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उड्डीशः
१८९
उत्केषणं
उड्डीशः (पुं०) [ उद्+डी+क्विप्] (उड्डी तस्य ईशः) शिव। | उत्कन्धर (वि०) [उन्नतः कन्धरोऽस्य] उद्ग्रीव, गर्दन ऊपर उड़ः (पुं०) देश नाम, उड़ीसा।
किए हुए। उत् (अव्य०) [उक्त] यह अव्यय १. संभावना, संदेह, | उत्कम्प (वि०) कम्पित, चलायमान, विचलित, हिलता हुआ।
अनिश्चतता, अनुमान, संयोग, साहचर्य, प्रति, लेकिन उत्कर (वि०) [उद्+कृ+अप्] १. समुदाय, अवयव, समूह। आदि के अर्थ में होता है। २. कहीं-कहीं पर शब्द से पूर्व 'नयन्तमन्त निखितोत्करं तं' (सुद० २/१७) २. उत के प्रयोग होने पर 'विपरीत अर्थ भी व्यक्त होता कणिका-(वीरो०१/१५) 'करादुत्कर संविधा तु'३. कुठारादि है। उत्पथगामी अपथ। (जयो० वृ० २/१३२) ३. 'उत्' भेदन। का अर्थ ऊपर भी है-'रक्तमस्थ्युत्थमेतीति तदेकभक्तः' | उत्कर्करः (पुं०) वाद्य विशेष। (सुद० १२१)। ४. 'उत्-सहित, प्रत्युद्भूत-'रसातलं उत्कर्तनं (नपुं०) [उद्+कृत्+ल्युट्] काटना, मूलोच्छेदन करना, तूत्तलसातलं' (जयो० ५/९०) उत्तलं-प्रत्युद्भूतलम्' (जयो० जड़ से निकालना, कतरना, उखाड़ना। वृ० ५/९०) ५. 'उत्'-अब, तो, लेकिन, बल्कि - (वीरो० । उत्कर्षः (पुं०) [उद्+कृष्+घञ्] वृद्धि। (जयो० १/९५) (३/८३) ४/१७) 'निधेयं मया किं विधेयं करोतूत सा' (सुद०९५) उन्नति, उदय, अभ्युदय, विकास, समृद्धि, बहुलता। २. 'क्षणभरास्तां न स्वप्नेऽप्युत' (सुद० ९९) ६. 'उत्' ऊपर, उत्कृष्टता, सर्वोपरिगुण, विशेष यश। परोत्कर्ष-सहिष्णुत्वं
उठा हुआ। 'शान्तिर्भवातापत उत्थिताय' (भक्ति० २४) जह्यद्वाञ्छन्निजोन्नतिम्' (सुद० ४/४२) उतथ्यः (वि०) तथ्यपूर्ण, रहस्य युक्त।
उत्कर्षणं (नपुं०) [उद्+कृष्+ ल्युट्] १. उन्नत, उदय, विकास। उताङिन् (पु०) प्राणी, सत्त्व, जीव। 'प्रभुभक्तिरुताङ्गिनां २. ऊपर खींचना, ऊपर लेना, बढा देना। ३. कर्म को मवेत्फलदा' (सुद० ३/५)
वृद्धि करने वाला कारण। 'सत्तागमे कर्मणि उताश्नुवान् (वि०) उपवास करने वाला, 'नाऽऽमासमा- बुद्धिनावाऽपकर्षणोत्कर्षणसंक्रमा वा।' (सुद० ८/१५) पक्षमुतारनुवानः' (सुद० ११८)
'उक्कड्डणं हवे वड्ढी' (गो०क०४३९) उत्तास्थित (वि०) उचित रूप से रहना, अच्छी तरह स्थित उत्कर्षप्रदायक (वि०) उदय को प्राप्त होने वाला, उन्नति होना। 'कर्तुमुतास्थितो रसात्' (समु० २/११)
दायक। (जयो० वृ०६/५६) उत्क (वि०) [ उद्। स्वार्थ कन्] उत्कठित, वाञ्छा युक्त, उत्कलः (पुं०) [उद्+कल्+अच्] १. उड़ीसा का अपर नाम।
चाहने वाला, उत्साही, 'रोमाणि बालभावाद्वरश्रियं २. चिडिमार, बहेलिया। दृष्टुमुत्कानि' (जयो० ६/१२४) उत्कान्-उत्कण्ठितान् उत्कल (वि०) व्याकुल, संतप्त। 'उत्कला व्याकुला भवन्त (जयो० वृ० ३/७४)
इति' (जयो० वृ० २१/९) उत्कञ्चनं (नपुं०) काष्ठ-विशेषों का बंधन, ऊपरि बन्धन। उत्कलाप (वि०) क्रीड़ा करते हुए, पूंछ फैलाए हुए। उत्कञ्चुक (वि०) कवच रहित।
उत्कलित (भू० क० कृ०) [उद्+कल्+क्त] संक्षिप्त कल्पित। उत्कट (वि०) [उद्। कटच्] १. उच्च, प्रचुर, महत्, बड़ा, (वीरो० २२/१७) परिरक्षित, रखते हुए। (जयो० ४/७)
प्रशस्त, उन्नत, शक्तिसम्पन्न, भयानक, भीषण। 'श्रीचतुष्पथक उत्कलिकाय' (जयो०४/७) 'स्फटयोत्कटया समुच्छ्व सन्नयि (जयो० १३/४१) २. उत्कलिका (स्त्री०) १. लालसा, वाञ्छा, इच्छा, चाह, आतुरता, श्रेष्ठ, उत्तम। ३. विषम।
काम क्रीड़ा। २. कली, पुष्प-कलिका। ३. उत्कण्ठा, उत्कण्ठ (वि०) [उन्नतः कण्ठो यस्य] १. तत्पर, उद्यत, उत्साह। (जयो० १७/१२५) तैयार। २. उत्साहित, इच्छुक।
उत्कलिकावती (वि०) समुत्कण्ठावती, उत्साहजन्या। उत्कण्ठा (स्त्री०) [उद्+कण्ठ+अ+टाप] १. चिन्ता, आतुरता, 'सुरत-तरङ्गिणि उत्कलिकावती' (जयो० १७/१२६)
बैचेनी। (दयो० ६५) २. खिन्न, खेद, शोक, दु:ख। उत्कल्प (सक०) निर्माण करना, बनाना। (जयो० ९/२९) (जयो० वृ० १२/१३०)
उत्कल्पपितुम्। उत्कण्ठित (भृ० क० कृ०) [उद्+कण्ठ+क्त] १. उत्साहित, | उत्केषणं (नपुं०) [उद्+कष्+ल्युट्] जोतना, खींचना, हल से इच्छुक, उत्साही। (जयो० वृ० १२/१३०)
बखरना, फाड़ना, चढ़ाना। (जयो० १०/२८)
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