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ऋतुदानं
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ऋषभावतार:
करने वाली ऋतु, 'नर्मश्री ऋतुकौतुकीव सकलो बन्धुः' ऋद्धिगौरवः (पुं०) ऋद्धि की सम्पन्नता, गुणता। ऋद्धि(वीरो० ६/३७)
प्राप्त्यागासहता ऋद्धिगौरवं परिवारे कृतादर:' (भ० आ० ऋतुदान (नपुं०) स्नेहदान, प्रिया के ऋतुकाल में स्नेहदान। टी० ६१३) ऋतुता (वि०) ऋतु युक्त, ऋतुकाल वाली।
ऋध (सक०) १. सम्पन्न होना, समृद्ध होना, सफल होना। ऋतुपर्यायः (पुं०) ऋतुओं का परावर्तन।
२. बढ़ना, वृद्धि होना। ३. संतुष्ट होना, तृप्त होना। ऋतुप्रदानं (नपुं०) ऋतुदान। (जयो० २/१२३)
ऋभुः (पुं०) देव, दिव्यता, देवता। ऋतुमासः (पुं०) तीस दिन रात का महिना. कर्ममास, सावनमास। ऋभुक्षः (पुं०) (ऋभवो देवा क्षिपन्ति वसन्ति अत्रेति
'ऋतुरेवार्थात् परिपूर्णत्रिंशदहो रात्रप्रमाणः, एष एव ऋतुमासः ऋभु+क्षि+उ) इन्द्रलोक। इन्द्र। कर्ममास इति वा सावनमास इति वा व्यवह्यिते' (जैन०ल० ऋभुदिन् (पुं०) इन्द्र, शक्र. पुरन्दर, देवाधिपति। पृ० २९१)
ऋल्लकः (पुं०) यन्त्र, वाद्य यन्त्र। ऋतुराड (पुं०) ऋतुराज, वसन्तु ऋतु। (जयो० वृ० १/७७) ऋश्यः (पुं०) [ऋष्+क्यप्] बारहसिंघ, हिरण। ऋतुसंवत्सरः (पुं०) तीन सौ साठ दिन, ऋतुवर्ष-'ऋतवो ऋष् (सक०) १. पहुंचना, जाना, प्राप्त होना। २. मारना, चोट
लोकप्रसिद्धाः वसन्तादयः तत्प्रधानः संवत्सर: ऋतुसंवत्सर:' पहुंचाना, प्रहार करना। (जैन०ल० पृ० २९)
ऋषदा (वि०) पाषाण, पत्थर। (सुद०४/३०) ऋतूत्तम (वि०) ऋतुओं में उत्तम। 'ऋतूत्तमेनेव धरातलेऽस्य' | ऋषभः (पुं०) [ऋष्+अभक्] १. प्रधान, प्रमुख, ०श्रेष्ठ, वसन्तनाम्ना सुमनोहरण' (समु० ६/३१)
उत्तम। जगति भास्कर एष नरर्षभो। (जयो० १/९६) ऋते (अव्य०) बिना, अतिरिक्त, सिवाय। 'न वस्तुसत्त्व तमृते नरर्षभो-नरोत्तमो-(जयो० वृ० १/९६) २. संगीत के सात
समस्तु' (सम्य० ७१) 'रुच्या न जातु तमृते सकला स्वरों में द्वितीय स्वर 'मिषान्विादर्षभमात्रगम्या' (जयो० समस्या' (सुद० ८६)
११/४७) 'षड्जर्षभ गान्धार-मध्यम-पञ्चमधैवतऋद्ध (भू० क० कृ०) [ऋथ+क्त] समृद्ध, वृद्धिगत, वर्धमान। निषादनामकेषु सप्तस्वरेषु' (जयो० वृ० ११/४७) ३. बैल, (जयो० १/१७)
०बलीवर्द-'तवर्षभस्य नरोत्तमस्य' (जयो० १९/१८) ४. ऋद्धः (पुं०) विष्णु।
ऋषभ, ऋषभदेव, आदिनाथ का नाम, अन्तिम कुलकर ऋद्धदेशः (पुं०) समृद्धदेश, 'ऋद्धो देशो यस्य तं' (जयो० वृ० नाभिराय के पुत्र का नाम। जो प्रथम तीर्थंकर के नाम से १/१७)
प्रसिद्ध हैं, जिनके ऋषभ-बैल चिह्न है। (दयो० ३१) ऋद्धिः (स्त्री०) [ऋध्। क्तिन्] १. वृद्धि, समृद्धि, वैभव ऋषभस्य- नाभेयस्य (जयो० वृ० २४/१२) नाभेरसा वृषभ
सम्पन्नता। २. विस्तार, विभूति। (जयो० वृ० ५/१४) आस सुदेवसुनू' (भागवत ३/२०) ऋद्धि वारजनीव गच्छति, वनी सैषान्वहं श्रीभुवम्' (वीरो० ऋषभनाथः (पुं०) प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, जिन्हें आदिनाथ, ६/३७) 'यदीयापदरीतिऋद्धिम्' (जयो० १/३१) ३. आदिब्रह्मा भी कहते हैं। युगादिभर्ता भी कहा गया। युगादिभर्तुः भोग-उपभोग के साधन, सम्पदाएं ४. शक्ति विशेष-अणिमा, श्री ऋषभनाथ-तीर्थंकरस्य। (जयो० १/४३) महिमा, प्राप्ति (मुनि० १५) प्राकम्य। ईसत्व, वशित्व, ऋषभनाराचं (नपुं०) कीलिका रहित संहनन, संहनन विशेष। काम और रूप। अणिमा महिमा लहिमा पत्ति-पागम्म ('यत्र तु कीलिका नास्ति तदृषभनाराचम्' (जै०ल०२९१) ईसित्तं वसित्तं काम रूवमिच्चेवमादियाओ अणेगविहाओ ऋषभदेवः (पुं०) आदिनाथ, आदिदेव। (दयो० ३०, ३१) इद्धीओ णाम' (धव० १४/३२५) ऋद्ध श्रीतपसश्च ऋषभदेववरः (पुं०) पुरुवर, आदिदेव, वृषभदेव, आदिब्रह्मा, सम्पदसकौ नामोपयोगाय वै भ्राता बाहुबलेर्वभूव भरतः महादेव, वृषभस्वामी, वृषभप्रभु, आदिप्रभु। (जयो० वृ० कीदङमहानुत्सवः स्वस्या एव समद्धितो न नरकं द्वीपायन: १२/१०९) किं गत स्तम्माद् वाञ्छसि चेद् हितं स्वविभवे साम्येन ऋषभप्रभुः (पुं०) ऋषभदेव, आदि तीर्थंकर आदि प्रभु। भूयारतः। (मुनि० १५)
(जयो० वृ० ७३३) ऋद्धिगारवः (पुं०) बड़प्पन प्रकट करना।
ऋषभावतारः (पुं०) ऋषभदेव का जन्म, प्रथम तीर्थंकर का
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