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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कर्ममङ्गलं विद्या-वणिक् - शिल्पानामत्रैव दर्शनाच्च कर्मभूमिव्यपदेशः । ' (त० वा० ३/३७) कर्ममङ्गलं ( नपुं०) विशुद्ध रूप कारण मांगलिक कारण, दर्शनविशुद्धि आदि कारण । कर्ममलीयसत्व (वि०) कर्म से मलिन ( भक्ति ०५ ) कर्ममासः (पुं०) तीस दिन-रात का महिना । कर्ममीमांसा (स्त्री०) कर्म विवेचन का सूत्र । कर्ममुक्त (वि०) कर्म रहित । ( भक्ति० ९) कर्ममूल (नपुं०) कर्म का आधार । कर्मयुग (पुं०) कर्मभूमि का युग । कर्मयोगः (पुं०) आत्मपरिष्पन्दन का योग, सक्रिय चेष्टा, उद्यम, प्रयत्नशीलता 'कर्मणोकृतो योगः कर्मयोगः (स० स०२ / २५) 'योगः आत्मप्रदेशपरिष्पन्दः' (त० वा० २/२५) 'कर्म' कार्मणं शरीरं, कर्मैव योगः कर्मयोगः । (त० श्लो०२ / २५) 'सुखं च दुःखं जगती जन्तोः स्वकर्मयोगाद् दुरितार्थमन्तो' (सुद० १११ ) कर्मरङ्गतरु: (पुं०) १. कर्म रंग वृक्ष, २. कर्मरङ्गतरौ भव्यः इति वि० ३. भव्यतरु। (दयो० वृ०२१ / २८) कर्मराशि (स्त्री०) कर्मसमूह। (भक्ति०३३) कर्मवर्गणा ( स्त्री०) कर्मबन्ध की भेदरूप वर्गणा। कर्मरूप आकर (सम्य० ३४ ) अट्ठकम्मक्खंधवियप्पा' (धव० १४ / ५२) कर्मविपाकः (पुं०) कर्म परिपाक, कर्मोदय। 'व्योम्नो यथा कर्मविपाकजातः'। कर्मशत्रु ( पुं०) कर्मारि। (जयो० १) ( भक्ति०२७) कर्मशाला ( स्त्री०) कारखाना । कर्मशील (वि०) कर्मवीर, शूरवीर, उद्यमी, परिश्रमी, क्रियाशील । कर्मशूर (वि०) परिश्रमी, उद्यमी । कर्मसंग (वि०) कर्म की संगति, आसक्ति की ओर प्रवृत्ति । कर्मसचिवः (पुं०) सचिव, मन्त्री, कार्मिक | कर्मसाक्षिन् (वि०) प्रत्यक्षदर्शी, साक्षात् देखने वाला, गवाही देने वाला। कर्मसिद्ध: (पुं०) कर्मकुशल | कर्मस्थानं (नपुं०) कर्मक्षेत्र, कार्यालय । कर्मस्थितिः (स्त्री०) कर्मों की स्थिति, एक कर्म स्थिति । कर्महानि (स्त्री०) कर्मों का उपशम। कर्महीन (वि०) कर्मक्षीण, कर्मरहित। कर्माचरणं (नपुं) लौकिक सुखप्राप्ति का आचरण । (जयो० वृ० २/४) कर्माधारः (पुं०) कर्म का आश्रय । २६४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्षः कर्माधिकारः (पुं०) कृतकर्मों का अधिकार । कर्मानुदयः (पुं०) कर्म का उदय । (समु० ८/१७) कर्मानुग् (वि०) कर्मानुगामी। (जयो० ७/४) कर्मानुगत्व (वि०) कर्म के अनुसार गमन करने वाला। (सुद० १२१) For Private and Personal Use Only कर्मानुगामी (वि०) कर्म के अनुसार विचरण करने वाला । कर्मानुरूप (वि०) कार्य के अनुरूप, कार्यानुसार । कर्मानुसार: ) कार्य के अनुसार। ( वीरो० १४ / ३० ) कर्मान्तः (पुं०) १. कर्म / कार्य की समाप्ति। २. काष्ठागार, धान्यागार, व्यवसाय | कर्मान्तक (वि०) कार्य को समाप्त करने वाला। कर्मान्तर (वि०) १. कर्म के अनुसार विचरण करने वाला । २. प्रायश्चित्त, विरोध, ३. कार्य में भिन्नता । कर्मान्तिक (वि०) अन्तिम कर्म वाला | कर्मान्तिकः (पुं०) भृत्य, सेवक। कर्मात्यन् (वि०) सक्रिय, क्रियाशील । कर्माय: (पुं०) सावद्यकर्म युक्त आर्य । कर्मों से आजीविका करने वाला। कर्मासक्तिः (स्त्री०) कर्मों/विषयों/ इन्द्रियों में तल्लीनता । कर्मिष्ठ (वि०) परिश्रमी, उद्यमी । कर्मेन्द्रियः (पुं०) वचनादिक्रिया रूप कारण । कर्मेन्द्रियाणि वागादीनि वचनादि क्रियानिमित्तानि ( ता०वा०२/१९) कर्मेन्धनं (नपुं०) कर्म रूप ईंधन, अष्टकर्म के कारण रूप लकड़ियां । 'स्वकीय-कर्मेन्धन-भस्मवस्तु' (सुद० २/४०) कर्मोदयः (पुं०) कर्म का उदय । अप्रशस्तोदय, प्रशस्तोदकर्म (सम्य० ३७) कर्म विपाक का उदय। (भक्ति०२७) कर्मोदारं (नपुं०) साहसिक कर्म, उदारभाव युक्त कार्य । कर्मोद्यम: (पुं०) क्रियाशील, उद्यमशील। कर्मोद्युक्त (वि०) सक्रिय, संलग्न, तत्पर । कर्वट : (पुं० ) [ कव् + अटन्] १. मंडी, बाजार, विपणयक्रेद्र, विक्रय केन्द्र । २. सभी ओर घिरा नगर, कुत्सित नगर । 'पर्वतावरुद्धं कव्वडंणाम' (धव० १२ / ३३५) कर्वटकः (पुं०) देखो ऊपर। कर्वटकथा ( स्त्री०) कुत्सित नगर सम्बन्धी कथा । कर्ष् (अक० ) सींचना, जोतना, रेखा बनाना। कर्ष: (पुं०) सोने के तोलने का १६ मासा वजन । अड्ढाइज्जा धारणा य सुवण्णो । कर्षक (वि०) [कृष्+ण्वुल् ] खींचने वाला, जोतने वाला ।
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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