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कल्पातीतः
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यति - श्रावकाणां योग्यायोग्यनिरूपकं कल्पाकल्पम्' (त०वृ० १/२०)
कल्पातीत: (पुं०) १. कल्पना से रहित, आचार व्यवहार से रहित कल्पनातीताः कल्पातीता (स०सि०४/१७) २. देव विमान ।
कल्पांचिप (वि०) स्वर्ग सदृश, नाना प्रकार से प्रशंसनीय ग्रामान् पवित्राप्सरसोऽप्यनेक कल्पांघ्रिपान्यत्र सतां विवेकः । (सुद० १/ २०) २. भूलोक कल्पवृक्ष (जयो० १२/१३७) कल्पान्तः (पुं०) १. प्रलय, सृष्टि की समाप्ति (जयो० ७/४३) २. कल्पयुग का अन्त। कल्पेभ्यः अतिक्रान्ताः
कल्पान्तसंस्थितिः (स्त्री०) कल्पयुग के अन्त तक स्थाई । (जयो० ७/४३) 'जये तेऽप्यजयत्वेन त्वेनः कल्पान्तसंस्थितिः ' (जयो० ७/४३)
कल्पित (वि० ) [ कृप्+ णिच्+क्त] स्वीकृत, परिणत, तैयार किया गया, संरचित, निर्मित। किसी वस्तु को समझाने के लिए दृष्टान्त से कल्पना की गई हो। स्वबुद्धिकल्पना । 'संख्यास्यं सूपकल्पितं तादृकम्' (जयां० ६/१२) कल्पितबुद्धि (स्त्री०) बनावटी चेष्टा 'सज्जायते
कल्पितबुद्धिवारा' (समु० ८/५ )
कल्पितभाव: (पुं०) संरचितभाव, स्वनिर्मित भाव। कल्पित-लेख: (पुं) बुद्धि जनित आलेख, विधि-विधान, संरचना । कल्पितवान् (वि०) कल्पना करता हुआ 'सुचक्षुषः कल्पितवान् विधाता' (जयो० ११ / ३० )
कल्पोपन्नः (पुं०) देव विशेष, सोलहवें स्वर्ग में उत्पन्न देव कल्पोपग: (पुं०) कल्पोपन्न, इन्द्र- सामानिकादि में उत्पन्न ।
सोलह स्वर्गों में उत्पन्न कल्पेषूपपन्नाः कल्पोपपन्नाः कल्प्यता (वि०) रचता (जयो० २/१०५) (स०सि०४/७) बनाता, निर्मित |
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कल्मष (वि०) पाप, मलिन, मैल, (वीरो० १०/२५) लाञ्छन, निन्दा, उच्छिष्ट । नो चेत्कल्मष एष भूरिभवभृत्श्वाधो चरं दुर्जय: । (मुक्ति०३०)
कल्माष (वि०) चितकबरा, धब्बेदार, रंगबिरंगा कलयति, कल्+ क्विप् तं माषयति अभिभवति, माष्+ णिच् + अच् कल् चासौ माषश्च ।
कल्य (वि०) [ कल्यत्] १. स्वस्थ, नीरोग, २. तत्पर, उद्यत, प्रयत्नशील ३. रूचिका, मंगलमय, चतुर कल्यं (नपुं०) १. प्रभात, प्रातः, सुबह । 'कल्याख्य एष समयो
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कल्लोलिता
भवदीक्षणीयो' (जयो० १८/५८) कल्ये बाला चिकुरनिकुरं' (जयो० १८ / ९४ ) २. आने वाला कल।
कल्या ( स्त्री० ) [ कल्+ णिच्+यक्+टाप] मदिरा, शराब, मद्य। कलयति मादयति, (जयो० ७/१७)
कल्याण (वि०) [कल्ये प्रातः अण्यते शब्धते अणपञ्] आनन्द युक्त । कल्यं मुखमारोग्यं शोभनत्वं वां तदणतीति कल्याणम् । सुखदाई. इष्टकर, शुभग, सुन्दर, मनोरम, भाग्यशाली, सुखद, लाभदायक, मंगलप्रद श्रेयस्कर । (मुनि० १५) दीक्षा कल्याणतः पूर्वं पुरूणां परिकीर्तिता । (हित०सं०५)
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कल्याणक ( वि० ) [ कल्याण+कन्] शुभकार्य, आनन्ददाई कार्य, तीर्थंकर का गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान एवं मोक्षादि
कल्याणक ।
कल्याणकर (वि०) हितकर, गर्भ। (जयो० वृ० १ / ३०) कल्याणकृत् (वि०) हितकर, सुखकर आनन्ददायक, अभीष्ट, यथेष्ट, योग्यतम
कल्याण - कर्त्री (वि०) श्रेयस्करी। (दयो० वृ०३ / ५६ ) कल्याण- गृहं (नपुं०) सुखदाई स्थान । कल्याण-नामधेयपूर्वः (पुं०) एक पूर्व ग्रंथ का नाम, जिसमें
त्रिषष्टी शलाकापुरुषों के गर्भ, जन्मादि उत्सवों का कथन पाया जाता है।
कल्याणनिधिः (स्त्री०) श्रेये भण्डार। (जयो० १८/८८) कल्याण- भागिनी (वि०) सौभाग्यशालिनी (वीरो० ४/३४) श्रीजिनपदप्रसादादवनौ कल्याणभागिनी च सदा। (वीरो० ४/३४) कल्याण- युक्त (वि०) हितकर, सुखदाई। कल्याणाभिषवः (पुं०) ०कल्याण रूप अभिषेक ० जन्माभिषेक (वीरो० ४/२)
कल्याणिन् (वि०) हितकारी, समृद्धिशाली, प्रसन्नचित्त, सौभाग्यशील, मंगलकारक।
कल्याणिनी (वि० ) ० आनन्ददायिनि ०सुखकरी, ०प्रसन्नचित्त करने वाली कल्याणिनीह शृणु मञ्जुतमं ममाऽस्यात्। (चीरो० ४/३८)
कल्ल (वि०) [ कल्लू अच्] बहरा
कल्लोलः (पुं० ) [ कल्लू + ओलच्] १. ऊर्मि, लहर, २. हर्ष,
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आनन्द, प्रसन्नता।
कल्लोलाञ्चितः (पुं०) लहर क्रीड़ा, ऊर्मी वेग, लहर प्रवाह । 'कल्लोलेन विनोदेनोततरङ्गेणाञ्चिता' (जयो० २०/७) कल्लोलिता (वि०) तरङ्गिता, ऊर्मी, युक्तता।