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उन्मूल्य
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उपकृ
उन्मूल्य (वि०) 'उन्मूलन कर, मूलोच्छेदकर। (सम्य० १४७) उपकरण-बकुशः (पुं०) उपकरण का इच्छुक साधक___ 'भूयो विरराम कर: प्रियोन्मुखः' (जयो० ६/११९)
'उपकरणबकुशो बहुविशेषयुक्तोपकरणाकांक्षी' (स० सि० उन्मुद्र (वि०) [उदगता मुद्रा यस्मात्] खिला हुआ।
९/४७) उन्मुद्रय् (सक०) छोड़ना, त्यागना। 'सुकेशि! उन्मुद्रय मुद्रणां उपकरण-संयमः (पुं०) पुस्तकादि संयम। गिरां' (जयो० २४/४२)
उपकरण-संयोजनं (नपु०) पुस्तकादि का प्रजार्जन। (भ० उन्मूलनं (नपुं) [उद्-मूल+ल्युट] उखाड़ना, समूल नाश, मूलोच्छेदना आ० टी०८१५) उन्मेदा (स्त्री०) स्थूलता, मुटापा।
उपकरणेन्द्रियं (नपुं०) इन्द्रिय विषय का ग्रहण नहीं होना। उन्मेष: (पुं०) [उद्-मिष्+घञ्] १. नेत्रोदघाटन, आंख खोलना, उपकर्णनं (नपुं०) [उप-कर्ण+ ल्युट] श्रवण, सुनना।
पलक मारना। २. खिलना, खुलना, फूलना, विकसित उपकर्णिका (स्त्री०) [उपकर्ण+कन्। टाप्] जनश्रुति, अफवाह, होना। ३. प्रकाश, प्रभा, चमक, दीप्ति। ४. प्रकट होना, व्यर्थ का कथन, सुनना/फैलाना। दिखाई देना।
उपकर्तृ (वि०) [उप+कृ+तृच्] अनुग्रहकर्ता, आभारी, उपयोगी, उन्मोचनं (नपुं०) [उद्+मुच्+ ल्युट्] खोलना, उघाड़ना।।
उपकारक। उप (उपसर्ग) यह उपसर्ग संज्ञाओं और क्रियाओं दोनों में उपकल्प (वि०) तैयार, सचेष्ट।
लगता है, इसके लगने से कई अर्थ उपस्थित हो जाते उपकल्पधर (वि०) सहायकर, सहायक, उपकारक। (जयो० हैं-१. निकटता, समीपता। (जयो० १३/१७) (उपकण्ठ) ९/४३) संसक्ति-उपगच्छति, उपस्थित। २. शक्ति, बल, उपकल्पनं (नपुं०) [ उप कृप। णिच् ल्युट्] कथन, विकार, योग्यता उपकरोति। ३. व्याप्त, विस्तार, विस्तीर्ण-उपकीण। सृजन। (जयो० ९/४३) 'तदनुतापि न मेऽप्युपकल्पनम्' ४. परामर्श, शिक्षण-उपदिशति। ५. मृत्यु-उपरति। ६. (जयो० ९/४३) दोप, अपराध-उपघात। ७. देना, प्रदान करना-उपनयति। | उपकल्पित (वि०) सृजित करता हुआ, बनाता हुआ, रचता उपादान (सम्य० १४) ८. चेष्टा, प्रत्न।- ९. उपक्रम, हुआ। 'रात्रं तदन-उपकल्पितवहिभावः। (सुद० ४/२४) आरम्भ-उपक्रमते। १०. अभ्यास, अध्ययन-उपाध्याय। ११. उपकाननं (नपुं०) उपवन, आराम, उद्यान, बगीचा। आदर, पूजा, सम्मान-उपस्थान। १२. प्रापत, उपलब्ध-उपेतः 'सुरभिताखिलदिश्यपकानने' (जयो० ९/६९) (सुद० ४/१७) उपैति-(वीरो० २/३२)
उपकारः (पुं०) [उप कृ+घञ्] सहायता, सहयोग, सहकारिता, उपकण्ठः (पुं०) [उपगतः कण्ठम्] सामीप्य, सानिध्य, निकटता। सेवा, अनुग्रह, आभार। 'प्रजानां हिताय' (जयो० १२/६६)
(सुद०३/२९) 'स्तवकगुच्छोपकण्ठ-स्थले' (समु०२/२८) (सुद० ४/४५) १. तैयारी, उपकृत। (जयो० वृ० १/४०) उपकण्ठः (पुं०) मधुर कण्ठ। (जयो० १७/१८)
२. अलंकरण, आभूषण,शृंगार साधना उपकण्ठ (अव्य०) समीप. निकट, ग्रीवा सन्निकट। उपकारिन् (वि०) उपकारक, सेवक, सहभागी। 'उपकण्ठमकम्पनादय': (जयो० १३/१७)
उपकारी (स्त्री०) धर्मशाला, उपाश्रय, एकान्त ठहरने का उपकण्ठी (वि०) मधुरकण्ठ वाली। नापोपकण्ठं स्थान।
सहसोकण्ठीकृतापि यूना पिकमञ्जुकण्ठी' (जयो० १७/१८) उपकार्य (वि०) [उप+ कृ+ ण्यत्] सहायता करने के लिए उपकथा (स्त्री०) लधु कथा, किस्सा-कहानी।
उपयुक्त/समीचीन। 'मत्तोऽप्यवित्तविधिरेष मयोपकार्यः' (सुद० उपनिष्ठिका (स्त्री०) कन्नी अंगुली के पास वाली अंगुली।
४/२४) उपकरणं (नपुं०) [उप+कृ+ल्युट्] १. साधन, सामग्री, वस्तु, उपकुञ्चि (स्त्री०) [उप+कुञ्च। कि] 'छोटी एला, इलायची।
द्रव्य, पात्र। २. उपस्कर। (जयो० वृ० २२/३६) 'येन उपकुम्भ (वि०) १. समीपस्थ, निकटस्थ, संसक्त। २. अकेला, निर्वृत्तेरूपकारः क्रियते तदुपकरणम्' (स० सि० २/१७) एकाकी, निवृत्त 'उपक्रियतेऽनेनेति उपकरणम्' (त० वा० २/१७) उपकुल्या (स्त्री०) [उप कुल+ यत् टाप] नहर, खाई। 'उपक्रियतेऽनुगृह्यते ज्ञानसाधनमिन्द्रियमनेनेन्युपकरणम' (भ० उपकूपम् (अव्य०) कुएं के निकट बना नाद, पानी का पात्र। आ० टी० ११५) अनुग्रह सेवा।
उपकृ (सक०) अर्पण करना, उपकार करना, डालना, समर्पण
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