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उदृप्त
२०१
उद्धृननं
उदृप्त (वि०) [उद्-दृप्+क्त] अहंकारी, गर्विष्ठ, अभिमानी, करना, दया करना। २. बनाना-'समस्तिकाव्योद्धरणा यमेतु घमण्डी।
(समु० १/६) ३. ध्वंस, विनाश, च्युत, उन्मूलन। ४. उद्दिश् (सक०) ०संकेत करना, लक्ष्य करना, निर्देश उतारना, निकालना, निस्सारण, निचोड़ना, उखाड़ना।
करना, ०वर्णन करना, ०व्याख्यान करना, निरूपण बिताना-'प्राङ् निशि यस्योद्धरणां' (सुद० ९६) करना, समन्वेषण करना। अनुबन्ध करना। (जयो० | उद्धरता (वि०) गुप्ति त्रयात्मक हित, लोकत्रय हित कारक। ६/९१)
__(जयो० १/९७) उद्दिश्य (सं००) लक्ष्य करके, उद्देश बनाकर। (जयो० उद्धरय् (सक०) दूर करना। (वीरो०५/२२) ६/९१) उद्दिश्यापरमूचे'।
उद्धारक (वि०) समुचित समाधान करने वाला, ऊपर उठाने उद्देशः (पुं०) [उद्+दिश्+घञ्] लक्ष्य, वर्णन, कथन, निदर्शन, | वाला, आगे ले जाने वाला, हितैषी, शुभेच्छु । ध्यान, अनुबन्ध, अभीष्ट। (दयो० ५०)
'स्वयंवरोद्धाकरत्वमिच्छति' (जयो० ३/६६) उद्देशपथः (पुं०) अभीष्टमार्ग, इष्टपथ।
उद्धारकार (वि०) [उद्+ह+ण्वुल] उद्धार करने वाला, समुचित उद्देशमार्गः (पुं०) अभीष्टपथ, लक्षित पथ। (दयो० ५०) समाधान देने वाला। (सुद० १/४४) उद्देशकं (पुं०) [उद्+दिश्+ण्वुल्] निदर्शन, दृष्टान्त, पृथक्-पृथक् उद्धारकरत्व (वि०) समुचित समाधान करने वाला, हितैषी, ___ अभिप्राय, विवेचन, संक्षिप्त वक्तव्य।
शुभेच्छुक। (जयो० ३/६६) उद्देशित (वि०) लक्षित, निर्दिष्ट। (जयो० वृ० ३/४९) उद्धरित (वि०) १. अवशिष्ट, निचोड़ (जयो० ३/६६) २. उद्देश्य (सं००) [उद्+दिश्+ण्यत्] लक्ष्य, अभिप्रेत. अभीष्ट। उठाने वाला, ऊपर ले जाने वाला। उद्घोतः (पुं०) [उद्द्यु त+घञ्] १. प्रभा, प्रकाश, आभा, उद्धर्ष (वि०) [उद्+ हृष्+घञ्] प्रसन्न, खुश, हर्ष, आनन्दित।
कान्ति, दीप्ति। २. पुस्तक का अध्याय, अंश, भाग, उद्धर्षणं (नपुं०) [उद्+हष्+ ल्युट्] १. रोमांच, हर्ष, आनन्द। हिस्सा, अनुच्छेद, अनुभाग, परिच्छेद।
२. प्राणयुक्त। उद्मावः (पुं०) [उद्-द्रु+घञ्] भागना, पलायन करना, पीछे - उद्धवः (पुं०) [उद्+हु+अच्] उत्सव, पर्व। १. उद्धव एक हटना।
संदेश वाहक, कृष्ण का संदेश वाहक। उद्धत (भू० क० कृ०) [उद्+ हन्+क्त] नीचे-(सुद० २/४) उद्धस्त (वि०) उठाए हुए, फैलाए हुए।
तत्पर, तैयार, प्रयत्नशील, कटिबद्ध, सन्नद्ध! 'कुमार उद्धानं (नपुं०) [उद्+धा+ ल्युट्] चूल्हा, अंगीठी, अग्निस्थान। जनमारणोद्यतः' (जयो० ७/५८) 'वारितुं तु परचक्रमुद्यतः' उद्धान्त (वि०) [उद्+हा+झ] वमित, उगला हुआ, विसर्जित। (जयो० २/१२१) 'उद्यतः सन्नद्धः सन्' (सुद० वृ० । उद्धारः (पुं०) [उद्+ह+घञ्] १. निस्सारण, निकालना, विमुंचन, २/१२१)
छोड़ना। (जयो० वृ० ३/१२) उद्धृति (जयो० ३/२) २. उद्धतता (वि०) तत्परता। (वीरो० ४/२४)
मुक्त करना, शुभ करना, अच्छा करना। उद्धतिः (स्त्री०) [उदु हन्+क्तिन्] १. उन्नयन, तत्पर, कटिल उद्धारणं (नपुं०) [उद्। ह+णिच् ल्युट्] मुक्त करना, बचाना, २. अभिमान, अहंकार।
उठाना, ऊँचा करना। उद्धमः (पुं०) [ उद्+मा+श] १. ध्वनि करना, प्रतिध्वनि उद्धार-पल्यं (नपुं०) समय विशेष, रोमच्छेद से असंख्यात करना. आवाज करना। ३. हांफना. श्वांस लेना।
कोटि वर्ष तक गर्त भरना, उद्धार पल्य है। (सम्य० ४७) उद्धर् (सक०) १. शोधना, साफ करना। 'उद्धरत्नपि पदानि उद्धारपल्यकालः (पुं०) समय विशेष।
सन्मन:' (जयो० २/५२) उद्धरन् शोधयन् (जयो० वृ० उद्धर (वि०) [उद्+धुर्+क] १. निरंकुश, अनियन्त्रित, मुक्त, २/५२) २. शान्त करना-'करतलकण्डूतिमुद्धरति' (जयो० परिमुंचित, २. स्थूल, मोटा, भारी। ६/६१) 'उद्धरामः-सिरसा वहामः' (जयो० वृ० ३/३८) उद्भूत (भू० क० कृ०) [उद्+धू+क्त] समुत्थित (जयो० 'उद्धरति- शमयतीत्यर्थ:' (जयो० वृ० /६१) ८1८) उठाया हुआ, ऊपर किया गया, गिराया गया, उद्धरिष्यामि- (दयो ६२) उद्धरेत् (मुनि० ३)
हिलाया गया। उद्धरणं (नपुं०) [उद्+है+ ल्युट] १. उद्धार करना, मुक्त । उद्भूननं (नपुं०) [उद्+धू+ल्युट] उठाना, ऊपर करना, हिलाना।
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