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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊध्वायत २२७ ऋक्षचक्र ऊर्ध्वायत (वि०) ऊपर की ओर, उच्चैलम्बमान। दधतां सुसृणिं चिन्तन, मुक्ति देना। (जयो० वृ० १८/२) 'ऊहो त्वरावता शिर ऊर्ध्वायतदन्तमण्डलम्' (जयो० १३/३६) वितर्को येषु तस्य भाव:' (जयो० वृ० ६/४) ऊर्वी (वि०) ऊर्ध्वमुख, ऊँचे की ओर। 'अवगृहीतार्थस्यानधिगतविशेष उह्यते तळते अनया इति' ऊर्मि: (स्त्री०, पुं०) [ऋ+मि-अर्तेरूच्च] १. लहर, तरंग, (धव० १३/२४२) अवग्रह गृहीत पदार्थ का विशेष अंश भाग। (जयो० १०/८७) २. धारा, प्रवाह, गति, वेग। नहीं जाना गया, उस पर विचार करना। (जया० ४/१९)। ३. पंक्ति, रेखा राजि। ४. चिन्ता, कष्ट। 'विज्ञातमर्थमवलम्ब्यान्येषु व्याप्ता तथाविध-वितर्कणमूह:' ऊर्मिका (स्त्री०) लहर, तरंग, रेखा, पंक्ति। (नीतिवाक्यामृत ५/५०) ऊर्मिकाङ्कित (वि०) १. शाखा प्रशाखा युक्त। २. लहरों से ऊहक्रमः (पुं०) कल्पना परिपाटी (जयो० वृ० २८/४४) अंकित, रेखांकित। ऊर्मिकाङ्कित सन्तानां मत्तवारणराजिका।' ऊहनं (नपुं०) अनुमान बना। (जयो० १०/८७) ऊहसत्ता (स्त्री०) तर्क-वितर्कभाव। (वीरो० २/३९) ऊर्व (वि०) [ऊरु+अ] विस्तृत, बड़ा। ऊहपना (वि०) तर्क-वितर्कपना। (वीरो० २/३९) ऊर्वरा (स्त्री०) उपजाऊ भूमि, कृषि योग्य भाग। ऊहपात्री (वि०) तर्क-वितर्कभाव वाला। (वीरो० ३/१८) ऊलुपिन् (पुं०) सूंस, शिशुक। ऊहा (स्त्री०) तर्क-वितर्क, अनुमान, विचार, चिन्तन, ऊलूकः (पुं०) उल्लू। व्याप्तिज्ञान। 'उह्यते तय॑ते अनया इति ऊहा' (धव० ऊष् (अक०) रुग्ण होना, बीमार होना, अस्वस्थ्य होना। १३/२४४) ऊषः (पुं०) [ऊष+क] १. प्रभात, प्रातः, २. उपज विहीन ऊहापोहः (पुं०) तर्क-वितर्क। (वीरो० ३/१८) भूमि। ३. अम्ल, दरार। ऊहिन् (वि०) तर्क, करने वाला। ऊषकं (नपुं०) [ऊ+कन्] प्रभात, प्रातः। ऊहोचित स्थानं (नपुं०) तर्कणा का कारण। 'बहुलोहीचितऊषणं (नपुं०) [ऊष्ल्युट्] काली मिर्च, अदरक। स्थानोऽपि' (दयो० पृ०६८) ऊषरः (पुं०) उपज रहित भू-भाग, रिहाली भूमि, मरुधरा, सिकतिल प्रदेश। 'तत्परिणतिं प्रापोषरे बीजवत्।' (जयो० २४/१३६) 'ऊपरं नाम यत्र तृणादेस्सम्भवः'। (श्रावक ऋ प्रज्ञप्तिः ४७) ऋः (पुं०) संस्कृत वर्णमाला का सप्तम स्वर। इसका उच्चारण ऊषरटकः (पुं०) ०ऊपर भूमि, सिकतिल प्रदेश। मरुधारा। स्थान मूर्द्धा है। (जयो० २/५) 'तवदूषरटके किलाफले का प्रसक्तिः ' ऋ (अव्य०) विश्मयादिबोधक अव्यय। इसका प्रयोग निन्दा, ऊषवत् (वि०) ऊषर भूमि, मरुधरा। गर्दा, परिहास आदि में किया जाता है। ऊष्मन् (पुं०) [ऊष्+ मनिन्] १. गर्मी, ताप, अग्नि, ग्रीष्म ऋ (सक०) १. जाना, कांपना, उठाना। (अर्पयति, अरिरिषति) ऋतु, भाप, वाष्प। २. प्रचण्डता, तीव्रता। ३. ऊष्म ध्वनि २. आक्रमण करना, घायल करना, चोट पहुंचाना। ३. विशेष-श, ष, स और ह ध्वनियां। रखना, स्थापित करना, निर्देश देना। ऊष्मवर्णः (पुं०) ऊष्मवर्ण की ध्वनियां श, ष, स और ह। ऋ (स्त्री०) १. अदिति, देवमाता। २. निन्दा, गर्हा, ग्लानि। ऊष्माणो नाम वर्णा: श-ष-स-हा (जयो० वृ० ११/७८) ऋक् (स्त्री०) १. ऋचा, सूत्र, मन्त्र। २. स्तुति, पूजा, अर्चना। ऊष्मा (स्त्री०) १. ऊष्मवर्ण -श-ष-स-ह। २. सन्ताप, उष्णता। ऋकण (वि०) घायल, आहत, चोट ग्रस्त। यदेव भूयोऽपि पयोनिपीतमन्तः स्थितोष्मातिशयेन हीतः। ऋकथं (नपुं०) [ऋच्+थक्] धन, वैभव, सम्पत्ति, सामग्री। (जयो० १३/१००) ऋक्सुधा (स्त्री०) ऋग्वेद मंत्र का अमृत। नीतिवाक्यमृत। ऊहू (सक०) १. अंकित करना, टांकना, चिह्नित करना। २. (जयो० ७) अनुमान लगना, समझना, सोचना, चिन्तन करना। ३. ऋक्षः (पुं०) [ऋष्+स+किच्च] १. रीक्ष, भालू, भल्लू। २. तर्क करना, विचार करना। नक्षत्र, तारा। ३. राशि, चिह्न। ऊहः (पुं०) [ऊह्+घञ्] वितर्क, तर्कणा, अनुमान, | ऋक्षचक्र (नपुं०) तारा मण्डल, नक्षत्रसमूह। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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