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उच्छन्न
१८७
उज्जिहानं
उच्छन्न (वि०) [उद् छद्+क्त ] उखाड़ा गया, हिलाया गया, उच्छादनं (नपुं०) अनाविर्भाव। लुप्त, समाप्त, नष्ट।
उच्छेदः (पुं०) [उद्। शिष्घञ्] उखाड़ना, उद्भिद। उच्छल (वि०) उछलना। (सुद० १/७)
उच्छेदक (वि०) अन्तर, विरह, विरोध, व्यधान। (जयो० उच्छलत् (वि०) |उद्+शल+शतृ] १. चमकता हुआ, देदीप्यमान २४/१९) काटना, मूलोच्छेन, उच्चाटन। होता हुआ। २. उच्चगत, ऊँचाई पर जाता हुआ। (सुद० उच्छेदनं (नपुं०) उखाड़ना, काटना। (जयो० वृ० २४/७३)
उच्छेदी (वि०) विनाशगत, नष्ट हुआ, विध्वं सको जात। उच्छलनं (नपु०) [उद्+शल+ल्युट्] उड़ना, ऊपर जाना। । (वीरो० ६/७) उच्छादनं (नपु०) ( उद्+छद् णिच्+ ल्युट्] १. ढाकना, आच्छादित । उच्छेषः (पुं०) [उद्+शिष्+घञ्] शेष, अवशेष, अवशिष्ट, करना। २. मलना, मसलना, लेप करना।
बचा हुआ। उच्छालित (वि०) फेंकी गई, ऊपर की गई। (वीरो० १६/५) उच्छोषण (वि०) सुखाने वाला, मुा देने वाला। उच्छासन (वि.) [उत्क्रान्त शासनम्] निरंकुश, अनियंत्रित। उच्छोषणं (नपुं०) सुखाना, मुझाना। उच्छिख (वि०) [उद्गता शिखा यस्य] १. शिखा युक्त, २. उच्छू (अक०) [उद्+श्रि+अच्] उदय होना, निकलना। ___ ज्योति युक्त। ३. दीप्तिवान्।
उच्छ्रयः (पुं०) वृद्धि, विकास। उच्छि-खत्व (वि०) ऊपर। (सुद० १/१६)
उच्छ्य णं (नपुं०) [उद्+श्रि+ल्युट] उन्नयन, विकास, विस्तार, उच्छित्तिः (स्त्री०) [उद्-छि+क्तिन्] नाश, विनाश, उखाड़ना, फैलाव, प्रसार। समूल नष्ट करना।
उच्छ्रितः (भू० क० कृ०) [उद्+श्रि+क्त] १. उत्थापित, उच्छिन्न (भू० क० कृ०) [उद्+छिद्+क्त] विनष्ट, नाश, उठाया गया, ऊँचा किया। २. वर्धमान, बढ़ाया गया, वृद्धि समाप्त, उखाड़ा गया।
गतंगत, ३. समृद्ध, वृद्धि प्राप्त। उच्छिरस् (वि०) [उन्नतं शिरोऽस्य] १.विनम्र, विनीत, २. | उच्छ्व सनं (नपुं०) [उदृश्वस्+ल्युट्] सांस लेना, नि:श्वास,
कुलीन, उन्नत। ३. सज्जन, महानुभाव, आदरणीय, पूज्य। आश्वास, आह भरना। उच्छिलीन्ध (वि०) कुकुरमुत्ता, सांप की छतरी।
उच्छ्व सित (भू० क० कृ०) [उद्+श्वस्+क्त] उच्छवास, उच्छिष्ट (भू० क० कृ०) [उत्+शिप्+क्त ] १. अवशेष, शेष, नि:श्वास, आश्वास, गहरी सांस लेना।
बचा हुआ, त्यक्त, विसर्जित, छोड़ा गया। (दयो० ७. । उच्छवासः (पुं०) [उद्+श्वस्+घञ्] १. सांस, नि:श्वास, समु०४/२) २. नि:सार, जूठन-'यदृच्छिष्टमहो विधात्रा' ऊसार, उर्ध्ववातोद्गम। २. एक अंग, भाग, हिस्सा, आश्वास। (समु० ४/२) (जयो० ११/७५)
३. प्रोत्साहन, आश्वासन। 'उर्ध्वगमनस्वभावः परिकीर्तितः' उच्छिष्टांश (वि०) समुत्कर, निःसृत भाग, प्रवाहित भाग। उर्ध्व वातोद्गम य स उच्छवासः। (जैन०ल० २४५) (जयो० वृ० ११/४३)
उच्छवास-नामकर्म (नपुं०) ०उच्छवसन, ०आश्वास, प्राणापान उच्छीर्षकं (नपुं०) उपधान, तकिया।
ग्रहण, निःश्वास सामर्थ्य। 'उच्छवसनमुच्छ्वासस्तस्य नाम उच्छुतिः (स्त्री०) सद्भाव वृद्धि। (जयो० २/१०५)
उच्छ्वास नाम' (जैन०ल० २४५) उच्छुष्क (वि०) [उत्+शुष्+क्त तस्य क:] मुरछाया, शुष्क, उच्छ्वास-पर्याप्तिः (स्त्री०) आन-प्राणपर्याप्ति।
उच्छ्वास-निःश्वास-पर्याप्तिः (स्त्री०) सांस लेने, छोड़ने की शक्ति। उच्छून (वि०) [उद्+श्वि+क्त] मोटा, बलशाली, सशक्त, उज्जगज (वि०) विशेष गर्जना। (सुद० २/३६) दृढ़, फूला हुआ। (जयो० ११/४०)
उज्जयिनी (स्त्री०) अवन्ति नगरी, मालवा का प्रसिद्ध नगर। उच्छूनता (वि०) प्रफुल्लता, फूला हुआ. उत्तुंग। (जयो० ११/४०) (दयो० १०/१०) उच्छृङ्खल (वि०) [उद्गत-शृङ्खलात:] निरंकुश, अनियन्त्रित, | उज्जासनं (नपुं०) [उद्+जस्+णिच्+ ल्युट] हनन, घात, विच्छेद, वशरहित। (जयो० ११/४१) उदवेल युक्त। (जयो० ३/९२)
विनाश। उच्छृङ्खलभाषिन् (वि०) निरंकुश-कथन, मुखरीवादक, | उज्जिहानं (वि०) [उद्+हा+शानच्] उदित, ऊपर जाता हुआ। व्यर्थालापी। (जयो० ११/४१)
बहिर्गत।
सूखा।
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