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उद्धूपनं
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उद्यमनं
उद्धूपनं (नपुं०) [उद्+धूप्+ल्युट्] धूनी देना, छुपाना।
प्रकाशवृत्तिता उद्भावनम्' (स० सि०६/२५) प्रतिबन्धक उद्भूलनं (नपुं०) [उद्+धूल-णिच्+ल्युट्] पीसना, चूर्ण करना, का अभाव होने पर प्रकाश में आना। धूल करना।
उद्भावयितृ (वि०) [उद्+भू+णिच्+तृच्] ऊपर उठाने वाला, उद्भूषणं (नपुं०) [उद्+धूष ल्युट] रोमांचित होना, हर्षित | उन्नत बनाने वाला। होना, भाव-विभोर होना, पुलकित होना।
उद्भासः (पुं०) [उद्+भास्+घञ्] प्रभा, कान्ति, चमक। उद्धृत (भू० क० कृ०) [उद्+ह+क्त] ऊँचा किया, उन्नत उद्भासिन् (वि०) [उद्भास्+इनि] प्रकाशमान्, प्रभा युक्त,
किया, उठाया। (जयो० १२१८८) बढ़ाया, उद्धार किया, कान्तिमयी, उज्ज्वल, स्वच्छ। बचाया, संरक्षित किया।
उद्भिज्जः (पुं०) पौधा, पादप। उद्धतिः (स्त्री०) [उद्+ह-क्तिन्] १. ऊँचा करना, उठाना, उद्भिद् (वि०) फूटने वाला, निकलने वाला, उगने वाला,
निचोड़ना, निकालना, खींचना, रचना, जुटाना। (जयो० उच्छेदक। (जयो० २४/१९) २/१६५) (सुद० ३/११) बाहर करना। २. उद्धार करना, उद्भिन (वि०) निरस्त, समाप्त। श्रीमतो मुनिनाथस्याऽप्युद्भिन्ना मुक्ति। 'बलोद्धृतिसमाश्रयत्वतः' (जयो०३/१२) ३. रक्षा मुखमुद्रणा।' (जयो० १/११) दोष विशेष-चमड़े आदि से
करना, बचाना-'निर्बलोद्धृतिपरस्तु कर्मणा' (जयो० ३/२) आच्छादित वस्तु। उद्धमाननं (नपुं०) [उद्+ध्मा+ल्युट्] अंगीठी, चूल्हा। उद्भूत् (भू० क० कृ०) [उद्+भू+क्त] जात, उत्पन्न, प्रसूत, उद्धयः (पुं०) [उज्झत्युदकमिति उद्-उज्झ्+क्यप्] एक नदी निःसृत, निकला हुआ। का नाम।
उद्भूतिः (स्त्री०) [उद्+भू+क्तिन्] उत्पादन, निस्सरण, उन्नयन, उबन्ध (वि०) १. ढीला किया गया, खोला गया। २. लटकना, उत्कर्षण, समृद्धि, प्रजनन। भेंदना, ऊपर लटकाना।
उद्भूय (अक०) उठना, जागृत। उद्भूयते-(जयो० ११/९) उद्बन्धकः (पुं०) [उद्+बन्ध्+ण्वुल] बन्धक सहित, कार्यशील 'उत्थाय आसनादुद्भूय तस्यां' (जयो० वृ० १/७९) बन्धक।
उद्भेदः (पुं०) [उद्+भिद्+घञ्] १. आविर्भाव, प्रकटीकरण, उद्बल (वि०) सशक्त, शक्तिशाली।
उदीयमान, उदयजन्य प्रस्फुटित, उगना, निकलना। २. उद्वाष्प (वि०) अश्रुपूरित, अश्रु से परिपूर्ण।
निर्झर, प्रवाह, धारा, फुहार। उद्बाहु (वि०) प्रसारित बाहु वाला, उर्ध्व भुज युक्त। उभेदिमः (पुं०) काष्ठादि में उत्पन्न जीव। उबुद्ध (भू० क० कृ०) [उद्+बुध+ क्त] जागृत, जगाया उद्भ्रमः (पुं०) [उद्+भ्रम्। घञ्] घूमना, परिहिंडन, परिभ्रमण, गया, हर्षित, प्रसन्नचित्त।
परावर्तन। उद्बोधः (पुं०) [उद्+बुध+णिच्+घञ्] स्मरण दिलाना, बोध उद्भ्रमणं (नपुं०) [उद्+भ्रम् ल्युट्] परिहिंडन, परावर्तन, कराना, जगाना, उठाना, ध्यान दिलाना।
अत्र तत्र परिभ्रमण। उद्बोधक (वि०) [उद्+बुध+णिच्+ण्वुल] उपदेष्टा, जागृत उद्यत (भू० क कृ०) [उद्+यम्+क्त] तत्पर, तैयार, प्रयत्नशील,
करने वाला, समझाने वाला, ध्यान केन्द्रित करने वाला। उठाया हुआ, उन्नत किया गया, उत्सुक। (वीरो०६/३९) उद्भट (वि०) [उद्+भट्+अप्] प्रगल्भ, श्रेष्ठ, प्रमुख, उत्कृष्ट 'प्रवर्तनायोद्यत चित्तलेशा:' (भक्ति० सं०पृ० ११) 'वाचा समाचारविदोद्भरस्य' (जयो० १/७८)
उद्यतचित्त लेश (वि०) तत्पर चित्त वाला। (भक्ति० ११) उद्भवः (पुं०) [उद्+भू+अप्] उत्पन्न, समुच्चल, स्रोत, उद्यतते स्मेति-लगता है, तत्पर होता है 'कुरक्षणे स्मोद्यतते
रचना, आधार, उद्गमस्थान। 'शुद्धिरस्ति बहुश क्षणोद्भवा' मुदा सः' (जयो० १/४५)
(जयो० २/७९) 'श्रीमत्पुत्रायास्मदङ्गोभवा' (सुद० ३/४५) उद्यमः (पुं०) [उद्य म्+घञ्] प्रयत्न, उद्योग, परिश्रम, चेष्टा, उद्भवनशील (वि०) उत्पन्नशील। (जयो० वृ० १७/१५) धैर्य, तत्परता, प्रयत्नशीलता, उत्सुकता, दृढ़ संकल्प। उद्भावः (पुं०) [उद्+ भू+घञ्] उत्पत्ति, संतति, उद्गमस्थान। 'यथोद्यमं तदुपायकरेण' (दयो० ३६) 'कर्मनिर्हरणउद्भावनं (नपुं०) [उद्+भू+णिच् ल्युट्] १. चिन्तन, कल्पना, कारणोद्यमः' (जयो० २/२२)
२. उत्पत्ति, संतति, उत्पादन, सृष्टि। 'प्रतिबन्धकाभावे उद्यमनं (नपुं०) [उद्+यम् ल्युट] उन्नयन, उठाना, उत्पादन।
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