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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलावान् २६८ कलुष बहत्तर कला विशेषज्ञ, चित्र, संगतादि का ज्ञाता। २. प्रमुख। 'कलिं कलहं पापं वा गच्छन्ति स्वीकुर्वन्ति ते द्वितीया तिथि से उत्पन्न चन्द्र। मान्यः कलावानिव शुक्लपक्ष: कलिङ्गाः' (जयो० वृ०६/२५) द्वितीययोः सत्सु सुतः स दक्षः। (समु० १/३०) कलिञ्जः (पुं०) [कालन् ।अण] परदा, चटाई। कलावति (वि०) १. नाना कलाओं का धारण करने वाली कलित्र (वि०) कलह/पाप से रक्षा करने वाला। 'छेत्तुं जना कौमुदं तु परं तस्मिन् कलावति कलावति। (सुद० ९०) जन्मनगं कलित्रम्' (भक्ति०७) कलाविकः (पु०) [कलं आविकायति विशेषण कलित (वि०) स्वीकृत, दत्त, प्रदत्त, प्रदेय, देना, दिया, पकड़ा रीति-कल+आ+वि+कै+कन्] मुर्गा, कुक्कुट। अनुष्ठित, कल्पित। 'कपोलकलितेषु च भ्रमात्' (जयो० कलाहकः (पुं०) [कलं आहन्ति-कन+आ+हन्+ड + कन्] वृ० २/२६) 'तत्र तत्र कलितं जिनार्चनम्' (जयो० २/३३) एक वाद्य विशेष। उस उस अवसर पर अनुष्ठित जिनार्चन'। कलिः (स्त्री०) [कल्। इनि] कलह, पाप। कलि काल- कलित-प्रशंसा (वि०) प्रशंसा करती हुई। सा गीति जगाविति 'प्रवलेऽत्रकलेदले खलेन' 'कार्यः कलेरिति तमा पुनः कलित प्रशंसा। (सुद० १२३)। समभूद्विलासः' (वीरो० २२/९) (जयो० वृ० १२/४) कले- कलिता (वि०) सम्पादिता, सम्पादित की गई। (जयो० ५/५२) कलहस्य' (जयो० वृ० १२/४) 'कलिं कलह पापं वा | कलिताङ्गी (वि०) समनुभावित अंग वाली। सदुदय-कलिताङ्गी गच्छन्ति' (जयो० वृ०६/२५) जग्मुरिष्टं वराङ्गीन्। (वीरो० ४/६३) कलिका (स्त्री०) [कलि+कन्+टाप्] कली, मञ्जरी, पुष्प कलिनोचितसत्ता (वि०) तारक युक्त सत्ता 'कलिता सम्पादिता गुच्छ। (जयो० १२/३१) उचिता सत्ता प्रशंसनीया' (जयो० वृ० ५/५२) कलिकामृद्धी (वि०) कुड्मलकोमलता। (वीरो० ३/८५) कलितोष्मः (पुं०) गर्मी के कारण, सन्तपन के बहाने, स्वीकृत कलिकाम्रः (पुं०) आम्रमञ्जरी, उरीक्रियते न किं पिकाय ऊष्मा। 'कलितः स्वीकृत ऊष्मणो मिषः सन्तपनच्छलो कलिकामस्य शुचिस्तु सम्प्रदायः। (जयो० १२/३१) येन स' (जयो० वृ० १२/१२२) कलिकालः (पुं०) कलिकाल, कलहकाल, पाप युक्त समय। कलिर्नु (पुं०) काले बादल, कलिकाला। (वीरो० ४/५) 'यत्किल कलिकालस्यान्ते प्रलयो भविष्यतीति' (जयो० कलिन्दः (पुं०) [कलि+दा+खच्] १. यमुना नदी का उद्गम वृ०७/५९) स्थल, २. रवि, सूर्य। ३. पर्वत, गिरि। कलिङ्गः (पुं०) १. चातक पक्षी। 'कलिङ्ग इव चातकपक्षी व, कलिन्दगिरिः (पुं०) कलिन्दपर्वत। यथा चातको मेघानां वर्षणमपेक्षते' २. चतुरजन (जयो० कलिन्दजा (स्त्री०) यमुना। ८/५७) (जयो० वृ०६/२१) कलिन्दतनया (स्त्री०) यमुना। कलिङ्गः (पुं०) एक देश विशेष। 'कलिङ्गे नाम देशे जात:' कलिमलधवन (नपुं०) कलिकाल सम्बंधी दोष का प्रक्षालन। (जयो० वृ०६/२२) (सुद० वृ०७०) कलिङ्गजा (पुं०) गज, हस्ति, हाथी। 'कलिङ्गजानां गजानां कलिरात्रि (स्त्री०) कलिकाल की रात (सुद० ९७) हस्तिनाम्' (जयो० वृ०६/२२) कलिल (वि०) [कल इलच्] १. पापकर्म, पापभाव, कलह। कलिङ्गता (वि०) कलिङ्ग देश का शिरोमणि। कलिं कलह (जयो० २४/७३) २. आच्छादित, आवृत, ढका हुआ। पापं वा गच्छन्ति स्वीकुर्वन्ति ते कलिङ्गास्तेषां कलिङ्गानां भरा, आपूरित, प्रभावित। कलिङ्गतानां राजानं शिरोमणिः' (जयो० वृ०६/२५) कलिलावनं (नपुं०) पाप का संरक्षण, कलह-उच्छेद। कलिङ्ग-राजन् (पुं०) चतुरों का राजा। कलिङ्ग-राजाभिधां 'कलिलस्य पापभावस्यावनं संरक्षणं भवति' (जयो० वृ० कलिङ्गानां चतुराणां राजासावित्येवं' (जयो० ७० ६/२३) २४/७३) 'कले: कलहस्य लावनमुच्छेदनम्' (जयो० ० २४४३) 'नीवृद्धेदे कलिङ्गस्तु त्रिषु दग्ध-विदग्धयोरि' ति कोषात्। कलुष (वि०) [कल+ उषच्] १. मलिन, मैला, धुंधला, २. (जयो० वृ० ६/२३) दुष्ट, पापजन्य, क्रूर, निर्दय, २. संकल्प-विकल्प युक्त कलिङ्गशिरोमणिः (पुं०) कलिङ्ग राजा। (जयो० वृ० १/११) कलिङ्गा (स्त्री०) [कलि+गम्+ड] कलह करने वाला का For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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