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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊरुपर्वन् २२६ ऊर्ध्वातिक्रमः पुष्ट, परिपुष्ट, दीर्घ, बृहत्, (जयो० वृ० १/१९) कलत्रं ऊर्ध्वकाय (वि०) उठी हुई काया। हि सुवर्णोरुस्तम्भं कामिजनाश्रयम् (जयो० ३/७२) 'ऊरवो ऊर्ध्वकेश (वि०) ऊर्ध्व केश युक्त। दीर्घा स्तम्भा यस्य तत् ऊरू एव स्तम्भो यस्य तत्' (जयो० ऊर्ध्वक्रिया (स्त्री०) उन्नत क्रिया, ऊपर की गति। वृ० ३/७२) 'हंसा स्ववंशोक्तसरोवरस्य' (जयो० ७/४३) ऊर्ध्वगतिः (स्त्री०) श्रेष्ठ गति, सिद्धगति। ऊरुपर्वन् (पुं०) घुटना। ऊर्ध्वगामिन् (वि०) ऊँची ओर जाने वाला। ऊरुफलकं (नपुं०) जांघ की हड्डी । ऊर्ध्वचरणं (नपुं०) उच्च चरण, उन्नत पाद। ऊरुयुगं (नपुं०) जङ्घायुगल, दोनों जवा। ऊर्ध्वजानु (वि०) उठे हुए घुटनों वाला। ऊरुयुग्म् (नपुं०) 'सुवृत्त-भावादिवलेन चोरुयुगेन (जयो० ५/८१) । ऊर्ध्वजानुज्ञ (वि० ) उठे हुए घुटनों वाला। ऊरुयुगे-जङ्घायुगते। (जयो० वृ० ५/८१) जघन युगल ऊर्ध्वतासामान्य (वि०) पूर्वापर काल भावी पर्यायों में व्याप्त। (जयो० ५/४६) ऊर्ध्व-दृष्टि: (स्त्री०) दीर्घ दृष्टि, उन्नत दृष्टि, उच्चदृष्टि। ऊर्जः (पुं०) [ऊर्जूणिच्+अच्] १. शक्ति, बल, स्फूर्ति, ऊर्ध्वदिग्वतः (पुं०) उर्ध्वदिशा सम्बंधी प्रमाण। उर्ध्वा दिग सामर्थ्य, जीवन, प्राण। २. सत्त्व। ३. कार्तिकमास (मुनि० ७) उर्ध्वदिग, तत्सम्बन्धि तस्यां वा व्रतं उर्ध्व दिग्व्रतम्। ऊर्जस् (नपुं०) [ऊ+असुन्] बल, शक्ति, सामर्थ्य, प्राण। ऊर्ध्वदेहः (पुं०) १. विशाल काय, २. अन्त्येष्टि संस्कार। ऊर्जस्वत् (वि०) [ऊर्जस्+मतुप्] १. शक्तिशाली, शक्तिमान। ऊर्ध्वपातनं (नपुं०) ऊपर आरोहरण कराना, परिष्करण थर्मामीटर २. भोज्य युक्त, आहार युक्त। का पारा चढ़ाना। ऊर्जस्वल (वि०) [ऊर्जस्व लच्] महत्, बड़ा, शक्तिशाली, ऊर्ध्वपात्रं (नपुं०) उच्च पात्र, सुपात्र। दृढ़। ऊर्ध्वमुख (वि०) ऊपर मुख करने वाला। (वीरो० ५/२) ऊर्जस्विन् (वि०) [ऊर्जस्+विन्] महत्, बड़ा, शक्तिधारक, ऊर्ध्वमौहूर्तिक (वि०) थोड़ी देर होने के पश्चात् पश्चात्वर्ती। बलिष्ट। ऊर्ध्वरेणुः (वि०) आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिकाओं का समुदाय। ऊर्जस्विनी (स्त्री०) कार्तिक मास। पञ्चम्या नभसः प्रकृत्यभव- ऊर्ध्वरेतस् (वि०) ब्रह्मचर्य में स्थित रहने वाला। तादूर्जस्विनी या ह्यमा (मुनि० पृ०७) ऊर्ध्वलोकः (पु०) उपरिम लोक, मृदङ्गाकार लोक। ऊर्जित (वि०) [ऊर्ज़ क्त] शक्तिशाली, दृढ़, तेजस्वी, स्फूर्ति। उवरिमलोयायारो उब्भियमुरवेण होइ सरिसत्तो। (ति०प० ऊर्ण (नपुं०) [ऊणुउ] ऊन, ऊनी वस्त्र। १/१३८) ऊध्वलोकस्त मृदङ्गाकार:' (जैन०ल० २८६) ऊर्णनमिः (पुं०) मकड़ी, वयनकोट। 'वयनकोटवद् ऊर्णनाभ ऊर्ध्ववातः (पुं०) ऊपर स्थित वायु। इवायं' (जयो० वृ० २५/७३) ऊर्ध्ववायुः (पुं०) शरीर जन्य वायु। ऊर्णा (स्त्री०) [ऊर्ण टाप्] १. ऊन, २. भौंह का मध्यवर्ती ऊर्ध्वव्यतिक्रमः (पुं०) ऊँचे पर्वत आदि का उल्लंघन। भाग। "शैलाधारोहणमूर्ध्वव्यतिक्रम' (त०७० ७/३०) 'वृक्षऊर्णायु (वि०) [ऊर्णा+यु] ऊनी। पर्वताद्यारोहणमूर्ध्वव्यतिक्रमः' (कार्तिकेयानुप्रेक्षो ३४१) ऊर्णायुः (पुं०) १. भेड़, मेंढा, मेष। २. मकड़ी। ऊर्ध्वाशायिन् (वि०) १. ऊपर की ओर मुख करके सोने ऊर्ण (सक०) ढकना, घेरना, आच्छादित करना, छिपाना।। वाला। २. खड़े होकर शयन करने वाला। 'स्थित्वा शयनं ऊर्ध्व (वि०) [उद्-हा] ऊपर का, उन्नत, उठाया गया. खड़ा चोर्ध्वशायीं उभीभूय शयनमूर्ध्वशायी-(भ०आ० वृ०/२२५) हुआ। 'तदनन्तरमूर्ध्व गच्छत्यलोकान्तात्' (सम्य० १९) ऊर्ध्वसामान्यं (नपुं०) जो वस्तु को व्याप्त करे अपनी पर्यायों ऊर्ध्वं (नपुं०) उन्नत, ऊँचा, बड़ा, उठा हुआ। के स्वभाव को व्याप्त करे। सद्भिः परैरातुलितं स्वभावं ऊर्ध्वकच (वि०) खड़े केशों वाला। स्वव्यापिनं नाम दधाति तावत्। ऊर्ध्वकर (वि०) ऊँचे हाथ करने वाला। ऊर्ध्वसूर्यगमनं (नपुं०) सूर्य के ऊपर गमन। 'उड्ढमूरी य ऊर्ध्वकपाट (वि०) उपरिम कपाट, लोक की स्थिति विशेष ऊर्ध्वं गते सूर्ये गमनम्' (भ०आ०२२२) 'उर्ध्वं च तत् कपाटं च उर्ध्वकपाटम्' ऊर्ध्वं कपाटमिव | ऊर्ध्वातिक्रमः (पुं०) ऊर्ध्व ग्रहण की गई मर्यादा का अतिक्रमण। लोकः (धव० १३/३७९) 'तत्र पर्वतोद्यारोहणादूवा॑तिक्रमः' (त० वा० ७/३०) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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