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कलहकारिता
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कलावत्
कलहप्राभृत (नपुं०) कलह उपचार। (जय०का० १/२३५) बुद्धिमान-जयो२२/७९) कलहंसः (पुं०) राजहंस, हंस। (जयो० १३/५७)
कलानकः (पुं०) निर्देशानुसार, निर्दिष्ट। 'मनुवदन्निजगाद कहहंसततिः (स्त्री०) राजहंस परम्परा। 'कलहंसानां वर्तकानां कलानकः' (समु० १/३६)
राजहंसानां वा ततिः परम्परा' (जयो० वृ० १३/५७) कलानिधिः (स्त्री०) चंद्र, शशि, निशावर। 'कलानां कलहंसोपमित (वि०) राहंस की तरह। शिविराणि बभुश्च धनुर्वेदादि-कौशलानामंशाना वा निधिः' (जयो० वृ० ९/३९) दूरतः कलहंसोपमितानि पूरतः।
कलानिलयः (नपुं०) कला भण्डार 'कलानां गीतवादित्रादीनां कलहैकवस्तु (नपुं) कलह स्थान। (वीरो० २२/१४) (जयो० १३/६४) षोडशांशानाञ्च निलयः स्थानम्( (जयो० वृ० ६/११२) कला (स्त्री०) किल्+अच्+टाप्] कला, १. रेखा, अंश, कलान्तरं (नपुं०) दूसरी रेखा।
खण्ड, भाग, चतुरता। (जयो० वृ० १/१४) २. किरण, कलान्वयः (नपुं०) १. जलाशय, समुद्र, कलायुक्त। (जयो० विकास-स्पृहयति न किं चंद्रकलाप्य विकलाशया (जयो० १७/१०४) चन्द्ररूप (जयो० वृ० १७/१०४) 'कं सुखं ३/६४) ३. दर्शक-यत्र मनाङ् न कलाऽऽकुलताया विकसति लातीति एवंरूपोऽन्वयः स्वभावो यस्याः सा' (जयो० वृ० किन्तु कला कुलतायाः। (सुद० वृ०७६)
१७/१०४) कं जलं लातीति एवंरूपा कलान्वया षोडसकला-'विधोः कला वा तिथिसत्कृतीद्धा' (सुद० जलजीवनाभूत समुद्रः' जलाशय (जयो० वृ० १७/१०४) २/६)
कलापः (पुं०) १. समूह, ओघ, यूथ, समुदाय। 'तत्र भोगिपद आनन्दविधा-कहा चानन्दविधा विधात्री (वीरो० ३/१८) योगिकलापः' (जयो० ५/१६) २. मुक्ताहार, ३. वस्तु कलांश, नेत्रनिमेष-'त्रिशत्काष्ठा कला' (धव० ४/६३) संचय। ४. चन्द्र, ५. आभूषण, ६. बुद्धिमान, प्रज्ञावंत। पुरुष की बहत्तर कला और स्त्रियों की चौंसठ कलाएं तथा छन्दोबद्ध कविता। चन्द्रमा के सोलह कलाएं। चित्रकर्मादि-षोडशाभिः काष्ठाभिः | कलापकं (नपुं०) [कलाप कन्] एक ही विषय पर लिए गए कला। (नियम सा०वृ० ३१)
चार श्लोक, व्याकरण सम्बन्धी विचार। २. सहज आनन्द कलाङ्ग (वि०) कलाकलित, कला/चन्द्र की तरह विकास को का आह्वानकर्ता। (जयो० २२/८६)
प्राप्त अंग वाली। मधुरं रसतात् पयोधराङ्कमधुना हारमिमं कलापिन् (पुं०) १. मयूर, मोर 'काशिकानृपतिचित्तकलापी' न किं ललाङ्क! (जयो० १२/१२६)
(जयो० ३/५५) 'मृदङ्गनि:स्वानजिता कलापी' (वीरो० कलाकन्दः (पुं०) १. कलाकन्द-मिष्ठान्न भोज्यपदार्थ। २. ४/९) २. कोयल, ३. अंजीरतरु।
चन्द्रकला युक्त। (वीरो० २२/३५) कलाकन्दमुखेन पूरिता कलापिनी (स्त्री०) १. रजनी, २. चन्द्र। सा। (जयो० वृ० १२/१२४)
कलापुरू: (पुं०) कला परिपूर्ण चन्द्र। कलासु य पुरवः कलाकलित (वि०) गुण समूह कला युक्त, कलापूर्ण शरीर परिपूर्णः सन्ति। ०कलाधर, चन्द्र, रजनीश, शशि। वाली। (जयो० वृ० १२/१२६)
(जयो० ५/३२) कलाकेलि (वि.) कामी, विलासी।
कलापूर्णः (पुं०) चन्द्र, शशि। कलादः (पुं०) [कला+आ+ दा। क] स्वर्णकार, सुनार। (जयो० कलाबलं (नपुं०) कला सामर्थ्य। 'कलाया बलं सामर्थ्य' ६७४) 'कलादस्य सुवर्णकारस्य'।
(जयो० वृ० २/११४) कलादलं (नपुं०) गुण समूह (जयो० ९/६१) गुणमूल्य। कलाब्जयुग्मं (नपुं०) करकमल-द्वितीय, दोनों हाथ रूपी कलाद-वादः (पुं०) सुवर्णकार, सुनार। असको कलादवाद:। कमल। (जयो० २०/८६)
(जयो० ६/७४) कलादस्य सुवर्णकारस्य वाद दव वादः कलाभृत् (पुं०) चन्द्र, शशि।
प्रतिज्ञा, सुवर्णकारतुल्यचेष्टा। (जयो० ७० ६/७४) कलामय (वि०) कला युक्त, कलापरिपूर्ण, कलासहित। (सुद० १०४) कलादेशः (पुं०) मण्डलपरिपूर्ति (जयो० २८/४४)
कलायः (पुं०) [कला+अय्+अण्] मटर। कलाधरः (पुं०) चंद्र, शशि (जयो० वृ० १०६)
कलावत् (वि०) कलाओं/षोडश कलाओं से युक्त (सुद० कलाधर (वि०) कला धारक, कलाओं में निपुण। (वीरो० ।। ३/४०)
४/४६) 'कलाधरश्चातुर्ययुक्तः' (जयो० वृ० ३/४) | कलावान् (वि०) १. कला को जानने वाला, कलाविज्ञ,
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