 'निवहन्नुपयाति कातरः' (जयो० १३/५१) 'कातरो भीत इव' (जयो० ७० १३/५१) १. असमर्थ-त्वदादेशविधिं कर्तुं कातरोऽस्मीति
वस्तुतः।' (सुद०७९) कातरचित्तः (पुं०) कायर हृदय, भयभीत चित्त वाला। (दयो०
९२) कातर्य (नपुं०) कायरता, भयाकुलता। कार्तज्ञता (वि०) कृतज्ञता, प्रत्युपकार। (जयो० २९/६४) कार्तिकेयः (पुं०) कार्तिकेयानुप्रेक्षा के रचनाकार। कात्यायनः (पुं०) एक प्रसिद्ध वैयाकरण। काथिक (वि०) [कथा+ठक्] कथा वाचक।
कादर्थ (वि०) कृपणत्व, कंजूसीपना। (जयो० २/११०) कादम्बः (पुं०) १. कलहंस, राजहंस। २. इक्षु, ईख, गन्ना। ३.
कदम्ब वृक्षा कादम्बरं (नपुं०) शराब, कदम्बतरु से निकाली गई सुरा। कादम्बरी (स्त्री०) वाणी, वचन। (जयो० ११/७६) कादम्बिनी (स्त्री०) मेघमाला, खे पंक्ति। 'कादम्बिनी पीनपयोधरा
वा'। बादल समु दाय। (समु० २/५) मेघ समूह। कादाचित्क (वि०) [कदाचित् ठञ्] आकस्मिक, कभी कभी। काद्रवेयः (पुं०) [कद्रो अपत्यम्-कटु+ठक्] सर्प, सांप, अहि।
(जयो० ११.९६) काननं (नपुं०) [कन्+णिघ्+ ल्युट्] अरण्य, जंगल, विपिन।
(जयो० १३/५०) १. उपवन, बाग, बगीचा। काननक्षेत्र (नपुं००) अरण्य भाग, वनक्षेत्र, वनांचल। कानन-पादपः (पुं०) जंगली वृक्ष। काननभू (स्त्री०) वनक्षेत्र, वन भू-भाग। काननभूमिः (स्त्री०) अरण्यभूमि, वनावनि। (जयो० २३/११३) कानन-सौन्दर्य (वि०) अरण्यशो भा। कानिष्ठिकं (नपुं०) [कनिष्ठिका+अण्] कनिष्ठा अंगुली,
छोटी अंगुली। कानिष्ठिनेयः (पुं०) लघु पुत्री की सन्तान। कानीनः (पुं०) १. कन्या। २. कन्यायाः जातः कन्या अण्।
अविवाहिता कन्या का पुत्र। कानीनजन: (पुं०) माण्डपिक, विवाह के मण्डल में स्थित
लोग। समभूत्क्रमभूमिरेकधा चाखिल-कानीनजनो
मनोज्ञवाचा। (जयो० १२/३३) कान्त (वि०) [कन्+क्त] १. प्रिय, इष्ट, मनोज्ञ. अनुकूल।
धव। (जयो० वृ० १४/२३) २. सुखकर, यथेष्ठ, मनोहर, सुन्दर, रमण, रमणीय। (जयो० वृ० २/१४८) ३. पति,
प्रेमी। (सुद० वृ०८३) 'कान्तमामनिरेऽङ्गना' (सुद०८३) कान्तता (वि०) कान्ति युक्त। (जयो० २२/४६) कान्त-समागमः (वि०) प्रिय संसर्ग। (जयो० १७/२०) कान्ता (स्त्री०) १. वनिता, पत्नी, भार्या, प्रिया, प्रेमिका।
कान्तालसन्निधानस्य फलतात् सुमनस्कता' (जयो० १/११२) २. सुहावनी, लावण्यमयी स्त्री। कान्तां रजनी गत्वा। (सुद० ९९) ३. बड़ी इलायची, प्रियंगुलता। ४. भू,
भूमि, पृथ्वी। कान्तार (कान्त+क्त+अण्) १. प्रिय, २. वन, अरण्य। (जयो०
१६/२२)
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