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उपलपनं
२१५
उपशान्त:
उपलपनं (नपुं०) स्मरण, याद। (जयो० ४/६५)
उपवासक्रिया (स्त्री०) उपवास विधि। उपलब्ध: (पुं०) प्राप्त, गृहीत, ग्रहण। 'कलितामुपलब्धाम्' उपवासचिन्ता (स्त्री०) उपवास के प्रति चिंतन। (जयो० वृ० ४/५६)
उपवासविधिः (स्त्री०) उपवास क्रिया। मनोऽक्षनिग्रहं कर्तुमुपउपलब्ध-पाशी (वि०) पाश लिए हुए, पाशधारी भव॑श्च वास-विधायिनः। त्यक्त्वाऽखिलं गृहारम्भमेकास्ते स्थीयताभूयादुपलब्ध-पाशी। (वीरो० १४/२२)
मिति।। (हित० सृ० ५९) अवश्यमेव सप्ताहादुपवासो उपलब्धरोक (वि०) १. प्राप्त का निरोध।
विधीयताम्।' (हित० सं०६०) उपलब्धरोकः (पुं०) पहरेदार, द्वारपाल। निष्काशितोऽतः | उपवासिन् (वि०) लंघनमयी, अनशनकारी। (जयो० १६/१८)
प्रविताड्यलोकेर्विक्षिप्त एवेत्युपलब्धरोकैः। (समु०३/३२) उपविश् (अक०) प्रविष्ट होना, घुसना। (जयो० ६/५५) उपलब्धिः (स्त्री०) १. प्राप्ति, २. बुद्धि, ज्ञान।
उपविष्ट (वि०) अवस्थित, स्थित, उपस्थित, प्रवेशित, रहने उपलभ् (सक०) प्राप्त करना, ग्रहण करना। (दयो० ८) वाला। (समु० ९/१४) 'सा गोचराधारतयोपविष्टा' (सुद०
'नैष्प्रतीच्छयमिति चोपलभ्यताम्' (जयो० २/७४) १/२१) 'सत्परिखोपविष्टम्' (सुद० १/२५)
'उपलभ्यतां प्राप्यतामित्यर्थः' (जयो० वृ० ७/७४) उपवीतं (नपुं०) जनेऊ, यज्ञोपवीत। उपलम्भः (पुं०) प्राप्त, निरूपित। 'य: स्वरूपोपलम्भः स्यात्' उपवेग (पुं०) प्रवाह, धारा। (सम्य० ११५)
उपवेश (सक०) बिठाना, स्थित करना, आश्रय देना। उपलस्वभावा (वि०) हीरकादि रूप सरस्वती। (जयो० १९/३४) उपवेशयति-जयो० वृ० १३/७३) उपलालिका (स्त्री०) घास, ग्रास, तृण।
उपव्रज् (सक०) लेना, ग्रहण करना। (समु० २/३०) उपलालित (वि०) ०तरलित, उमड़ पड़ा, (सुद० ३/२३) उपशम् (सक०) उपशान्त होना, रोकना, निरोध करना, निग्रह
० उपायों से लक्षित (जयो० वृ१/६) तरंगित्, उद्वेलित। करना। (जयो ० ९/६६) पालित (वीरो० १/६१) तस्योपयोगतो वाञ्छा मोदकस्योपशाम्यति।' (सुद० १२६) 'हृदयसिन्धुरभूदुपलालित इति'
उपशमः (पुं०) १. उदय अभाव, उपशान्ति, अनुदय-'आत्मनि उपलिस् (सक०) लिखना, आधार से अंकित करना। 'परस्य कर्मणः स्वशक्तेः कारणवशादनुभूतिरूपशमः।' (स० सि० करेण उपलिखतीति' (जयो० २/१३)
२/१) आधाराधना सार पृ० १२१ 'उदयअभावो उपसमो' उपलेखः (फु) आश्रित लेख, आधार युक्त, अंकन, प्रतिलिपि. प्रतिलेख। (जैन ल०२७६) २. नाश, विनाश, निरोध। ३. मोहकर्म उपलेखकः (पुं०) १. प्रतिलिपिकार। २. परकर गृहीत लेखक। का ह्रास। ४. आराम, स्वस्थ, उचित 'सम्यक्त्वमस्तूपशमाच्च
'बालकः परकोपलेखकः।' (जयो० २/१३) 'अपरपुरुषस्य नाशात्' (सम्य० ५९) साहाय्येन लिखति।' (जयो० वृ०२/१३)
उपशमक (वि०) उपशम करने वाला, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिउपलेपः (पुं०) लेप पर लेप, प्लास्टर लगाना, एक आवरण करण और सूक्ष्मसाम्पराय ये तीन गुणास्थानवी जीव पर दूसरा आवरण लगाना।
उपशमक हैं। (त० वा० ९/१) उपलोचनं (नपुं०) चश्मा, नेत्राभूषण।
उपशमकश्रेणी (स्त्री०) उपशान्त पर आरोहण। उपवनं (नपुं०) आराम, बगीचा, उद्यान। (सुद० ४/१) 'या उपशमचरणं (नपुं०) चारित्रमोहनीय के उपशम से उत्पन्न किलोपवन-रक्षणतातिर्मालि' (जयो० ४/४२)
चरित्र। उपवनप्रधान: (पुं०) प्रसिद्ध आराम, मुख्य बगीचा, प्रसिद्ध उपशम-सम्यक्त्वं (नपुं०) उपशम से उत्पन्न होने वाला, उद्यान। (जयो० १/८०) 'अङ्गीचकारोपवनप्रधानः'
तत्त्वार्थश्रद्धान को प्राप्त। उपवर्हः (पुं०) उपधान, तकिया।
उपशम-सम्यग्दृष्टिः (स्त्री०) कषाय और दर्शनमोहनीय के उपवासः (पुं०) अनशनव्रत, बाह्यव्रत में प्रथम व्रत, आहार उपशम से उपशमसम्यग्दृष्टि होता है। 'समीची दृष्टिः
का परित्याग। 'उपवास: उपवसनम्' 'उक्तं पर्वोपवासाय' श्रद्धा यस्यासौ सम्यग्दृष्टिः। (धव० १/७१) (सुद०९६) 'उपेत्यात्मा न वसन्ति इन्द्रियाणि यस्मिन् स उपशयः (पुं०) निदान, निराकरण। उपवास:' (हित सम्पादक पृ० ५९)
उपशान्तः (पुं०) रोकना, उपशम करना, अनुदय।
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