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उक्तकेतुः
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उचितज्ञ
उच्चारिते सति यदवग्रहादिज्ञानं जायते। (त० वा० १/६) उखु (अक०) हिलना, कांपना, डोलना। कहा गया, प्रतिपादित, प्रयुक्त, ०संज्ञात, ०भाषित, उखा (स्त्री०) [उख+क+टाप्] पतीली. डेगची, वटोही।
कथित, विवेचित। (सम्य० ७८२, जयो० वृ० १/९) उख्य (वि०) डेगली में तपाया, उबाला गया। 'धरति श्रियमेष एवमुक्तः' (जयो० १२/५४) 'इत्येवमुक्तः उगिति (वि०) मन लगाने वाला। (मुनि० २३) संज्ञातो' (जयो० वृ० १२/५४) 'इत्युक्ताऽथगता चेटी' उग्र (वि०) [उच्+रन् गश्चान्तादेशः] कठिन, कठोर, ०भीषण, (सुद० ७७)
०तीव्र, क्रूर, ०भयंकर, ० भीम, प्रबल, हिंसक, उक्तकेतुः (पुं०) नाम विशेष। (सुद० ११०) 'राज्ञी माता शक्तिशाली, तीक्ष्ण, उच्च, ०भद्र। 'सद्धारगङ्गाधरमह्यमस्तूक्तकेतुः रुष्टः। (सुद० ११०)
मुग्ररूपं' (जयो० १६/१४) (वीरो० १७/३४) उक्त पंक्ति उक्ततन्तु (वि०) क्लेद से व्याप्त। 'विलोपमं तत्कलिलोक्ततन्तु' में 'उग्र' का अर्थ 'महादेव' एवं उन्नत दोनों हैं। 'उग्ररूपं (सुद० १०२)
महादेव-स्वभावमुन्नतस्वभावं वा' (जयो० वृ० १६/१४) उक्तपत्ररसनः (पुं०) उपर्युक्त बात, उक्त कथन। 'उक्तं पत्रं । उग्रमहीपसूनुः (पुं०) उग्रसेन का पुत्र, कंस पुत्र। (वीरो०
शब्द समूह रसति स्वकरोतीत्युक्तपत्ररसनो' (जयो० वृ० १७/३४) ४/५)
उग्रगंध (वि०) तीव्र गन्ध, अधिक गन्ध। उक्तप्रकार (पुं०) उपर्युक्त, कथनानुसार। (सुद० ९०) उग्रचारिणी (वि०) उग्र स्वभावी। रक्तरीति (वि०) उपयुक्त विधि (सुद० १/८)
उग्रचण्डा (वि०) अत्यधिक क्रोध वाला। उक्तवती (वि०) ०कहती हुई, ०बोलती हुई, ०भाषिता उग्रघटा (स्त्री०) घनघोर घटा।
०इत्थमुक्तवति काशिनरेशे' (जयो०४/२०) 'उक्तवती- उग्रजंतु (पुं०) क्रूर प्राणी। जगाद यद्' (जयो० वृ० ६/३४) ।
उग्र-तप (पुं०) कठोर तप। 'इत्येवमत्युग्रतपस्तपस्यन्' (सुद० उक्ता (वि०) कथिता, भाषिता। (सुद०७७)
११९) उक्तावग्रहः (पु०) गुणाविशिष्ट का ग्रहण। नियमित उग्र-दार-कान्ति (स्त्री०) धूर्जटि स्त्री, पार्वती, कान्तियुक्त
गुण-विशिष्टार्थग्रहणमुक्तावग्रहः। (मूला०वृ० १२/८७) परमसुन्दरी। 'उग्रदाराणां धूर्जटिस्त्रियाः पार्वत्याः कान्तिर्यया 'अनुक्तस्य अवग्रहः' (त०वृ० १/१६)
तां परमसुन्दरीं ता बाला भूयः' (जयो० ६/७८) श्रीदेवकी उक्ति: (स्त्री०) [वच्-क्तिन्] ०अभिव्यक्ति, कथन, भाषण, यत्तजुजापिदूने कंसे भवत्युग्रमहीपसूनुः।
०वक्तव्य, विचार, ०अभिप्राय, सुझाव। (सम्य० ७१) उग्रविधिः (स्त्री०) कठिन चर्या। "उचितामुक्तिमप्याप्त्वा' (सुद० ९०) 'मदुक्तिरेषा भवतो उग्रसेनः (पुं०) नाम विशेष, मथुरा राजा और कंस का जनक सुवस्तु' (सुद० २।२९)
उग्रसेन। (दयो० पृ० १००) उक्तिपूर्वक (नपु०) कथनपूर्वक, विचारपूर्वक। । उग्रोग्रतपः (पुं०) कठिन तप, तीव्र तप। एक ऋद्धि विशेष। 'भगवन्नमनोक्तिपूर्वकम्' (समु० २/२५)
(तिलोयपण्णत्ति १०५१) उक्तिविचक्षणं (नपुं०) अनुरूप वचन बोलने में प्रवीण। उच् (सक०) ०चयन करना, इकट्ठा करता, संचय करना,
(सुद० ११९) 'कामानुरूपोक्तिविचक्षणाऽद:।' (सुद० ० जुटाना। ११९)
उचित (भू० क० कृ०) १. योग्य, ठीक, अच्छा। २. प्रचलित, उक्थं (नपुं०) [वच्थ क्] ०वाक्य, कथन, विचार, स्तोत्र, उपयुक्त। ३. अभ्यस्त, 'उचितमभ्यस्तमित्युपमा' (जयो० ०स्तुति, प्रशंसा।
वृ० २१/२४) 'हृदि प्रवेशोचिता विशेषात्' (सुद०१/४२) उक्ष (अक०) छिड़कना, गीला करना, सींचना, तर 'तुगहो गुण-संग्रहोचिते' (सुद० ३/२२) उक्तं पंक्ति में करना, विकीर्ण करना, फैलाना, बरसाना।
'उचित' का अर्थ परिपूर्ण, भरा हुआ है। 'समये पुण्यमये उक्षणं (नपुं०) [उक्ष ल्युट] मंत्रित करना, प्रभावित करना, खलूचिते' (सुद० ३/१) आधीन।
उचितज्ञ (वि०) उचित बात को जानने वाली 'उचितज्ञताधिपन्नउक्षन् (पुं०) सांड, बैल, बलिवर्द, वृषभ।
(जयो० १५/७८)
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