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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उरोजयुगलं २२३ उल्लास: १०) उरोजयुगलं (नपुं०) स्तन द्वय। (जयो० १४/६८) उल्कापातः (पुं०) अग्निपतन, ज्वाला गिरना। उरोजराजिः (स्त्री०) कच युगल, स्तन युगल। (वीरो०५/४०) उल्कापिण्डः (पुं०) अग्नि पिण्ड। (जयो० १३.८४) उल्कामुखः (पुं०) बैताला उरोजसम्भूतिः (स्त्री०) स्तनागत। 'उरोजसम्भूतिमगान्मुहुर्वा' उल्कुषी (स्त्री०) [उल+कुष्+क+ङीष्] केतु, उल्का, ज्वाला, (जयो० ११/४) अग्निपिण्ड। उर्णनाभ (पुं०) [उणेव सूत्रं नाभौ गर्भऽस्य] मकड़ी। उल्बं (नपुं०) भ्रूण, गर्भाशय। उर्णा (स्त्री०) [ऊर्गुड-हस्व] ऊन। उल्बण (वि०) १. अतिशय, अधिक, पर्याप्त, प्रचुर, तीव्र, उर्वटः (पुं०) [उरु अट्+अच्] १. बछड़ा, २. संवत्सर। बहुत। २. दृढ़, शक्तिशाली। ३. स्पष्ट, स्वच्छ, साफ, शुभ्र। उर्वरा (स्त्री०) [उरुशस्यादिकमुच्छति] उपजाऊ भूमि. उन्नतकृषि | उल्मुकः (पुं०) [उष्+मुक्ष स्य ल:] ज्वलित काष्ठ, ज्वाला, भूमि। मशाल, उल्का। 'उल्मुकं शिशुवदात्मनोऽशुभम्' (जयो० उर्वशी (स्त्री०) [उरुन् महतोऽपि अश्नुते वशीकरोति-उरू+ ७/७९) अश्क ] अप्सरा, पुरुरवा की पत्नी। (दयो० २७/२४) उल्लङ्घ (अक०) लांघना, अतिक्रमण करना, छलांग लगाना, उर्वारुः (पु०) [ उरु ऋ+उण] लकड़ी विशेष। तोड़ना। सद्यो लिप्ततयाईवेश्म न विशेन्नोद्घाटयेदावृतं द्वारं उर्वी (स्त्री०) विशाल भूमि, उन्नत धरा, पृथ्वी, धरती, भू-भाग। तत्र च मण्डलुकादिकमथो नोल्लंघयेदास्थितम्' (मुनि० __ विस्तृत मैदान। 'समीक्ष्यते श्रीपदसम्पदुर्वी' (जयो० ११/८४) 'आदिच्य उर्ध्या रसभुक् समस्ति' (समु० ३/५) उल्लङ्घनं (नपुं०) [उद्+ल+ल्युट] ०अतिक्रमण, छलांग, उर्वीधपतिः (पुं०) पर्वतराज, गिरीश्वर। (जयो० २४/१८) लांघना। (जयो० वृ० ३/९०) उर्वीभृत् (पुं०) १. नृप, अधिपति। २. पर्वत, पहाड़। उल्लङ्घ्य (सं०कृ०) छलांग लगाकर, पार करके, लांघकर। उर्वीरूहः (पुं०) वृक्ष, पादप। (मुनि० १०) उलपः (पुं०) लता, बेल, गुल्म, कोमल तृण, 'तलाग्रं उल्लल (वि०) [उद्+लल+अच्] १. कंपनयुक्त, हिलने गुल्मिन्यामुबल यं मंतमिति' विश्वलोचन: (जयो० १४/२६) वाला। २. घने केशराशिवाला, लोमंश। उलूकः (पुं०) उल्लू, कौशिक। कौशिकात्-उलूकात् (जयो० उल्लस् (अक०) [उद्+लस्] आनन्द होना, हर्ष होना, रोमांच वृ० ८/९०) 'उलूक: स्तेनवन्मोदमादधति' (दयो० २/६) होना, खुश होना। 'समुल्लसन्मानसवत्युदारा' (सुद० १४८) उलूकजातिः (स्त्री०) उल्लू की जाति। (वीरो० २०/२०) उल्लसदङ्ग (नपुं०) मनोज्ञशरीर, सुन्दर अंग। उल्लसदङ्गम-- उलूकतनयः (पुं०) निशाचरवर्ग, उलूक सजाति- निशाचर, स्यास्तीत्युल्लसदङ्गवान् मनोज्ञशरीरधारी। (जयो० वृ० राक्षस, गुप्तोऽप्युलुकतनयस्य तथा सजातिः। (जयो० १०/७९) २८/५०) २. सांख्याचार्यः, सांख्यों के आचार्य-कणादमुनि। । उल्लसित (भू० क० कृ०) १. रोमांचित, हर्षित, प्रसन्नचित्त। उलूकपुत्रः (पुं०) निशाचर, राक्षस। २. प्रभावान, कान्तियुक्त आभाशील। उल्लसितोऽभूत्-प्रसन्नो उलूकसजाति: (स्त्री०) राक्षस जाति। जातः। (जयो० वृ० ४/२५) (सुद० ३/४६) उलूखलं (नपुं०) [उर्ध्वं खम् उलूखम्] ओखली, धान्यकुटक, उल्लाघ (वि०) [उद्+लाध्+क्त] १. स्वस्थ, रोग रहित। २. खरल। प्रवीण, चतुर, दक्ष, निपुण। ३. पवित्र, उत्तम, अच्छा। उलूखलकं (नपुं०) [उलूखल कन्] ओखली, खरल, कुटका उल्लापः (पुं०) [उद्+लप्+घञ्] वार्तालाप, बातचीत, शब्द, उलूखलिक (वि०) [उलूखला कन्] खरल किया गया, ओखली भाषण, संवेगशील शब्द, तीव्र-वचन। __ में पीसा गया। उल्लापक (वि०) मुखरी वचन वाला, वार्तालापी। उलूतः (पुं०) [उल् ऊतच्] अजगर, विषहीन सर्प। उल्लाप्यं (नपुं०) अभिनयजन्य नाटक, संवाद युक्त नाटक। उलूपी (स्त्री०) मत्स्य, मछली। उल्लासः (पुं०) [ उद्+लस्+घञ्] १. प्रसन्न, आनंद, हर्ष, उल्का (स्त्री०) [उ कक्+टाप, पस्य ल:] १. अग्नि पिण्ड, खुशी, उमंग। २. कान्ति, प्रभा, आभा। ३. उत्सव-'समागतास्ते आकाश का अग्नि पिण्ड, २. मसाल, ज्वाला, अग्नि। उत्सवायउल्लसाय (जयो० वृ० १८/११) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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