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उज्जीवय्
उज्जीवय् (सक०) जीवित करना, प्राण देना (जयो० १/७६) उज्जृम्भ (वि०) १. जम्भाई लेना, मुंह खोलना। २. फुत्कारित, फुलाया हुआ ।
उज्जृम्भाषणं (नपुं० ) [ उद्+जृम्भ + अ + ल्युट् ] जम्भाई लेना, उवासी, मुंह खोलना ।
उन्न्य (वि० ) [ उद्गता ज्या यस्य ] धनुर्धर, धनुष पर डोरी खुली रखने वाला।
उन्न्चल (वि०) [ उद्+ज्वल्+अच्] धवल (जयो० १३/३९) दीप्ति, कान्तियुत, चमकयुक्त, प्रभावान्, स्वच्छ। (वीरो० २/४) उज्ज्वलो वाच्यवद्दीप्ते परिव्यक्तविकाशिषु' इति विश्वलोचन: ' (जयो० ४/४९) 'मुक्तोपम-तन्दुलदलमुज्ज्वलमादाय श्रद्धायाः' 'दुग्धाब्धिवदुज्ज्वले' (सुद० ९०) यहां 'उज्ज्वल' का अर्थ पवित्र (जयो०) उज्ज्वल--कुम्भ: (पुं०) मङ्गलकलश, इष्टकुम्भ) (जयो० १६ / १०) पीयूष - पादोज्ज्वल-कुम्भदृष्टया' (जयो० १६ / १ ) उज्ज्वलजल (नपुं०) निर्मलजल, शीतल जल 'नीरमुज्ज्लजलोद्भवनिष्ठ' (जयो० ४/५९)
उक्त पंक्ति में उज्ज्वल' का अर्थ विनाश भी किया है। 'शरदि उज्ज्वलैर्विकाशिभिः जलोदभवैः कमलैर्निष्ठम्' (जयो० वृ० ४/५९)
उज्ज्वल - ज्वाला (स्त्री०) प्रकाशमान ज्वाला, देदीप्यमान ज्वाला । (सुद० २/१७) नयन्तमन्तं निखिलोत्करंतं समुज्ज्वलज्ज्वालय लसन्तम्।' (सुद०२/१७)
उज्ज्वलवर्ण (पुं०) निर्मल अक्षर, स्वच्छवर्ण, पवित्र वर्ण । 'उज्ज्वलः पवित्रो वर्णः उज्ज्वलैर्निर्मलैर्वर्णरक्षरैः। (जयो० उज्झ् (सक०) त्यागना, छोड़ना, लताना, टालना, बचना, विसर्जन करना । उज्झेत् कथंकारं त्यजेदिति (जयो० वृ० २५ / ७५) 'परं समस्तोपधिमुज्झिहाना' (सुद० ११५) 'समस्तमप्युज्झतु सम्व्यवायं (सुद० १३१) उज्झितुं (सुद० ११३)
उज्झकः (पुं० ) [ उज्झ+ ण्वुल्] १. बादल, मेघ, घनघोर घटा। २. भक्त श्रद्धाशील।
उन्झनं (नपुं०) त्यागना, छोड़ना, परिमंचन, विसर्जन, प्रनवण ( मुनि० १४ )
उज्झित (भू० क० कृ०) छोड़ा गया, त्यक्त, परित्यक्त (जयो०
१२ / ७१ ) विसर्जित किया गया। (जयो० ११ / ७५ ) उज्झतु-त्यजतु (वीरो० २ / १०) उज्झिता ( सुद० ३/३५) उज्झतो (सुद०२/२) नित्यं पादप कोटरादिषु
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उड्डीयन
वदन्यानपेक्षिष्वथा प्युदिभन्नादितयोज्झितेषु च चुरादूरे चरः सर्वथा (मुनि० ८) उक्त पंक्ति में उज्झित का निर्जन, एकान्त, शून्यगृह आदि भी अर्थ निकलता है अर्थात् मुनि उजड़े आवासों में रहे। 'यद्वा पदोरेव मदोज्झितासाऽमुष्याः ' (जयो० ११/७२) मदोझिन्ता निरभिमाना-रहित अर्थ है। एषणा दोष विशेष।
उच्छ (सक०) एकत्रित करना, चीनना, संग्रह करना, जुटाना। उच्छ ( पुं०) [उपन्] एकत्रित करना, संग्रहण। उञ्छनं (नपुं०) [उञ्छ् + ल्युट् ] इकट्ठा करना, बटोरना, खलिहान से बीनना।
उटम् (नपुं०) [उ+टक्] पत्ता, घास उट्टङ्गः (पुं०) प्रहार, आघात (जयो० ६ / ६० ) उट्टङ्गित ( वि०) प्रहारित, उत्कीर्ण किया गया। (जयो०
६ / ६०) (दयो० ४२)
उडु (स्त्री०) १. नक्षत्र, तारा २. वारि, जला
उडुगण (पुं०) तारासमूह (समु० ६/७ ) उडुचक्रं (नपुं०) राशिचक्र ।
उडुपः (पुं०) नक्षत्रपति, चन्द्र। (जयो० १५/२१) 'उडुपश्चन्द्रमा ' (जयो० वृ० १५ / २१)
उडुपं (नपुं०) बाड, बेड़ा, घेरा।
उडुपरम्परा (स्त्री०) नक्षत्र परम्परा (जयो० २४) उडुपति: (पुं०) चन्द्र, चन्द्रमा ।
उडुपांशुः (नपुं०) चन्द्रकिरण। 'उडुपस्य चन्द्रमसोऽशुवतिकरणसमूह' (जयो० २१ / ५)
उडुपय: (पुं) आकाश, खे, नभ, अन्तरिक्षा उडुवर्ग: (पुं०) पक्षी वर्ग (वीरो० ४/२० ) उडुरत्नं (पुं०) चन्द्रमा । (जयो० ११ / ६४ ) उड्डयनं (नपुं० ) [ उद्+डी+ ल्युट् ] ऊपर उड़ना, उड़ान भरना । (जयो० ३/७ )
उड्डयनसाधनं (नपुं०) व्यान, उड़ने का साधन, वाहन, ० विमान (जयो० ३/७ )
उड्डायनं (नपुं०) उड़ाना, उड़ान भरना । चिन्तामणि शिपत्येष काकोड्डायनहेतवे । (सुद० १२८ )
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उड्डीन (भू० क० कृ० ) [ डी. क्त] उड़ाया गया, भगाया गया, ऊपर की ओर किया गया।
उड्डीयनं (नपुं० ) [ उड्डः स एव आचरति क्यङ् उड्डीय+ ल्युट् ] उड़ान भरना, उड़ना, उड़ान, ऊपर की ओर जाना।
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