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कर्दम- बाहुल्य
कर्दम- बाहुल्य (वि०) कीचड़ की बहुलता, पङ्किलत्व, फिसलन की बहुलता | (जयो० ११ / ४ )
कर्दमयुक्त भूमिः (स्त्री०) कर्दमित धरा, पंक से युक्त धरा । (जयो० वृ० २३/६३)
कर्दमिधरा ( स्त्री० ) कर्दम सहित भू-भाग, पंक बहुल भू । (जयो० २३/६७)
कर्पट: (पुं०) १. जीर्ण, पुराना वस्त्र । २. कपड़े का टुकड़ा, धजी, धज्जी, चिंदी |
कर्पटिक (वि०) [कर्पट+ठन् ] पुराने कपड़ों से आच्छादित । कर्पण (नपुं०) [कृप् + ल्युट् ] आयुध विशेष, अस्त्र विशेष । कर्परः (पुं०) [कृप् + अरन्] कड़ाही, पात्र, ठप्पर, ठीकरा । कर्पास: (पुं०) कपास वृक्ष कर्पासत्वच: (पुं०) तूल, रुई। (जयो० वृ० ३/३) कर्पूर: (पुं०) [कृप्+ऊर्] कपूर, हिमसार, घनसार। (जयो० वृ० ११ / २१) 'कृष्णागुरुचन्दन- कर्पूरादिकमय' (सुद० ७२) कर्पूर - गंध: (पुं०) घनसार सुरभि । कर्पूरतैलं (नपुं०) कपूर तैल।
कर्पूरवास: (पुं०) कपूर गन्ध । कर्पूर-सुरभिः (स्त्री०) कपूर गन्ध।
कर्परः (पुं०) [कृ+ विच्- कर्= फल +अच्] दर्पण, शीशाकीर्यमाण: फल : प्रतिबिम्बो यत्र ।
कर्बुर (वि०) चितकबरा, रंग-बिरंगा ।
कर्बुर: (वि०) चितकबरा, रंग-बिरंगा ।
कर्बुरं (नपुं०) कृष्णवृन्तवृक्ष, औषधिलता । कर्बुरा कृष्णवृन्ताणां जले हेम्नि च कर्बुरम्' इति वि (जयो० २१/३३) कर्बुरासा : (पुं०) १. सुवर्ण, २. जल समूह। (जयो० ३ / ७६ ) कर्बुर : (पुं०) १. धतुरा, २. अशुभपरिणति, ३. पिशाच, ४. स्वर्ण, ५. जल।
कर्वुरित (वि० ) [ कर्बुर + इतच् ] रंग-बिरंगा |
कर्मठ (वि० ) [ कर्मन् + अठच्] प्रवीण, चतुर, निपुण, परिश्रमी । संलग्नशील।
कर्मठ: (पुं०) धार्मिक विधि विशेषज्ञ, निदेशक। कर्मन् (नपुं० ) [ कृ+मनिन] कर्तुरीरिसततमे वर्तते, ०कर्म, ० कार्य, ० व्यवसाय, ०पद, ०कर्त्तव्य ० धार्मिक कृत्य । क्वचित् पुण्यापुण्यवचनः कुशलाकुशलं कर्म (आप्त मीमांसा ८) नृराडास्तां विलम्बेन भुवि लम्बेन कर्मणा। (सुद० ७८) उक्त पंक्ति में 'कर्म' का अर्थ कार्य, काम है। धार्मिक कृत्य - सम्पठन्ति मृगचर्म शर्मणे चौर्णवस्त्रमथवा सुकर्मणे । (जयो० २ / ८९)
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कर्म - कीलकः
कर्मफल- ' को दोषस्तव कर्मणो मम स वै सर्वे जना यदवशे' (सुद० ११०) फलं सम्पद्यते जन्तोर्निजो- पार्जित - कर्मण: (सुद० १२५ ) 'कर्माख्ययापुद्गलमङ्गिनात्तमङ्गी तिजीवंतदिराभ्युपात्तम्' (समु० ८/७) कर्मों से युक्त जीव का नाम अङ्गी और उस अङ्गी के द्वारा प्राप्त किए हुए पुद्गल का नाम कर्म है। वे घाति और अधाति हैं। भाग्य, गति, सक्रियता, अनुष्ठान आदि कर्म के नाम हैं। आत्म परिणाम, योग लक्षण भी कर्म है-'आत्म-परिणामेन योग भावलक्षणेन क्रियते इति कर्म:' (त० वा० ५ / २४) कर्म क्रिया का भी नाम है, 'देशात् देशान्तर प्राप्तिहेतुः परिस्पन्दात्मकः परिणामोऽर्थस्य कर्म' (न्याय०वृ०७/२८१) कर्म-आजीविका के रूप में भी प्रचलित है। क्षत्रियाणां प्रवर्त्यमेतद्वितयर्माङ्कितम् । कृषिकर्म च वाणिज्यं, वैश्यानां भूतवृत्तये ॥ ( हित०सं०वृ०९) प्रत्येक वर्ग के अलग-अलग कर्म हैं
१. क्षत्रिय कर्म-रक्षा भाव।
२. वैश्यकर्म - वाणिज्य ।
३. शूद्रकर्म - हस्त शिल्प कौशल ।
४. ब्राह्मण-कर्म-ज्ञानदान।
कर्मकः (पुं०) सेवक, भृत्य, कार्मिक। (जयो० २१२५९ ) 'कामस्यादेश कारकेण' (जयो० ११/१२) कर्मकरभाव: (पुं०) कर्तव्य परायण । (जयो० २०/७४) कर्मकर्तु (पुं०) १. कर्म कर्ता, २. कर्ता कर्म से युक्त पद । कर्म-करी (स्त्री०) भृत्या, सेविका किंकरणी, कर्मकारिणी,
कर्मचारिणी, नौकरानी । (जयो० ११ / ३९)
कर्म-कलङ्कः (पुं०) कार्य दोष, भाग की प्रतिकूलता'प्रधृतकर्मकलङ्कहराध्वने' (समु० ७/१७) 'वागुत्तमा कर्मकलङ्कजेतु:' (सुद० १/२)
कर्मकाण्ड : (पुं०) श्रोत्रिय, वैदिकब्राह्मण, वैदिक क्रिया करने वाले। (जयो० ३/१६) कर्मकाण्डप्रतिपादकशास्त्रं (नपुं०) वैदिकशास्त्र, अनुष्ठानविधि शास्त्र (जयो० वृ० ३ / १६)
कर्मकार : ( पुं०) शिल्पकार, कारीगर, वास्तुविद । कर्मकारिन् (वि०) काम को करने वाला। कर्मकारिणी (स्त्री०) सेविका, भृत्या (जयो० ११/९९) कर्मकार्मुकः (पुं०) धनुष विशेष । कर्मक्रिया (स्त्री०) निम्नकार्यकारक । कर्म- कीलकः (पुं०) रजक, धोबी ।
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