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उभयमनोयोगः
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उरोजबिम्बं
'उभयऽस्मिन्नुदये वा बन्धोऽस्ति यासां तां उभयबन्धिन्यः'
(जैन०ल० २८३) उभयमनोयोगः (पुं०) सत्यासत्य मनोयाग, उभयशक्ति रूप
मनोयोग। उभय-वचनयोगः (पुं०) धर्म विवक्षित सत्यासत्य वचनयोग।
'जाणुभयं सच्चमोसोत्ति' (धव० १/२८६) उभयवधः (पुं०) संकल्पित जीवघात। 'संकल्पितस्य जीवस्य
वध उभयवध इति' (पंच सं०पृ० १६) उभयविद्या (स्त्री०) दो प्रकार की विद्याएं, परा विद्या-अपरा
विद्या। उभयश्रुतं (नपुं०) श्रुत-मति सहित। उभयसारी (घि०) नियम-अनियम रूप पद वाली। उभयस्थितः (पुं०) दोनों रूप में स्थित। उभयाक्षरं (नपुं०) उभय पदार्थों से सम्बन्धित अक्षर। उभयाचारः (पुं०) दोनों प्रकार का आचरण। (भक्ति० ८) । उभयाननुगामी (वि०) क्षेत्र एवं भव में नहीं जाने वाला।
'यत्क्षेत्रान्तरं भवान्तरं च न गच्छति स्वोत्पन्न-क्षेत्र-भवयोरेव
विनश्यति तदुभयाननुगामी।' (गो०जी०वृ० ३७२) उभयानन्तः (पुं०) दोनों तरह से अन्त रहित। उभयानुगामी (वि०) भव-भवान्तर गामी। उभयासंख्यातः (पुं०) दोनों ओर से नहीं गिनी जाने वाली
संख्या। उम् (अव्य०) विश्मय-बोधक अव्यय, प्रश्नात्मक शब्द, क्रोध,
सान्त्वना। उमा (स्त्री) १. कान्ति, प्रभा, चमक।
'वक्तुरप्य-परवक्तुरूमाङ्गै' (जयो०५/४८) 'उकारेण चिता सहिता उमा नाम' (जयो० वृ० ११/९१) २. पार्वती-'उमामवाप्य महादेवोऽपि' (सुद० ११२) ३.
रति-(सुद० ७९) उमाधवः (पुं०) महादेव, शिव, शंकर। 'भालानलप्लुष्टमुमाधवस्य'
(जयो० १/७६) उमाधवस्य-महादेवस्य' (जयो० वृ० १/७६) उमापतिः (पुं०) शिव, महादेव, शंकर। उम्बर: (पुं०) द्वार के ऊपर की लकड़ी, तरंगा। उरः (पुं०) [उर+क] १. भेड़, मेष। हृदया 'यस्य काम
परिवादसादुरो' (जयो० २/६८) यस्य उरो हृदयं' (जयो०
वृ० २/६८) उरगः (पुं०) [उरसा गच्छति] सर्प, सांप, अहि, भुजंग, नाग। उरङ्गः (पुं०) सर्प, सांप।
उरण: (पुं०) [ऋ+क्यु-उत्व-रपरश्च] भेड़, मेष। उरणकः (पुं०) मेष, भेड़। उरभ्रः (पुं०) [उरु उत्कटं भ्रमति इति उका भ्रम् ड] भेड़, मेष। उररी (अव्य०) [उ+अरीक्] सहमति, स्वीकृति। उररीकार्य (पु०) स्वीकार्य, सहमत जन्य कार्य।
'युवाभ्यामुररीकार्य:' (सुद० ४/४५) 'धरा पुरान्यैरुररीकृता
वा' (सुद० ९११) उरस् (नपुं०) [ऋ+असुन्] वक्षस्थल, छाती। (सुद० २/४६) उरश्छदः (वि०) वक्षःस्थलावरण, कवच। (जयो० ७/९४) उर:स्थल (नपुं०) वक्षःस्थल, छाती। 'यथोत्तरं पीवर
सत्कुचोर:स्थलं' (सुद० २/४६) उरसिल (वि०) [उरस्+इलच्] विस्तीर्ण वक्षःस्थल वाला। उरस्य (वि०) [उरस्+यत्] औरस सन्तान। उरस्वत् (वि०) [उरस्+मतुप] विस्तीर्ण वक्षःस्थल, उन्नत
छाती, उभरी हुई छाती। उरी (अव्य०) स्वीकृति बोधक अव्यय। उरीकृ--आज्ञा देना,
अनुमति देना, स्वीकृति देना। उरीकरोति--(समु० ४/२४, राज्य करता है। उरीचकार-(जयो० ११/२) स्वीकृति प्रदान की। उरी कार्य-बहिष्कारउरीकार्य : सत्याग्रहमुपेयुषा(वीरो० ११/४२) उरीकुरु-(जयो० २/९०) स्वीकृति दें।
उरीकृत-स्वीकृत-(जयो० २२/६७) उरु (वि०) १. दीर्घ, उन्नत, विशाल, विस्तीर्ण, उभरा हुआ।
२. प्रशस्त, अतिशय जन्य, श्रेष्ठ, प्रचुर। उरुका (वि०) सुदीर्घा, अतिविस्तृता। (जयो० १०/९३) उरुकीर्तिः (स्त्री०) प्रख्यात कीर्ति, सुविख्यात, प्रसिद्ध। उरुचारु (स्त्री०) अत्यन्त सुन्दर, रमणीय (जयो० ११/२०)
'मोचोरुचारुर्भवितुं तु यस्याः ' (जयो० ११/२०) 'उरुश्चारु
भवितुं जंघासदृशी सम्भवितुप्' (जयो० वृ० ११/२०) उरुधाम्म (वि०) विस्तृत प्रकाश वाले। (सम्य० ७९) उरुमार्गः (पुं०) चौड़ी सड़क, लम्बी सड़क। उरुविक्रम (वि०) पराक्रमी, बलशाली, शक्तियुक्त। उरुरी (अव्य०) स्वीकृति सूचक अव्यय। उरोज (नपुं०) स्तन, थन। (जयो० ११/४) उरोजतीरः (पुं०) स्तन, तट। (वीरो० १२/१५) उरोजदुर्गः (पुं०) स्तनदुर्ग, स्तनरूपी किला। (जयो० १६/४७)
__ * विस्तृत दुर्ग, फैला हुआ किला। * दृढ़ घेरा। उरोजबिम्बं (नपुं०) स्थूल स्तन, उन्नत स्तन, उभरे हुए स्तन।
'गुरुनितम्ब: स्विदुरोजबिम्ब:' (जयो० ११/२४)
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