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उपघोषणं
उपदंश:
निरोधादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम।' (भ० आ० | उपछन्दनं (नपुं०) [उप+ छन्द + णिच्+ ल्युट] उकसाना, प्रलोभन टी० २/२४)
देना, आमंत्रण देना। उपघोषणं (नपुं०) [उप+घुष्+ल्युट्] घोषणा, ढिंढोरा, विज्ञापन, उपजनः (पुं०) [उप जन् अच्] वृद्धि, समायांग, जोड़, प्रकाशित करना।
उपगमनस्थान। उपध्न (पु०) [उप+हत्-क] शरण, आश्रय, संरक्षा।
उपजल्पनं (नपुं०) [उप-जल्प ल्युट] वार्तालाप, बातचीत, आलाप। उपचक्रः (पुं०) एक हंस विशेष!
उपजात: (पुं०) [उप. जप्त घा] समीपस्थ कथन, गुप्त कथन, उपचक्षुष (नपुं०) चक्षुताल, चश्मा, उपनेत्र।
कर्ण में कहना। उपचयः (पुं०) १. आधिक्य, वृद्धि, महत्, २. इकत्र, इकट्ठा, उपजायमान (वि०) उत्पन्न होने वाला। (वीगे० २०/२१)
संयोग, युग्म। ३. परिमाप, माप। ४. समृद्धि, उत्थान, उपजीवक (वि०) [उप+जीव+ण्वुल] आश्रित रहने वाला, अभ्युदय। ५. निसिञ्चन करना, क्षेपण करना, गृहीत कर्म आधारभृत, दूसरे के सहारे जीविका करने वाला। पुद्गलों के अधिकाल को छोड़कर आगे ज्ञानावरणादि उपजीवन (नपुं०) [उप+ जीव+ ल्युट ] आजीविका, जीने का स्वरूप में निसिञ्चन करना।
आश्रय, जीविकोपार्जन का साधन। उपचयपदं (नपुं०) विशिष्ट अवयव, शरीर के अवयवों में उपजीव्य (वि०) [उप+ जीव। ण्यत्] जीविका देने वाला,
वद्धि होने से जो विशिष्ट अवयव हों। आश्रयदाता, संरक्षक 'तत्रोपचितावयवनिबन्धनानि' (धव०१/७७)
उपज्ञं (वि०) कथित, परिभापित, विवेचित। आप्तोपउपचरः (पुं०) । उप+च+अच] उपचार, निदान, व्याधि ज्ञमनुल्लंध्यमादेष्ट विरुद्धवाक। (सम्य०१३) निरोध, चिकित्सा।
उपज्ञा (स्त्री०) [उप- ज्ञा अङउपजा ज्ञान, आगत ज्ञान, उपचरणं (नपुं०) [उप+चर् + ल्युट्] निकट जाना, समीप समायोजित ज्ञान। गमन करना।
उपढौकनं (नपुं०) [उप ढोक ल्युट] ससम्मान उपहार, भेंट। उपचरित-भावः (पुं०) उपचार भाव 'एकत्र निश्चितो भाव: उपढौकित (वि०) आरुढ़ित, आरोहित, चढ़ा हुआ। परत्र चोपर्यत'
'रथमेवमथोपढौकित: किम्' (जयो० १०/५१) उपचरित-सद्भूत व्यवहारनयः (पुं०) उपाधि सहित गुण उपतस्थुर (वि०) उपस्थित हुए (वीरा ७/१२)
और गुणी में भेद को जो विषय करता है। जीव के उपतापः (पुं०) [उप तप घञ्] १. उणा, तेज, गर्मी, संताप पतिज्ञान आदि गुण।
२. दु:ख, वेदना, कष्ट। उपचर्या (स्त्री०) संग्रहण, उपचार, सेवा।
उपतापक (वि०) बाह्य संतापक, संतप्त होने वाला। (जयो उपचारः (पुं०) [उप-चर्+घञ्] ०सेवा, चिकित्सा, सुश्रूषा, २६/२५) बहिरूपद्रवकारक अरिमग्निमिवोपतापकं जलवत्
०सम्मान, ०अभयदान, ०शिष्टिता, नम्रता, सत्कार, तूद्दलनाश्रयः स्वकम्' (जयो० २६/२५)
सङ्गम, पूंछना। (सुद० २/७) 'किं विधोः शरदि नाप्युपचारः' उपतापी (वि०) संतप्ती, पश्चात्तापशील। (जयो० १५/५८) (जयो० ४/९)
उपतापनं (नपुं०) [उप-तप णिच् + ल्युट्] १. गरम करना. उपचारछलं (नपुं०) सत्य धर्म के सद्भाव का निषेध- तपाना। २. कष्ट देना, सताना आकुलित करना।
'धर्माध्यारोपनिर्देशे सत्यार्थ प्रतिषेधनम्' (त०श्लोक १/२९९) उपतापिन् (वि०) [उप-तप्त णिनि ) १. गरम करने वाला. उपचार विनयः (पुं०) आचार्य आदि के सम्मुख खड़ा होना। जलाने वाला, संतप्त करने वाला। २. व्याधि जनित, रोग
'अञ्जलीकरणादिरूपचारविनयः' उपचितिः (स्त्री०) [उप चि+क्तिन्] ०इकट्ठा करना, संग्रह | उपतिष्यम् (नपुं०) अश्लेषा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र।
करना, जोड़ना, संचय करना, चयन करना, जुटाना। उपत्यका (स्त्री०) [उपत्यकन्-पर्वतस्यासन्नं स्थलमुपत्यका] उपचूलनं (नपुं०) [उप-चूल्+ ल्युट्] जलाना, उष्ण करना, पर्वत की तलहटी, नीचे का भाग। तपाना।
उपदंशः (पुं०) [उप+ दंश्+घञ्] १. काटना, डङ्क मारना, उपच्छदः (पुं०) [उप+छद् णिच्+घ] आवरण, ढक्कन, चादर। डसना। २. रोग (आतशक)। ३. भूख-प्यास वाली वस्तु।
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युक्त।
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