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कति
कदन्नकः
कति (सर्व०) कितने। कतिकृत्वः (अव्य०) [कति+कृत्वसुच्] कितनी बार। कतिचिद् (अव्य०) कितने समय 'सुखेन कालं कतिचिद् ___व्यतीतवान्' (समु० ४/१७) कतिधा (अव्य०) [कति+धा] कई बार, कितने स्थानों पर,
कितने भागों में। कतिपय (वि०) किति+अयच्] कुछ, कई, कई एक, कुछ
दिन व्यतीत होने पर। (जयो० ५/२) कतिविध (वि.) कितने तरह का, कितने प्रकार का। कतिशः (अव्य०) [कति+शस्] एक बार में कितना। कत्थ् (अक०) निन्दा करना. दुर्वचन बोलना, उपेक्षित करना। कत्थनं (नपुं०) प्रशंसा करना, आत्मभाव व्यक्त करना, डींग
मारना। कत्सवरं (नपुं०) [कत्स+वृ+अप] कंघा। कथ् (सक०) १, ०कहना, बोलना। (अक०१२२) २. प्रतिपादन
करना, उल्लेख करना, ३. संकेत करना, ४. परस्पर वार्तालाप करना। 'कथय-प्रतिपादय' 'कथ्' इति भौवादिको धातुर्यस्य लुझ्यिन्ते। अचीकथत् इति रूपं जैनकाव्येषु प्रचलितम्' अचीकथच्च मन्त्रिभ्यो इति वादीभसिंहेन क्षत्रचूडामणौ प्रयुक्तम्। (जयो० २३/७१) 'कंथोच्यताम्कहिए कुशलक्षेमकथोच्चताम्' (दयो० १०७) कथ्यते--
(जयो० २/३३) कथक (वि०) [कथ्+ण्वुल] ०कथाकार, वार्ताकार, प्रवाचक।
कहानी कहने वाला। कथकः (पुं०) १. नायक, अभिनेता। २. कथा प्रस्तुतकर्ता। कथनं (नपुं०) [कथ्+ ल्युट] कहना, प्रतिपादन, प्ररूपण,
कथामुख। 'नयामि कथने प्रणवमुत च नः' (जयो०
२२/९१) कथने-कथामुखे (जयो० वृ० २२/९१) कथम् (अव्य०) कैसे, किस प्रकार, किस तरह, किस रीति
से, कहां से, कब। (दयो० ९०) 'मनोरमायां तु कथं
सरस्याम्' (सुद० ४/१५) कथमपि (अव्य०) किसी तरह से भी, किस विधि से भी, कभी
भी। (जयो०१/१७) 'कथमपि तथा सुयात्री' (सुद० वृ०
९७) कथञ्चित् (अव्य०) किसी प्रकार से, किसी तरह का। 'जिनधर्मो
हि कथञ्चिदिन्यतः' (सुद०३/१२) कथित (वि०) प्रतिपादित। (जयो० १/९) कथा (स्त्री०) {कथ। अङ । ताप्] १. वार्ता संलाप 'श्रीत्रिवर्ग ।
परिणायके तथा तिष्ठतीष्टकृदसावभूत्कथा। २. कथन पद्धति (जयो० १/६) (जयो० ३/२०) ३. प्रसंग, वर्णनगगनाञ्चानां कोटियेषा येषां पृथक्कथा मोटी (जयो०६/७) ४. हितकरचरित्र निरूपण पुरुषार्थोपयोगित्वात् त्रिवर्ग-कथनं कथा। (महा० पुं० १/११८) 'प्रभवति कथा परेण पथा
रे।' (सुद० ८८) कथाकर (वि०) कथा/कहानी कहने वाला। कथाकार (वि०) कहानीकार, वार्ताकार। कथाकुंज: (पुं०) कथा समूह। कथाचारः (पुं०) कथानुकरण। (जयो० १/६) कथाछल (नपुं०) कहाने का कारण, कथा के बहाने। कथाधारः (पुं०) प्रशंसाधार। 'कथायाः प्रशंसाया आधार : स्थान
मस्ति' (जयो० वृ० ६/२४) कथानकं (नपुं०) कथा सार, संक्षिप्त कथा। कथानायकः (पुं०) कहानी का प्रमुख पात्र। कथापुरुषः (पुं०) नायक, प्रमुख पात्र। कथापीठं (नपुं०) कथाकर रस्य भाग कथांश। कथा-प्रबंध (पुं०) कल्पित कथा। बृहतकथा। कथा-प्रवेशः (पुं०) कथा मुख, कथानक का प्रारम्भ। कथा प्रसङ्गः (पुं०) वार्तालाप, बातचीत से प्रसंग प्रस्तुतीकरण। कथाप्राणः (पुं०) कथा का मूल पात्र, नायक। कथामुखं (नपुं०) कथानक का परिचयात्मक अंश। कथायोगः (पुं०) कथासंयोग, कथा का माध्यम, कथाधार। कथाविपर्यासः (पुं०) कथा का बदलाव, कथा का परावर्तन। कथाशेषः (वि०) वृत्तान्त का अवशेष, वार्ता का अवशेष भाग। कथित (भू०क वृ०) कहा गया। (सुद० १/९५) कथोदयः ।) कथा का प्रारम्भ। कथोद्घात: (पुं०) कथा की पुनरावृत्ति। कथोपगामिन् (वि.) कथन को प्राप्त होने वाला। (जयो०
१/२९) कद् (अक०) घबराना, हत होना, खिन्न होना, शोक करना। कद् (अव्य०) [कद्+क्विप्] यह अव्यय ह्रास, अल्पता,
निरर्थकता, एवं दोषादि को व्यक्त करता है। कदक्षरं-बुरा
अक्षर, अपसूचक अक्षर। कदान्नं-दूषित अन्न। कदकं (नपुं०) [कद: मेघः इव कायति प्रकाशते-कद कै+क] ___ पंडाल, चंदोआ, शामियाना। कदनं (नपुं०) [कद्+ल्युट्] विनाश, हनन, प्रताड़न। कदन्नकः (पुं०) अभक्ष्य-भक्षण। (जयो० २७/३१)
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