SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उष्ट्रिका उष्ट्रिका (स्त्री०) १. ऊँटनी, २. मृणमयपात्र, सुराही । उष्ट्री (स्त्री०) ऊँटनी | उष्ण (वि०) १. तेज, अग्नि, ताप, गर्म (जयो० ६ / २९ ) 'उपति दहति जन्तुमिति उष्णम्' (जैन०ल० २८४ ) 'मादेवपाकदुष्ण' (जैन०ल० २८४) उष्णकलित (वि०) तेजस्वता युक्त प्रभावान्। 'उष्णकलिते वह्नितप्ते' (जयो० वृ० ७/६१ ) उष्णकर: (पुं०) सूर्य, रवि। उष्णगु: (पुं०) सूर्य, दिनकर, रवि, आदित्य । उष्णनाम: (पुं०) उष्ण नाम कर्म, जिस कर्म के उदय से शरीर गत पुद्गलस्कन्धों में उष्णता होती है। उष्ण-परिषहः (५०) उष्णपरिताप उष्णं निदाघादितापात्मकम् केवल० २८५) उष्ण परिषह सहनं (नपुं०) उष्णता का कष्ट सहना, दाहकता का प्रतिकार। उष्णयोनि (स्त्री०) उष्ण उत्पत्ति स्थान उष्णः संताप पुद्गल प्रचय प्रदेशो वा' (मूला०यू० १२/५८) उष्णरश्मि: (पुं०) सूर्य, दिनकर (वीरो० १२ / २ ) उष्ण सच्छविः (स्त्री० ) उष्णता युक्त छवि। 'ऐरावण उष्णसच्छविम्' (वीरो० ७/१०) उष्णस्पर्शः (पुं०) तेज स्पर्श, वह्नि स्पर्श । उष्णालु (वि०) (उष्णा-आलुच) संतप्त तेज युक्त, अधिक गर्मी । उष्णिका ( स्त्री०) मांद, चावल का मांद। + उष्णिमन् (०) [ उष्ण इमनिच्] गर्मी तेज, वह्नि उष्णीष: (पुं०) पगड़ी साफा, शिरोवेष्टन। 'उष्णमीषते हिनस्ति' उष्णीषिन् (वि) [उपीष इनि] पगड़ी वाला, शिरोवेष्टन · www.kobatirth.org उह उहह (अव्य० ) विस्मयादि बोधक अव्यय । उह्नः (पुं० ) [ वह रक्। सांड बलिवर्द। + २२५ युक्त। उष्म: (पुं०) १. तेज, गर्मी, वह्नि, अग्नि। २. क्रोध, कोप । ३. उत्कण्ठा, उल्लास। उष्मन् (पुं०) उष्मनिन्] १. गर्मी, ताप, ज्वलन, तेज। २. वाष्प, भाप, ३. ग्रीष्म ऋतु। ४. उत्सुकता । उष्मभास: (पुं०) सूर्य, रवि, दिनकर । उम्र: (पुं०) (यसुरक्] प्रकाश, किरण, प्रभा, आभा, रश्मि। उहू (अक० ) चोट करना, पीड़ित करना, घायल करना, नष्ट करना। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊ ऊ (पुं०) संस्कृत वर्णमाला का छठा स्वर, जिसका उच्चारण स्थान ओष्ठ है। ऊः (पुं० ) [ अवतीति-अव्+ क्विप्-ऊठ्] १. शिव शंकर, महादेव २. चन्द्रा ऊ (अव्य० ) विस्मयादि बोधक अव्यय, जिसमें करुणा का भाव रहता है। आह्वान की प्रतीति भी होती है। ॐ (पुं०) श्रुतविहित मन्त्रा ॐ पुण्याहमित्यादि सूक्तैश्च (जयो० वृ० १२ / ६५ ) ऊढ (वि० ) [ वह् +क्त] १. ढोया गया, ले जाया गया। २. विवाहित, पाणिग्रहीत। न करोत्यनूढा स्मयकौ तु कं न (सुद०२/२१ ) ऊढा (स्त्री०) विवाहित स्त्री। ऊरु: ऊढि (स्त्री० ) [ वह क्तिन्] विवाह, प्राणिग्रहण | ऊति (स्त्री०) (अब क्तिन्) १ बुनना, सीना। २. सुरक्षा। ३. उपभोग। ४. खेल क्रीड़ा। ऊधस् (नपुं० ) [ उन्द्+असुन्] ऐन, औहुरी ऊधन्यं (नपुं०) दूध । ऊन (वि०) [अन्+अच्] कम, अपूर्ण, अपर्याप्त, अपेक्षाकृत, हीन ऊनस्य नूनं भरणाय सन्ति (जयो० ५/८२) ऊनस्य - हीनस्य (जयो० वृ० ६/८२) कनुः (स्त्री०) जुआ (जयो० २७) ऊनोदरः (पुं०) एकासन व्रत, बाह्य तप का द्वितीय भेद । अवमौदर्य (जयो० २८/११ ) ऊनोदरता (वि०) स्वल्प भोजन ग्राहकता। (जयो० वृ० २८/११ ) कनोदलता (वि०) स्वल्प भोजन ग्राहकता ऊनोदलतां ररभेदा दूनोदरताम् । - For Private and Personal Use Only ऊनोदलताश्रित (वि०) १. जल की कमी से युक्त । २. स मारवाहेण नाम देशेन अभ्यतीतः सन्नपि उदलतां जल युक्ततां न श्रितः । (जयो० वृ० २८ / ११ ) ऊभ् (अव्य० ) [ ऊय् + मुक्] विस्मयादि बोधक अव्यय । इस शब्द से प्रश्न, क्रोध, भर्त्सना, दुर्वचन आदि का बोध होता है। ऊयु (सक०) बुनना, सीना, सिलाई करना। ऊररी (अव्य०) सहमति या स्वीकृति सूचक अव्यय । ऊरीकृत (वि०) अंगीकृत, स्वीकृत (जयो० वृ० १/८० ) ऊरव्यः (पुं०) [ऊरु+यत्] वैश्य, वर्ण का तृतीय वर्ग । ऊरु: (पुं०) (ऊर्णु+कु] १. जंघा, जांघ (जयो० १ / १९) २.
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy