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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उन्मूल्य २०६ उपकृ उन्मूल्य (वि०) 'उन्मूलन कर, मूलोच्छेदकर। (सम्य० १४७) उपकरण-बकुशः (पुं०) उपकरण का इच्छुक साधक___ 'भूयो विरराम कर: प्रियोन्मुखः' (जयो० ६/११९) 'उपकरणबकुशो बहुविशेषयुक्तोपकरणाकांक्षी' (स० सि० उन्मुद्र (वि०) [उदगता मुद्रा यस्मात्] खिला हुआ। ९/४७) उन्मुद्रय् (सक०) छोड़ना, त्यागना। 'सुकेशि! उन्मुद्रय मुद्रणां उपकरण-संयमः (पुं०) पुस्तकादि संयम। गिरां' (जयो० २४/४२) उपकरण-संयोजनं (नपु०) पुस्तकादि का प्रजार्जन। (भ० उन्मूलनं (नपुं) [उद्-मूल+ल्युट] उखाड़ना, समूल नाश, मूलोच्छेदना आ० टी०८१५) उन्मेदा (स्त्री०) स्थूलता, मुटापा। उपकरणेन्द्रियं (नपुं०) इन्द्रिय विषय का ग्रहण नहीं होना। उन्मेष: (पुं०) [उद्-मिष्+घञ्] १. नेत्रोदघाटन, आंख खोलना, उपकर्णनं (नपुं०) [उप-कर्ण+ ल्युट] श्रवण, सुनना। पलक मारना। २. खिलना, खुलना, फूलना, विकसित उपकर्णिका (स्त्री०) [उपकर्ण+कन्। टाप्] जनश्रुति, अफवाह, होना। ३. प्रकाश, प्रभा, चमक, दीप्ति। ४. प्रकट होना, व्यर्थ का कथन, सुनना/फैलाना। दिखाई देना। उपकर्तृ (वि०) [उप+कृ+तृच्] अनुग्रहकर्ता, आभारी, उपयोगी, उन्मोचनं (नपुं०) [उद्+मुच्+ ल्युट्] खोलना, उघाड़ना।। उपकारक। उप (उपसर्ग) यह उपसर्ग संज्ञाओं और क्रियाओं दोनों में उपकल्प (वि०) तैयार, सचेष्ट। लगता है, इसके लगने से कई अर्थ उपस्थित हो जाते उपकल्पधर (वि०) सहायकर, सहायक, उपकारक। (जयो० हैं-१. निकटता, समीपता। (जयो० १३/१७) (उपकण्ठ) ९/४३) संसक्ति-उपगच्छति, उपस्थित। २. शक्ति, बल, उपकल्पनं (नपुं०) [ उप कृप। णिच् ल्युट्] कथन, विकार, योग्यता उपकरोति। ३. व्याप्त, विस्तार, विस्तीर्ण-उपकीण। सृजन। (जयो० ९/४३) 'तदनुतापि न मेऽप्युपकल्पनम्' ४. परामर्श, शिक्षण-उपदिशति। ५. मृत्यु-उपरति। ६. (जयो० ९/४३) दोप, अपराध-उपघात। ७. देना, प्रदान करना-उपनयति। | उपकल्पित (वि०) सृजित करता हुआ, बनाता हुआ, रचता उपादान (सम्य० १४) ८. चेष्टा, प्रत्न।- ९. उपक्रम, हुआ। 'रात्रं तदन-उपकल्पितवहिभावः। (सुद० ४/२४) आरम्भ-उपक्रमते। १०. अभ्यास, अध्ययन-उपाध्याय। ११. उपकाननं (नपुं०) उपवन, आराम, उद्यान, बगीचा। आदर, पूजा, सम्मान-उपस्थान। १२. प्रापत, उपलब्ध-उपेतः 'सुरभिताखिलदिश्यपकानने' (जयो० ९/६९) (सुद० ४/१७) उपैति-(वीरो० २/३२) उपकारः (पुं०) [उप कृ+घञ्] सहायता, सहयोग, सहकारिता, उपकण्ठः (पुं०) [उपगतः कण्ठम्] सामीप्य, सानिध्य, निकटता। सेवा, अनुग्रह, आभार। 'प्रजानां हिताय' (जयो० १२/६६) (सुद०३/२९) 'स्तवकगुच्छोपकण्ठ-स्थले' (समु०२/२८) (सुद० ४/४५) १. तैयारी, उपकृत। (जयो० वृ० १/४०) उपकण्ठः (पुं०) मधुर कण्ठ। (जयो० १७/१८) २. अलंकरण, आभूषण,शृंगार साधना उपकण्ठ (अव्य०) समीप. निकट, ग्रीवा सन्निकट। उपकारिन् (वि०) उपकारक, सेवक, सहभागी। 'उपकण्ठमकम्पनादय': (जयो० १३/१७) उपकारी (स्त्री०) धर्मशाला, उपाश्रय, एकान्त ठहरने का उपकण्ठी (वि०) मधुरकण्ठ वाली। नापोपकण्ठं स्थान। सहसोकण्ठीकृतापि यूना पिकमञ्जुकण्ठी' (जयो० १७/१८) उपकार्य (वि०) [उप+ कृ+ ण्यत्] सहायता करने के लिए उपकथा (स्त्री०) लधु कथा, किस्सा-कहानी। उपयुक्त/समीचीन। 'मत्तोऽप्यवित्तविधिरेष मयोपकार्यः' (सुद० उपनिष्ठिका (स्त्री०) कन्नी अंगुली के पास वाली अंगुली। ४/२४) उपकरणं (नपुं०) [उप+कृ+ल्युट्] १. साधन, सामग्री, वस्तु, उपकुञ्चि (स्त्री०) [उप+कुञ्च। कि] 'छोटी एला, इलायची। द्रव्य, पात्र। २. उपस्कर। (जयो० वृ० २२/३६) 'येन उपकुम्भ (वि०) १. समीपस्थ, निकटस्थ, संसक्त। २. अकेला, निर्वृत्तेरूपकारः क्रियते तदुपकरणम्' (स० सि० २/१७) एकाकी, निवृत्त 'उपक्रियतेऽनेनेति उपकरणम्' (त० वा० २/१७) उपकुल्या (स्त्री०) [उप कुल+ यत् टाप] नहर, खाई। 'उपक्रियतेऽनुगृह्यते ज्ञानसाधनमिन्द्रियमनेनेन्युपकरणम' (भ० उपकूपम् (अव्य०) कुएं के निकट बना नाद, पानी का पात्र। आ० टी० ११५) अनुग्रह सेवा। उपकृ (सक०) अर्पण करना, उपकार करना, डालना, समर्पण For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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