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ऋषभेश्वरः
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एकतः
जन्म। (दयो० ३१) 'अस्यर्षभावतारस्य प्रशंसा मार्कण्डेय- ए: (पुं०) [इ+विच्] विष्णु। पुराणकूर्मपुराणाग्पुिराण-वायु-शिवपुराणादिषु च वर्तते किल | ए (अव्य०) विस्मयादिबोधक अव्यय, जिससे निन्दा, घृणा, यस्यानुयायिन आर्हता भवन्ति। (दयो० पृ० ३१) सप्त- । ___ भर्त्सना, करुणा, आमन्त्रण, स्मरण आदि का बोध होता है। द्रयोदार-कुलङ्कराणामन्त्यस्य नाभेर्मरुदेवि आणात्। सीमन्तनी एक (सर्वनाम) १. अकेला, एकाकी, एकमात्र! (सम्य० ३१) तत्र हृदेकहारस्तत्कुक्षितोऽभूद्, ऋषभावतार:।। (वीरो० कौमारमेवे गृहितांच केऽपि। (जयो० १/१०) 'लोकाग्रगा११/५)
विश्व-विदेकभावानह' (सम्य० ५८) एकदेश (जयो० ऋषभेश्वरः (पुं०) ऋषभदेव, आदिनाथ. तीर्थकर वृषभदेव। १/८) २. अद्वितीय, अनुपम-'एकमभवत्तु शर्मणाम', अनन्य (हित० सं०८)
(वीरो०१/५) (जयो० ३/३) ३. कोई, एक दूसरा, अन्य, ऋषिः (पुं०) [ऋष+इन्] मुनि, योगी, तपस्वी, ध्यानी, विरक्त। अपर, प्रधानभूत (जयो० १२/११) 'एकोऽस्ति चारुस्तु
(मुनि० ३१) 'ऋषिभिः-कुन्दकुन्दादिभिः' (जयो० वृ० भवेदभिज्ञः' (सुद० पृ० १२१) 'पवित्रमेकं प्रतिभाति तत्र' २७/२०)
(सुद० १/१४) ऋषिपंचमी (स्त्री०) एक तिथि विशेष, भाद्रपदकृष्णा पंचमी एकक (वि०) अकेला, एकाकी, एकमात्र। 'संलिखत्यथ कुमार को होने वाला एक पर्व।
एककः' (जयो० २/१३) एकक:-केवलोलिखति (जयो० ऋषिपादः (पुं०) ऋषि चरण। 'उत्तमाङ्ग सुवंशस्य यदासीद् वृ० २/१३) 'एककं एकमेव पुरुषं' (जयो० वृ० २/१५३) ऋषिपादयोः' (सुद० ४/४)
एककन्धा (स्त्री०) एकमात्र गुदड़ी। (वीरो० वृ० २२/२) ऋषिराजन् (पुं०) ऋषिराज। (दयो० ११९)
एककर (वि०) एक ही कार्य करने वाला। ऋषिवरः (पुं०) तपस्विराज, संयतमुनि। 'भवानृषिवरः सुमनः एककान्ता (वि०) अद्वितीय सुन्दर। (वीरो० २१/१) समुदायवान्' (सुद० ४/१)
एककार्य (वि०) एक ही कार्य करने वाला। ऋषिस्तुतिः (स्त्री०) ऋषि गुणगान।
एकगिह (नपुं०) एक गृह, एक घर। ऋषिस्तोत्रं (नपुं०) मुनि स्तुति काव्य।
एकगुरु (वि०) एक गुरु वाला। ऋष्टिः (पुं०/स्त्री०) [ऋष्+क्तिन्] असि, खग, तलवार, एकगुरुक देखो ऊपर। अत्यंत तेजधार वाली तलवार।
एकाग्रता (वि०) तल्लीनता. विचार निमग्न। तस्मिन् संप्रवृत्तस्य ऋष्यः (पुं०) बारहसिंघा, सफेद बारहसिंघा।
मानसमगादकाग्रता चेत्तदा' (मुनि० २१) ऋष्यकः (पुं०) चित्तीदार हिरण, बारहसिंघा।
एकचक्र (वि०) एक पहिए वाला, सुदर्शन चक्र। एकं चक्रं
सुदर्शनाख्यं यस्य स एकचक्र:' (जयो० वृ० ८/५) 'एवैकं
चक्र रथाङ्गं यस्येति' (जयो० ११/२२) ऋ
एकचत्वारिंशत् (स्त्री०) इकतालीस। ऋ (अव्य०) विस्मयादिबोधक अव्यय, जिसमें निन्दा, घृणा, एकचर (वि०) एकाकी विचरण करने वाला। त्रास आदि का भाव रहता है।
एकचारिन् (वि०) अकेला विचरणशील। ऋः (पुं०) भैरव, एक राक्षस
एकचेतस् (वि०) एक मत, एक विचार धारा वाले। ऋ (सक०) जाना, पहुंचना, प्राप्त होना, हिलना।
एकजन्मन् (पुं०) नृप, नराधिप। एकजात (वि०) एक माता-पिता से उत्पन्न। , एकजाति: (स्त्री०) एक ही परिवार/कुल। (जयो० १९/४२) सहोदर।
एकजातीय (वि०) एक ही परिवार वाले। ए: (पुं०) संस्कृत वर्णमाला का ग्यारहवां अक्षर, इसका एकतः (अव्य०) [एक तसिल्] एक ओर से, एक एक
उच्चारण स्थान कंठ एवं तालु है। यह 'अ+इ=ए' के योग करके, एक पार्श्व। किमु वर्मविरोधिनो जना अधुना से बनता है।
चापसरेत चैकतः। (जयो० १३/१३१) अधुना चैकतोऽ-- ए (सक०) प्राप्त होना, जाना-ऐति-(सुद० ८५)
पसरेत-एकपार्वे स्थितो भवेत्।' (जयो० वृ० १३/१३)
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