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उद्यमिन्
२०३
उद्वाहनं
उद्यमिन् (वि०) [उद्यम् णिनि] परिश्रमी, उद्योगी, प्रयत्नशील, | उद्त (वि०) चाहने वाले, हितेच्छुक। 'जगद्धितेच्छो द्रुतमग्रतस्तौ'
निरन्तर कार्यरत, कार्यकर। (भक्ति० ७) 'शक्रादयोऽप्युद्य- | (सुद० २/२६) मिनो भवन्ति'
उद्रेकः (पुं०) [उद्+रिच्+घञ्] आधिक्य, बाहुल्य, वृद्धि, उद्यमी (वि०) [उद्+यम् णिनि] परिश्रमी, उद्योगी, कार्यरत। प्राचुर्य, अधिकता। (जयो० १७/४३)
उद्वत्सरः (पुं०) [उद्+वस्+सरन्] वर्ष, साल, संवत्सर। उद्यानं (नपुं०) [उद्+या+ ल्युट्] १. आराम, बगीचा, बाग, उद्वपनं (नपुं०) [उद्+व+ ल्युट्] १. उखाड़ना, उड़ेलना,
नन्दनवन। (सुद० ३/३३) २. भ्रमण, परिभ्रमण, हिंडन। निकालना। २. उपहार, भेंट, दान। ३. आक्रीडक (जयो० वृ० १५/२०) 'नवविद्रुम- उद्वमनं (नपुं०) [उद्+वम् ल्युट्] उगलना, निकालना, भूयिष्ठमुद्यानमिव' (जयो० ३/७५)
वमन करना। उद्यानकं (नपुं०) [उद्+या+ ल्युट्+ कन्] आराम, बगीचा, बाग। | उद्वमन्त (पुं०) निकालने वाला, फैलाने वाला। 'तत्स्फुलिङ्गजालं उद्यान-यानजः (पुं०) उद्यान विहार, आरामपरिभ्रमण, उपवन मुहुरुद्वमन्तम्' (सुद० २/१७)
परिभ्रमण। उद्यानयान वृत्तं किन्न स्मरसि पण्डिते।' (सुद०८६) उद्वर्तः (पुं०) [उद्+वृत्+घञ्] १. आधिक्य, बाहुल्य, उद्यान-सम्पालकः (पुं०) माली, उपवन संरक्षक। 'उद्यान- अतिशयता। २. शेष, बचा। ३. लेप, मालिश। सम्पालक-कुक्कुटेन' (समु० ६/३४)
| उद्वर्तनं (नपुं०) [उद्+वृत्+ल्युट्] १. लेप, मालिश। उद्यापनं (नपुं०) [उद्+या+णिच् ल्युट] व्रत समाप्ति, व्रतोद्यापन, (जयो१०/२४) २. बदलना, करवट लेना, उलटना, व्रतपूर्णता, पारणा दिवस।
इधर-उधर करना, उन्नयन, अभ्यदुय। 'अस्मादन्यत्रोत्पत्तिः' उद्योगः (पुं०) [उद्+युज्+घञ्] उद्यम, प्रयत्न, परिश्रम, चेष्टा। (मूला०२२/३) ३. समृद्धि। (मुनि० १५)
उद्वर्तनाकरण (वि०) वृद्धिगति स्थिति। उद्योगिन् (वि०) [उद्+युज्+घिनूण] उद्यमी, परिश्रमी, | उद्वर्धनं (नपुं०) [उद्+वृध्+ ल्युट्] वृद्धि, समृद्धि।
कार्यतत्परता, उद्योगशाली। उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी उद्वलितुं (ह०कृ०) मुड़ना, उलटना। (सम्य० ७३)
दैवेन देयमिति का पुरुषा वदन्ति। (दयो० वृ० ९२) । उद्वह (वि०) [उद्+व+अच्] आगे ले जाना, निरन्तर उद्योत (वि०) प्रकाशवान्, प्रभायुक्त। 'उद्योतयन्तोऽपि परार्थमन्तः' | गतिशील रहना, अग्रणी। (सुद०१/२२)
उद्वहः (पुं०) पुत्र, सुत, तनय। उद्योतकारिन् (वि०) ०प्रकाशवान्, प्रभायुक्त, ०कान्ति फैलाने उदवहनं (नपुं०) [उद्+व+ ल्युट्] १. उठाना, आश्रय देना, वाला। (दयो० १२४)
सम्भालना, रख-रखाव करना। २. ले जाना, आरूढ़ उद्योतन (वि०) प्रकाशन। (जयो० २२/४१) 'जगदुद्योतन होना, वाहन पर चढ़ना। हेतोर्वशान्न' (जयो० २०/३६)
उद्वान (वि०) [उद्+वन्+घञ्] वमित, नि:सरित, उगला हुआ। उद्योतय (सक०) प्रकाश करना-उद्योतयति-(वीरो० ४/३३) उद्वानं (नपुं०) अंगीठी, चूल्हा। उद्योतिन् (वि०) प्रकाश करने वाला, कान्ति फैलाने वाला। उदवान्त (वि०) [उद्+वम्+क्त] वमन किया गया, उगला (वीरो० ६/९)
गया। उद्रः (पुं०) [उन्द्+रक्] जलीय प्राणी, जल का जीव। उद्वापः (पुं०) [उद्+वप्+घञ्] उगलना, बाहर फेंकना। उद्रवः (पुं०) [उद्गतो रथो यस्मात्] १. रथ के धुरी की उद्वासः (पुं०) [उद्+वस्+घञ्] तिलाञ्जलि देना, निर्वासन। कील, सकेल। २. मुर्गा।
उद्वासनं (नपुं०) [उद्+वस्+णिच् ल्युट] निर्वासन, तिलाञ्जलि उद्रवः (पुं०) [उद्++घञ्] कोलाहल, शोरगुल।
देना, निकालना, बाहर करना। उद्रिक्त (वि०) [उद्+रिच्+क्त] विशद, महत्, बड़ा, अत्यधिक, उद्वाहः (पुं०) [उद्+व+घञ्] १. सम्भालना, आश्रय देना। अतिशय।
२. विवाह, पाणिग्रहण। उद्रुज (वि०) [उद्रु+क] जड़ खोदने वाला, नाश करने | उद्वाहनं (नपुं०) [उद्+वह णिच् ल्युट्] १. उठाना, जगाना, वाला, विध्वंसका
सचेत करना। २. विवाह, पाणिग्रहण।
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