________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कन्यादूषणं
२५२
कपिकच्छु:
कन्यादूषणं (नपुं०) कौमार्य भंग। कन्यादोष: (पुं०) कन्या की बदनामी। कन्याधनं (नपुं०) दहेज, कन्या के लिए सम्पत्ति। कन्यानृतः (पुं०) कन्या विषयक असत्य। कन्यानुरक्त (वि०) कन्या में अनुरक्त। (समु० २/२८) ।
अविवाहित पुत्री में आसक्ति। मानेतुं प्रचकार तत्र पथि,
तत्कन्यानुरक्तोक्तियम्' (समु० २/२८) कन्यापक्षिकलोकः (पुं०) माडपिक जन। (जयो० १२२१३३) कन्यापतिः (पुं०) दामाद, जामाता, पति। कन्यापुत्रः (पुं०) कन्या/लड़की का पुत्र, आत्मजा का बेटा। कन्यापुरं (नपुं०) अन्तःपुर, रनवास, कन्याओं का आवास
स्थान। कन्याप्रदानार्थ (वि०) कन्यादान हेतु। (जयो० १२/५६) कन्याप्रसूतः (पुं०) कन्या उत्पत्ति। (वीरो० ९/१९) कन्यारत्नं (नपुं०) श्रेष्ठ कन्या, रूपवती बाला, अत्यन्त मनोरम
पुत्री। यस्मै दत्त्वा यमाशंसी कन्यारत्नमकम्पन:। (जयो०
७/१२) कन्यालीकः (पुं०) कन्या विषयक झूठ। कन्याराशि: (स्त्री०) कन्याराशि, छठी राशि। (वीरो० २१/१३) कन्यावेदिन् (पु०) दामाद, जमाता। कन्यासः (पुं०) जल सिंचन। (वीरा० ८/२२) कन्यास्वयम्बरः (पुं०) पति चयन की पद्धति, विविध कुमारों
में से पति चयन की पद्धति। कन्यासमितिः (स्त्री०) कन्या समूह। (वीरो० ८/२२) कन्याहरणं (नपुं०) कन्या का अपहरण। कपट: (पुं०) प्रवंचना, छल, धोका, चालाकी, बनावटी,
कृत्रिम। 'गजस्येव कपटाभ्रमुकायाम्' (जयो० २३/६६) कपट-कृत (वि०) छलिया, प्रवंचका, कपट करने वाला। कपटगत (वि०) कपट को प्राप्त, छल युक्त। कपटतावसः (पुं०) पाखंडी तपस्वी, बनावटी साधु। कपटदेहं (नपुं०) कृत्रिम देह, तदाकार शरीर। कपटपट (वि०) छल में निपुण। कपट-प्रबन्धः (पुं०) छलपूर्ण व्यवहार। कपटप्रेमः (पुं०) बनावटी प्रेम, कृत्रिम स्नेह। (दयो० ९६) कपटभावः (पुं०) छलभाव। कपटलेख्यं (नपुं०) असत्य अभिलेख, कुत्सित लेख। कपट वचनं (नपुं०) छल युक्त वाणी, छलपूर्ण वार्ता। कपट-वेशः (वि०) कृत्रिम आकार, बनावटी वेश।
कपटशील (वि०) छल युक्त। कपटाभ्रमुका (स्त्री०) कृत्रिम हथिनी। 'कपटेन कृता
याऽऽभ्रमुका हस्तिनी' (जयो० वृ० २३/६६) गजस्येव
कपटाभ्रमुकायां मनसो बहुलापाया। (जयो० २८/६६) कपटिकः (पुं०) [कपट+कन्] कपटी, छली। कपर्दः (पुं०) [का पर्दै प्-क] १. कौंड़ी। २. जटा। कपर्दकः (पुं०) कौड़ी। [पई क्वि, बलोपः, पर कस्य
गंगाजलस्य परा पूरणेन दापयति शुध्यति-कपर्द- कन्] (सुद० २/४८) दृशोरमुष्या द्वितयेऽवतार, कपर्दकोदारगुणो
बभार। (सुद० २४४८) कपर्दिका (स्त्री०) [कपर्दक+टाप्] कौड़ी, काणिणि। (जयो०
२३/५९) मधुरसा करटस्य हि निम्बिका थनमहो दुरितस्य
कपर्दिका। (जयो० २५/२१) कपर्दिन् (पुं०) [कपर्द इनि] शिव का पर्यायवाची शंकर। कपाटः (पुं०) किबाड़, अरर। (जयो० २५/२८) १. मुख,
द्वार। 'तावद्विचार-चतुरापि सुवाक् कपाटं' (जया० १०/९४) कस्यात्मनो वाट कवाट मुखमुद्धाटयति स्म। (जयो० वृ०
१०/९४) कपाट-मुद्रा (स्त्री०) अभयमुद्रा। कपाट-सन्धिः (स्त्री०) कपाट के दोनों पलड़े। द्वार के दोनों
भाग। कपाट-समु घातः (पुं०) आत्म प्रदेश का विस्तार। कपाटोद्घाटनं (नपुं०) दारोद्घाटन. द्वार खोजना, कपाट
खोलना। कपालः (पुं०) [क पाल-अण] [कं शिरो जलं वा पालयति]
१. खप्पर, ठीकरे, (दयो०४२) २. खोपड़ी १. कपाल, चूडापीड। २. संचय, समूह। ३. प्याला, सकारा, कटोरा,
पात्र। कपालक्रिया (स्त्री०) शिरच्छेदन। कपालपाणि (पुं०) महादेव का नाम। कपालमालिनी (स्त्री०) दुर्गादेवी। कपालिका (स्त्री०) [कपाल कन्। टाप्] ठीकरा, खप्पर,
मिट्टी के घड़े के टूटे टुकड़े। कपालिन् (वि०) [कपाल इनि] खप्पर हर्ता, खोपड़ी धारक। कपिः (पुं०) [कम्प+इ] बन्दर, लंगूर, वानर। (सुद० ३/३९)
(समु० ४/३७) कपिञ्जलः (पुं०) [क+पिज्+कलच्] पपीहा, टिटिहिरी। कपिकच्छु: (स्त्री०) एक लता विशेष।
For Private and Personal Use Only