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कलत्रकल्पः
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कलहकर
(जयो० वृ० ११/३) ३. स्त्री, भार्या, नारीदल (जयो० कल-भाषा (स्त्री०) मधुर भाषा, मीठी बोली। १४/९६) 'विनिर्वहत्यात्तकलत्र-कल्पम्' (जयो० २७/६०) कलमः (पुं०) [कल्+अम्] धान्य विशेष, गर्मी का धान्य। ४. कूल्हा, नितम्ब। (जयो० वृ० ९१/७)
कलमाय जलाबह्निर्भिषजो रोगिणे गरम्। (दयो० वृ०६४) कलत्रकल्पः (पुं०) नारी विधि। (जयो० २७/६०)
कलम्बः (पुं०) [कल्+अम्बच्] कदम्ब तरु, लता विशेष, २. कलत्रचक्र (नपुं०) श्रोणिबिम्ब, नितम्बचक्र। (जयो० ११/७) तीर, चाधरश्रिया नाधिकलम्बवाचा' (जयो० ११/८९) ___कलत्रमेव चक्र तस्मिन् श्रोणिबिम्बे( (जयो० वृ० ११/७) कलम्बुरं (नपुं०) [क लम्ब्+डटन्] नवनीत, मक्खन, नैनू। कलत्रतुण्डं (नपुं०) वनितावदन, नारीमुख। शरीरमात्रं मलमूत्र- कलय् (अक०) खेलना, संकल्प करना। भवता कलयिष्यामि, कुण्डं किमेकमेतद्धि कलत्रतुण्डम् (जयो० २७/३६)
तदद्य गुणशालिना। (समु० ३/४१) छलेन लोम्नां कलयन् कलत्र-दोषः (पुं०) स्त्रीदोष, नारी दोष।
शलाका। (जयो० २/५९) कलत्र-प्रीतिः (स्त्री०) स्त्री का प्रेमभाव।
कलरवः (पुं०) मधुर ध्वनि, सुन्दर आवाज। (जयो० वृ० कलत्र-कल्पः (पु०) पत्नी का सम्बन्ध।
३/११५) _ 'द्वयोरवस्थानृकलत्र-कल्पा' (सम्य० ३३)
कललः (पुं०) भ्रूण, गर्भाशय। कलत्रमाला (स्त्री०) स्त्री माला।।
कलविङ्कः (पुं०) १. चटिका, चिड़िया। (जयो० १८/९३) कलत्रसन्निधिः (स्त्री०) चन्द्रिका से आलोकित, चन्द्र प्रकाश कलविङ्कनिस्वनः (पुं०) चटिका स्वर, चिड़ियाओं की ध्वनि। युक्त। 'शिशुमाखाद्य कलत्रसन्निधेः' (सुद० ३/१०)
(जयो० वृ० १८/९३) अलुत्रहारः (पुं०) नारी का हार।
कलश (अक०) सुशोभित होना,शृङ्गे तु सोमः कलशायतेऽलम्। कलता (स्त्री०) मनोहरता, रमणीयता, मधुर (जयो० २०/७४) (जयो० १५/४७) 'कलश इवाचरतीति' (जयो० वृ० (जयो० १३/६०)
१५/४७) कलताभृत (वि०) वाचाल नारी, अधिक बोलने वाली स्त्री, कलश: (पुं०) [कलं च तत् शं सुखं धर्मो वा] ०कुम्भ, निन्दकनारी।
घट, घड़ा, जलपात्र, करवा, तस्तरी, मांगलिक कल-दोषः (पुं०) शब्द दोष, स्थान दोष।
कलश। 'कलशोत्पत्तितादाम्य' (जयो० १/१०३) कलधौतं (नपुं०) रजत, चांदी।
कलशद्विक् (वि०) युगल कलश, दो जलकुम्भ कलशद्विक कलध्वनि (स्त्री०) ०मधुर स्वर, मृदु-वाणी, मीठीध्वनि, इव विमलो मङ्गलकारीह भव्यजीवानाम्। (वीरो० ४/४८)
०कोयल, मयूर, हंस ध्वनि 'कलध्वनीना भृशमध्वनीनान्'। | कलशर्मवाङ् (स्त्री०) मङ्गलोपपद् 'सकलं मनोहरं शं शर्म कलनं (नपुं०) दूषण, दोष। (सुद० १/१७)
यस्मादिति (जयो० वृ० १२/५) कलना (स्त्री०) १. प्ररूपणा, निरूपणा, शब्द सम्भावना। कलशं (नपुं०) जलघट।
(जयो० १/३९) त्रिवर्गसम्पत्तिमतोऽत्र मन्तुमदक्षराणां कलनाः कलशा (स्त्री०) कलशी, घड़ा, करवा। (जयो० १२/११९) क्व सन्तु' (जयो० १/३९) २. खोटों भावों का 'कलशी समु पहिरत्तु' । कारण-अक्षाधीनधिया कुकर्म-कलना मा कुर्वतो मूढ! ते कलशाली (स्त्री०) कलशावली। (वीरो० ७/३१) (मुनि० १९)
कलशी (स्त्री०) घड़ा, करवा। कलनादः (पुं०) स्पष्ट स्वर, मधुर स्वर।
कलशी-कलशी-कलाम्भस् (नपुं०) शीतोष्ण कलश-जल, कलन्दिका (स्त्री०) [कल+दा+क+कन्+टाप्] प्रज्ञा, बुद्धि। शीतोष्ण जल वाले कलश। (जयो० १०/२५) कलप्रवालः (पुं०) कर पल्लव। (जयो० १७/५०)
कलसन्निधि (स्त्री०) जल समूह से सुशोभित। 'केन जलेन कलभः (पुं०) [कल+अभच्] हस्तिशावक, हाथी का बच्चा। कस्य वा लसन शोभनोनिधि' (जयो० ७० २२/६८) मन्दगामिनि! तवालसां गति,
कलहः (पुं०) [कलं कामं हन्ति] 'परसन्ताप-जननं कलह' शिक्षतेऽथ कलभोऽसकावितः।
(आव० १२/२८५) झगड़ा, लड़ाई, धोखा, निन्दा, कलभावः (पु.) मधुरभाव। (सुद० (जयो० २१/४) कलहकर (वि०) वाचनिक लड़ाई। (वीरो० २२/२०) कल-भाषणं (नपुं०) अस्पष्ट कथन, तुतलाना।
कलहकारिता (वि.) बुराई, मारपीट, हिंसा।
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