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कण्ठः
कण्ठः (पुं०) गला, गर्दन। (सुद० १ / ३४) कण्ठकंदल (पुं०) सद् गलनाल (जयो० ५/५२) कण्ठ-कम्बु (वि०) कण्ठ सुशोभित हुआ। (जयो० १२ / १४) कण्ठ-कूणिका (स्त्री०) बीणा ।
कण्ठगत (वि०) गले में स्थित, गले में आने वाला।
कण्ठतः (अव्य०) [कण्ठ+तसिल्] गले से, कण्ठ से, स्पष्टता । कण्ठतट (पुं०) गले का भाग।
कण्ठतटं (नपुं०) गले तक, गले का पार्श्व कण्ठतटी (स्त्री०) गर्दन तक की।
कण्ठदध्न (स्त्री०) गले तक पहुंचने वाला
कण्ठनाल (पुं०) गलकन्दन, हार (जयो० ११ / ४७ ) कण्ठनीडक: (पुं०) गृद्ध, चील पक्षी ।
कण्ठनीलकः (पुं०) मशाल, बड़ा दीपक ।
कण्ठपथं (नपुं०) कण्ठमार्ग ।
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रज्जू
कण्ठपाशकः (पुं०) हस्ति पाश, हस्ति के कण्ठ की कण्ठपार्श्वः (पुं०) गले का भाग कण्ठभाग । कण्ठभूषा (स्त्री०) कंठी, गले का छोटा हार कण्ठमणि: (स्त्री०) गल कंठी, मलि युक्त कंठी। कण्ठलता ( स्त्री०) १. पट्टा, गले का पट्टा । २. लगाम,
अश्वारोधक पट्ट्य ।
कण्ठवर्तिन् (वि०) कण्ठगत, गले से सम्बन्धित । कण्ठशोष: (पुं०) गले का सूखना ।
कण्ठसूत्रं (नपुं०) १. गले का धारा । २. आलिंगन । कण्ठस्थ (वि०) १. याद होना, रट जाना। २. कण्ठ में होने वाला। कण्ठाभरणं (नपुं०) गले का आभूषण, कण्ठाभूषण, हार। (जयो० पृ० ३ / ९०४ )
कण्ठालः (पुं० ) [ कण्ठ् + आलच्] १. फावड़ा, कुदाली । २. ऊँट, ३. युद्ध।
कण्ठाला (स्त्री०) दही बिलोने का पात्र ।
कण्ठिका (स्त्री० [कण्ठ्ठन्+टाप्] कंठी माला, एक लड़ी
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का हार।
कण्ठी (स्त्री० ) [ कण्ठ + डीष्] १. माला, एक लड़ी का हार । २. गलापट्ट ।
कण्ठीकृत (वि०) कण्ठस्थान में धारण की जाने वाली (वीरो० १/२४)
कण्ठीरवः (पुं०) १. उन्मत्त हस्ति। २. कबूतर
कण्ठीलः (पुं०) ऊँट |
कण्ठेकालः (पुं०) शिव, महादेव, शंकर।
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कण्ड्य (वि०) (कण्ठ+यत्] गले के लिए उचित, गले से सम्बन्धित
कतमाल:
कण्ठ्य-वर्णः (पुं०) कण्ठ स्थान वाले अक्षर-अ, आ, क, ख, ग, घ, इ और ह ङ्
कण्ड्यस्वरः (पुं०) गले से सम्बन्धित स्वर ।
कण्ड् (अक० ) १. प्रसन्न होना, हर्षित होना, संतुष्ट होना, अहंकारी होना ।
कण्ड (सक० ) निकालना, बाहर करना, साफ करना, रक्षा करना, बचाना।
कण्डकः (पुं०) समु दाय, उत्तरोत्तर अनन्त के भाग । कण्डनं (नपुं० ) [ कण्ड् + ल्युट् ] फटकना, साफ करना। 'तुषानां कण्डन' कण्डनं दूरीकरणं (जयो० वृ० २३/५४) कण्डनी (स्त्री० ) ओखली ।
कण्डरा ( स्त्री० ) [कण्ड + अरन्] नस। कण्डिका (स्त्री०) अनुच्छेद, छोटा गद्यांश।
कण्डू (पुं०) १. खाल, खुजली, खर्जन। (जयो० ६ / ६१ ) कण्डू (स्त्री०) खुजलाना ।
कण्डूति: (स्त्री० ) [ कण्डू+यक् + क्तिन्] खर्जन, खाज, खुजली । 'करतल- कण्डूति मुद्धरति' (जयो० ६ / ६१ ) कण्डूय ( सक०) खुजलाना, मसलना । कण्डूयन्ते (समु० १९ / २२) 'कण्डूयन्ते यतः स्मैते' शरीरं हिरणादयः (समु० ९/२२)
कण्डूयनं (नपुं०) खर्जन, खुजली, खाज, ददू। 'दद्रो खर्जन । कण्डयन" (जयो० वृ० २/४ ) कण्डूयनक (वि०) खर्जनोदपाक ।
कण्डूया (स्त्री० ) [ कण्डूयक्+अ+टाप्] ०खुजलाना, ०खर्जन
खाज ।
कण्डूल (वि०) द्दू वाला, खर्जनशील
कण्डोल : (पुं० ) [ कण्ड्+ओलच्] टोकरी, धान्यपात्र । कण्डोष: (पुं० ) [ कण्ड+ ओषन् ] वाद्य विशेष, झां झा । कण्वः (पं०) कण्वऋषि ।
कतः (पुं०) [कं जलं शुद्धं तनोति] निर्मली का पौधा, रीठा । कतकः (पुं०) निर्मली, रीठा।
कतम (सर्व) कौन कौन सा ।
'सुमुख कार्यचणः कतमो नरः' (जयो० १०/५९) कतर (सर्व०) कौन, दो में से कौन सा ।
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कतमाल: (पुं०) वह्नि, अग्नि, आग। 'कस्य जलस्य तमाय शोषणाय अलति पर्याप्नोति जल+अच् ।