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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मक्रीडकः २६३ कर्मभूमिः कर्मक्रीडकः (पुं०) कामी पुरुष। कर्मकृत् (वि०) आजीविका करने वाला। कर्मकृतिः (स्त्री०) पाप कर्मों की त्वचा। 'कर्माणां दुरितानां कृत्तिस्त्वचा'। कर्मक्षपका (वि०) कर्मक्षपक। (जयो० वृ० २७/५) कर्मक्षम (वि०) कार्य में योग्य, कर्तव्यनिष्ठ। कर्मक्षयः (पुं०) कर्म/अष्ठकर्म नाशक सिद्ध। (सुद० ९६) कर्मक्षयकारणं (नपुं०) कर्म नाश का कारण। (सुद० ९५) | कर्मक्षयसिद्धः (पुं०) कर्म का क्षय करके सिद्ध होने वाला, कर्मविमुक्त सिद्धात्मा। कर्मक्षेत्रं (नपुं०) कर्मप्रधान स्थान, कर्मभूमि कर्मगहीत (वि०) कार्य को ग्रहण करने वाला। कर्मघातः (पुं० ) १. कर्म को छोड़ना, कार्य से विमुख, २.. अप्ठकर्म का नाश। कर्मचारिणी (स्त्री०) सेविका। (जयो० वृ० ११/९९) कर्मचेतना (स्त्री०) अन्य का अनुभव करना। 'तत्र ज्ञानादन्यत्रेदमहं करोमीति चेतनं कर्मचेतना' (समयसार अमृत टी० ४/८) कर्मचेष्टा (स्त्री०) कार्य की गति, कर्त्तव्यभाव। कर्मज्ञ (वि०) कर्म कर्ता, धार्मिक अनुष्ठान कर्ता। कर्मजा (स्त्री०) कर्म से उत्पन्न, गुरु बिना उत्पन्न बुद्धि। ___'उवदेसेण विणा तवविसेसलाहेण कम्मजा तुरिमा। (ति०प०४/१०२१) कर्मजाबुद्धिः (स्त्री०) कर्मज बुद्धि। औषधि सेवन के बल से जो प्रज्ञा उत्पन्न होती है। 'ओसह-सेवा बलेझाप्पण्ण-पण्णा वा' (धव० ९/८२) कर्मजाप्रज्ञा (स्त्री०) कार्मज बुद्धि। कर्म-जातिः (स्त्री०) कार्य का उत्पत्ति। कर्मज्योतिः (स्त्री०) कार्य का प्रकाश। कर्मठः (पुं०) शूरवीर, शक्ति सम्पन्न, बलिष्ठ। 'कर्मठ कर्मशूरः कर्माणि घटते' (जैन०ल०३२०) कर्मत्यागः (पुं०) कर्तव्य त्याग, कर्म छोड़ना। कर्मत्यागिन् (पुं०) कर्म/अशुभ कर्म का त्याग करने वाला। कर्मत्व (वि०) कर्म में रहने वाला धर्म। कर्मदलिक (वि.) कर्म का विघातक, कर्म विदीर्णक। कर्मद्रव्यं (नपुं०) कर्म रूपता युक्त द्रव्य, पुद्गलद्रव्य को प्राप्त कर्म। कर्मद्रव्य पुद्गलपरावर्तनं (नपुं०) कर्म रूप, पुद्गल द्रव्यों का परावर्तन। कर्मद्रव्यभावः (पु०) अज्ञानादि भाव, ज्ञानावरणादि द्रव्य कर्म में अज्ञानादि उत्पन्न करने की शक्ति। कर्मद्रव्यसंसार: (पुं०) अष्ठकर्म रूप पुद्गलों का संसरण। कर्मदुष्ट (वि०) दुराचारी, पापी, अधम। कर्मदोषः (पुं०) दुर्व्यसन, पाप, अशुभ परिणाम। कर्मधर (वि०) कर्म का धारक, कार्य करने वाला। कर्मधारयः (पुं०) १. समास, विशेष। 'परस्पर विशेष-विशेष्यतया कर्मधारय-समासः' (जयो० वृ० ५/४७) कर्मध्यानं (नपुं०) १. कार्य के प्रति दृष्टि। २. अशुभ प्रवृत्ति का ध्यान, आर्तरौद्र प्रवृत्ति की ओर दृष्टि। कर्मध्वंसः (पुं०) १. आठ कर्मों का नाश। २. कार्य में बाधा, निराश, नाश। कर्मनामन् (नपुं०) कृदन्त संज्ञा। कर्मनारकः (पुं०) नरक गति के कर्म का आना। कम्मणेरइओ णाम णिरय-गदि-सहगद-कम्म-दव्व-समूहो' (धव० ७/३०) कर्मनिष्ठ (वि०) कर्त्तव्यनिष्ट। कर्मनिर्हरणं (नपुं०) कर्माभाव। कर्माणां निर्हरणं (जयो० वृ० २/२२) कर्मनिषेकः (पुं०) आबाधा काल से रहित कर्मों की स्थिति। 'आबाहूणिया कम्मट्ठिती कम्मणिसेगो' (षटखंडागम) कर्मपथः (पुं०) कार्य दिशा। कर्मपाकः (पुं०) कर्म की परिपक्वता। कर्मपुरुषः (पुं०) कर्मयोगी, क्रियाशील व्यक्ति। 'कर्म अनुष्ठानं, तत्प्रधान पुरुषः कर्मपुरुषः कर्मकरादिक' (जैन ल०३२१) कर्मप्रकृतिः (स्त्री०) कर्म की प्रकृति। अभयनंदी की रचना। कर्मप्रवादः (पुं०) एक पूर्वश्रुत, जिसमें श्रुतज्ञान सातवा पर्व। बन्ध, उदय, उपशम एवं निर्जरा रूप अवस्थाओं का निर्देश किया जाता है, जिसमें अनुभव एवं प्रदेशों के आधारों तथा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति का निर्देश हो। कर्मफलं (नपुं०) कृतकर्मों का परिणाम। (सम्य० ४१) कर्मफलचेतना (स्त्री०) कर्म फल का अनुभव। 'वेदंतो कम्मफलं सुहिदो दुहिदो हवदि जो चेदा' (समयसार ४/९) 'उदयागतं कर्मफलं वेदयन्' (सम०४१९) कर्मबन्धः (पुं०) शुभाशुभ कर्मों का बन्ध। कर्मबन्धनं (नपुं०) जन्म-मरण रूप बन्धन, अशुभ-भावों को तल्लीनता। कर्मभावः (पुं०) अशुभ कर्म का अनुभवन। कर्मभूमिः (स्त्री०) शुभ-कर्म रूप उपार्जन युक्त भूमि। (जयो० २/७९) 'षट्कर्मदर्शनाच्च' षण्णां कर्मणां असि-मसि-कृषि For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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