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कठ्
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कण्ठ्
कठ् (अक०) कठिनता से रहना।
कणत्कृत (वि०) परिकूजन, कुहु कुहु शब्द, कण-कण शब्द कठः [कठ्+अच] कठमत।
करने वाला। 'मञ्जीर कोदार-कणत्कृत' (जयो० १६/४६) कठर (वि०) । कठ्। अच्] कठमत।
कण-भक्षकः (पुं०) एक पक्षी विशेष। कठर (वि०) | कठ्अरन्] कड़ा, सख्त।
कणपः (पुं०) अयस्क छड़, भाला। कठिका (स्त्री०) खड़िया, सफेद मिट्टी।
कणलाभः (पु०) जलावर्त, भंवर। कठिन (वि०) (कठ्। इनच] सुद ढ़, अनमनात्मक कठिन। कणश: (अव्य०) अल्प भाग में, लघु हिस्से में, दाने-दाने
कठिन, कठोर. दृढ़। (जयो० १७/४८) 'पद्मानि यस्मात्कठिना पर, छोटा-छोटा। समस्या' (वीरो० २/३१) 'कुण्ठात्मकोर: कठिनन' (जयो० कणि (स्त्री०) कणिका (जयो० २६/४८) १७/४८)
कणिकः (पुं०) [कण कन्] धान्य कण, धान्य का छोटा अंश। कठिन-कठोर (वि०) अतिशय कठोर, अधिक दृढ़, अत्यधिक कणिका (स्त्री०) लेशमात्र, किंचित् भी, छोटा सा, अल्प। सख्त। (जयो० ६/६१)
'कणिकाऽपि न शर्मणः' (जयो० २/१३३) 'कणिकाऽपि कठिनता (वि०) कठनाई युक्त, सुद ढ़ता युक्त। (सुद० १२१) लेशमात्रमपि न' (जयो० वृ० २/१३३) कठिना (वि०) १. कठोर, दृढ़। (सुद० २/४४) 'स्वभावतो य कणिशः (पुं०) धान्य बाल, धान्य के ऊपर अंश, दानों वाला कठिना सहेरं' (सुद० २/४४) २. मिष्ठान्न।
हिस्सा। कठिनी (स्त्री०) खटिका. खड़िया। 'क्षणोत्ति कठिनीञ्च कीर्तिमरे' कणीक (वि०) [कण+ईकन्] अल्प, लघु, छोटा। (जयो०६/१०५)
कणीचिः (स्त्रो०) पुष्पलता (जयो० ११/९०) कठोर (वि०) १. दृढ, ताकतवर, शक्तिशाली, २. क्रूर, निर्दय। कण (अव्य०) [कण+ए] भावनात्मक अव्यय. इच्छाशक्ति. (समु० १/२३) ३. तीक्ष्ण, शल्यमय।
प्रधान अव्यय। कड (वि०) [कड्+अच्] १. गूंगा, मूक। २. मूर्ख, अनभिज्ञ। कणोऽपि-कण-कण तक भी। (जयो० ५/४) २. शब्द विशष।
कणेरा (स्त्री०) १. हथिनी, २. वेश्या। कड-कडाशब्दं (नपुं०) सन्निनाद. कड-कड शब्द, मेघों की कणोपजल्प (वि०) कणों से व्याप्त। 'सत्पुष्पतल्पमपि वह्निकणोप गड-गडाहट। (जयो० वृ०८/१२)
जल्प' (सुद० ८६) कडङ्गरः (पुं०) तृण, तिनका।।
कण्टकः (पुं०) १. कांटा, शल्य, क्लेश, कष्ट, उत्पात। कडंगरीय (वि०) तृण उपयोग करने वाला।
(मुनि० ३) 'कण्टकेन न विद्धेयं जातिः' (सुद० १०४) कडधं (नपुं०) पात्र. भाजन, वर्तन विशेष। (गडयते सिच्यते २. रोमांच, हर्ष। (जयो० १०५५) जलादिकं अत्र-गड- अत्रन्-गकारस्य ककार)
कण्टक-वण्टकः (पुं०) काटे-बांटे-जयो० १३/११॥ कडन्दिका (स्त्रो०) शास्त्र, ग्रन्थ, पोथी।
कण्टकित (वि०) [कण्टक- इतप्] शङ्कायुक्त (जयो० १/८९) कडम्बः (पुल) डंठल।
रोमांचित (जयो० २२/५९) कांटेदार, शल्य युक्त, रोमांचित। कडार (वि०) अहंशील, अभिमानी. ०ढोठ, घमंडी।
(जयो० १४.११) वीरो० ४/६२) कडितुल: (पुं०) असि, खङ्ग, तलवार। [कट्यां तोलनं ग्रहणं | कण्टकिताड़क (वि०) रोमाञ्चित अंग वाला, रोमराजि से यस्य]
प्रफुल्लित। कण (अक०) शब्द करना, चीत्कार करना, कराहना। कण्टकिताङ्ग धारक (वि०) रोमाञ्च से परिपूर्ण शरीर वाले। कणः (पुं०) [कण+अच्] १. अंश, भाग हिस्सा। (जयो० ___ गुणकृष्ट इवाधिकारकः सुद श: कण्टकिताङ्गधारकः। (जयो०
१८/६२) हक्कोणकणर्भरन्यः कीटादीव सचेननं जिनगिरा १०/५६) रेणोः कणादीत्यतः। (मुनि० २२) २. दाना, अनाज का कण्टकिन् (वि०) [कण्टक इनि] कांटेदार, कंटीला। अंश, टुकड़ा।
कण्टकिलः (पुं०) [कण्टक+इलच्] कांटेदार बांस। कणक (वि०) धान्य कणार्थ। (जयो० १८/१५)
कण्ठ (अक०) विलाप करना, शोक करना, आतुर होना, कण-जीरकं (नपुं०) सफेद जीरा।
उत्कण्ठित होना।
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