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कलावान्
२६८
कलुष
बहत्तर कला विशेषज्ञ, चित्र, संगतादि का ज्ञाता। २. प्रमुख। 'कलिं कलहं पापं वा गच्छन्ति स्वीकुर्वन्ति ते द्वितीया तिथि से उत्पन्न चन्द्र। मान्यः कलावानिव शुक्लपक्ष: कलिङ्गाः' (जयो० वृ०६/२५) द्वितीययोः सत्सु सुतः स दक्षः। (समु० १/३०)
कलिञ्जः (पुं०) [कालन् ।अण] परदा, चटाई। कलावति (वि०) १. नाना कलाओं का धारण करने वाली कलित्र (वि०) कलह/पाप से रक्षा करने वाला। 'छेत्तुं जना
कौमुदं तु परं तस्मिन् कलावति कलावति। (सुद० ९०) जन्मनगं कलित्रम्' (भक्ति०७) कलाविकः (पु०) [कलं आविकायति विशेषण कलित (वि०) स्वीकृत, दत्त, प्रदत्त, प्रदेय, देना, दिया, पकड़ा रीति-कल+आ+वि+कै+कन्] मुर्गा, कुक्कुट।
अनुष्ठित, कल्पित। 'कपोलकलितेषु च भ्रमात्' (जयो० कलाहकः (पुं०) [कलं आहन्ति-कन+आ+हन्+ड + कन्] वृ० २/२६) 'तत्र तत्र कलितं जिनार्चनम्' (जयो० २/३३) एक वाद्य विशेष।
उस उस अवसर पर अनुष्ठित जिनार्चन'। कलिः (स्त्री०) [कल्। इनि] कलह, पाप। कलि काल- कलित-प्रशंसा (वि०) प्रशंसा करती हुई। सा गीति जगाविति
'प्रवलेऽत्रकलेदले खलेन' 'कार्यः कलेरिति तमा पुनः कलित प्रशंसा। (सुद० १२३)। समभूद्विलासः' (वीरो० २२/९) (जयो० वृ० १२/४) कले- कलिता (वि०) सम्पादिता, सम्पादित की गई। (जयो० ५/५२) कलहस्य' (जयो० वृ० १२/४) 'कलिं कलह पापं वा | कलिताङ्गी (वि०) समनुभावित अंग वाली। सदुदय-कलिताङ्गी गच्छन्ति' (जयो० वृ०६/२५)
जग्मुरिष्टं वराङ्गीन्। (वीरो० ४/६३) कलिका (स्त्री०) [कलि+कन्+टाप्] कली, मञ्जरी, पुष्प कलिनोचितसत्ता (वि०) तारक युक्त सत्ता 'कलिता सम्पादिता गुच्छ। (जयो० १२/३१)
उचिता सत्ता प्रशंसनीया' (जयो० वृ० ५/५२) कलिकामृद्धी (वि०) कुड्मलकोमलता। (वीरो० ३/८५) कलितोष्मः (पुं०) गर्मी के कारण, सन्तपन के बहाने, स्वीकृत कलिकाम्रः (पुं०) आम्रमञ्जरी, उरीक्रियते न किं पिकाय ऊष्मा। 'कलितः स्वीकृत ऊष्मणो मिषः सन्तपनच्छलो कलिकामस्य शुचिस्तु सम्प्रदायः। (जयो० १२/३१)
येन स' (जयो० वृ० १२/१२२) कलिकालः (पुं०) कलिकाल, कलहकाल, पाप युक्त समय। कलिर्नु (पुं०) काले बादल, कलिकाला। (वीरो० ४/५) 'यत्किल कलिकालस्यान्ते प्रलयो भविष्यतीति' (जयो० कलिन्दः (पुं०) [कलि+दा+खच्] १. यमुना नदी का उद्गम वृ०७/५९)
स्थल, २. रवि, सूर्य। ३. पर्वत, गिरि। कलिङ्गः (पुं०) १. चातक पक्षी। 'कलिङ्ग इव चातकपक्षी व, कलिन्दगिरिः (पुं०) कलिन्दपर्वत।
यथा चातको मेघानां वर्षणमपेक्षते' २. चतुरजन (जयो० कलिन्दजा (स्त्री०) यमुना। ८/५७) (जयो० वृ०६/२१)
कलिन्दतनया (स्त्री०) यमुना। कलिङ्गः (पुं०) एक देश विशेष। 'कलिङ्गे नाम देशे जात:' कलिमलधवन (नपुं०) कलिकाल सम्बंधी दोष का प्रक्षालन। (जयो० वृ०६/२२)
(सुद० वृ०७०) कलिङ्गजा (पुं०) गज, हस्ति, हाथी। 'कलिङ्गजानां गजानां कलिरात्रि (स्त्री०) कलिकाल की रात (सुद० ९७) हस्तिनाम्' (जयो० वृ०६/२२)
कलिल (वि०) [कल इलच्] १. पापकर्म, पापभाव, कलह। कलिङ्गता (वि०) कलिङ्ग देश का शिरोमणि। कलिं कलह (जयो० २४/७३) २. आच्छादित, आवृत, ढका हुआ।
पापं वा गच्छन्ति स्वीकुर्वन्ति ते कलिङ्गास्तेषां कलिङ्गानां भरा, आपूरित, प्रभावित।
कलिङ्गतानां राजानं शिरोमणिः' (जयो० वृ०६/२५) कलिलावनं (नपुं०) पाप का संरक्षण, कलह-उच्छेद। कलिङ्ग-राजन् (पुं०) चतुरों का राजा। कलिङ्ग-राजाभिधां 'कलिलस्य पापभावस्यावनं संरक्षणं भवति' (जयो० वृ०
कलिङ्गानां चतुराणां राजासावित्येवं' (जयो० ७० ६/२३) २४/७३) 'कले: कलहस्य लावनमुच्छेदनम्' (जयो० ० २४४३) 'नीवृद्धेदे कलिङ्गस्तु त्रिषु दग्ध-विदग्धयोरि' ति कोषात्। कलुष (वि०) [कल+ उषच्] १. मलिन, मैला, धुंधला, २. (जयो० वृ० ६/२३)
दुष्ट, पापजन्य, क्रूर, निर्दय, २. संकल्प-विकल्प युक्त कलिङ्गशिरोमणिः (पुं०) कलिङ्ग राजा।
(जयो० वृ० १/११) कलिङ्गा (स्त्री०) [कलि+गम्+ड] कलह करने वाला का
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